विश्व में इतनी सारी नई नई बीमारियों ने जन्म ले लिया है कि अब तपेदिक यानि टीबी को या तो बड़े हल्के में लिया जाने लगा है या फिर इस बारे में अधिक प्रचार प्रसार भी नहीं किया जाता. किन्तु याद रखिए ये बीमारी आज भी हमारी धरती पर मौजूद है और आज भी इंसानों के लिए जानलेवा है. हां, यह अब पूरे विश्वास से कह सकते हैं कि टीबी कोई लाइलाज बीमारी नहीं रह गई है बावजूद विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) आज इसके सामने बौना साबित होता नजर आ रहा है. भले ही हर साल 24 मार्च को हम विश्व क्षय रोग दिवस मना ले . इसके लिए थीम रख लें. पर हकीकत यह है कि आज भी हमारे आस-पास इस रोग से पीड़ित रोगी हमें दिख जाएंगे. साल 2030 तक दुनिया को पूरी तरह से टीबी से मुक्त करने का विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO ) ने जो लक्ष्य रखा है वह कैसे पूरा होगा? दुनिया भर में कुल टीबी मामले में भारत का हिस्सा लगभग 26% है. यह जानते हुए हमारे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने मार्च 2018 में ही 2025 तक भारत को टीबी मुक्त करने का अभियान शुरू कर दिया था. मार्च 2024 आ गया है पर मौजूद हालत में बहुत ज्यादा सुधार होता नहीं दिख रहा है. तब 2025 तक इस पर नियंत्रण कैसे होगा. अभी यह दूर के ढोल सुहावन जैसी बात लग रही है. टीबी आज लोगों को डराने लगी है. इससे प्रतिवर्ष अनेक लोगों की मृत्यु हो रही है. टीबी मरीज के संपर्क में आने पर हवा से फैलने वाला यह रोग बड़ी आसानी से एक स्वस्थ मनुष्य को अपनी चपेट में ले सकता है. इसमें सांस फूलना, मुंह से खून आना आम बात है. शरीर के फेफड़े को छोड़कर यह बीमारी शरीर के दूसरे अंगों में भी हमें देखने को मिलती है. इस बिमारी के कारक (माइक्रोबेक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस) बैक्टीरिया रक्त द्वारा आसानी से शरीर के दूसरे भागों में जैसे ब्रेन, स्किन, यूट्रस, मुंह,लिवर,किडनी, गला, हड्डी आदि में जाकर टीबी रोग उत्पन्न करता है.
हमारी सरकार टीबी की दवा के साथ मरीजों को ₹500 भी दे रही है. फिर भी चाहे दवा के स्वाद की वजह हो या तो मरीजों के लापरवाही कहिए . मरीज इस बिमारी के दवाइयों का सेवन करने में चूक जाता है. जिसका खामियाजा भी उसको भुगतना पड़ता है. इस पर ई. एस .आई. एस हॉस्पिटल के टीबी विभाग के अध्यक्ष रह चुके डॉ. डी. बी अनंत कहते हैं कि " इस बीमारी के मरीज को दवाइयों का कोर्स पूरा करना चाहिए . अगर किसी कारणवश मरीज द्वारा दवाइयों का कोर्स अधूरा छोड़ दिया जाता है तो यह बीमारी घातक हो जाती है. ऐसी स्थिति में पहली श्रेणी की दवाइयों का असर मरीज के बीमारी पर से खत्म हो जाता है . इसलिए डॉक्टर द्वारा मरीज को दूसरी श्रेणी की दवाइयां दी जाती है. जो काफी महंगी होती है. इन दवाइयों का दुष्प्रभाव भी मरीज पर हो सकता है. टीबी की बीमारी में लापरवाही नहीं करना चाहिए. एक लापरवाही भी घातक हो सकती है . लेकिन अगर कोई मरीज जो भूल बस दवाई लेना भूल जाता है तो उसे तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए. उसकी सलाह पर अच्छी तरह से अमल करना चाहिए. मरीज को अपने भोजन पर विशेष ध्यान देना चाहिए . उसे पौष्टिक आहार लेना चाहिए. यह एक जिद्दी रोग है जो आसानी से पीछा नहीं छोड़ता है लेकिन इसका इलाज है और इसे पूरी तरह से ठीक हुआ जा सकता है." इसी विषय पर जब हमने उत्तर प्रदेश (रायबरेली ) के स्वास्थ्य अधीक्षक डॉ. अमल पटेल जी से बात की तो उन्होंने कहा कि " देश के विभिन्न राज्य भी इस ओर सजगता से कम कर रहें हैं. उत्तर प्रदेश में स्वास्थ्य विभाग टीबी के रोकथाम के लिए पूरी सजगता के साथ लगा हुआ है. आशाओं द्वारा घर-घर टीबी के मरीजों को ट्रेस किया जा रहा है. जो भी पॉजिटिव आ रहे हैं उनको सरकार की तरफ से मुफ्त दवाइयां दी जा रही हैं .उम्मीद है कि बहुत जल्दी उत्तर प्रदेश से टीबी को समाप्त कर दिया जाएगा." हमने जब यही सवाल मुंबई के सुप्रसिद्ध डॉ. सुभाष सोनावाल से किया तो वो भी इस विषय पर सकारात्मक सोच रखने वाले मिले. उनके शब्दों में " Yes ! We can end TB !
हमारी गवर्नमेंट जिस तरह से कम कर रही है . बिल्कुल पॉसिबल (संभव) है . हमें सिर्फ मेडिकल अवेयरनेस (जागरूकता) बढ़ाना है . ड्रग सप्लाई तो हम कर रहे हैं पर इनकंप्लीट ट्रीटमेंट कहीं छूट न जाए. इसका हमें ख्याल रखना है. इस बीमारी को लोगों में से खोज निकालने की प्रक्रिया को बढ़ाना है . जब हम लोगों को कंप्लीट ट्रीटमेंट देंगे तो हम टीबी का एंड(अंत) कर देंगे. टीबी का निर्मूलन भारत में से कर देंगे." टीबी जैसी घातक बीमारी से लडने के लिए मेडिकल से संबंधित हमारे सोल्जर बहुत ही सकारात्मक ऊर्जा के साथ मैदान में डटे हुए हैं . पर यह तो आने वाला समय ही बतायेगा कि ये लोग कहां तक सफल होते हैं.