सपनों की उड़ान या हकीकत की मार: भारतीय युवा मानसिकता का विदेश मोह

आज के आधुनिक युग में, भारतीय युवाओं की आकांक्षाएं तेजी से बदल रही हैं. उनमें से एक प्रमुख आकांक्षा है विदेश जाकर उच्च शिक्षा प्राप्त करना, बेहतर नौकरी पाना या बस वहीं बस जाना. यह प्रवृत्ति विशेष रूप से ग्रामीण भारत में अधिक देखने को मिल रही है, जैसे कि पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, और बिहार जैसे राज्यों में. यहाँ के गाँवों में अक्सर खालीपन का एहसास होने लगा है और खेतों में सूनापन बढ़ता जा रहा है, क्योंकि युवा पीढ़ी रोजगार और अवसरों की तलाश में शहरों की ओर, और उससे भी आगे, विदेशों की ओर रुख कर रही है. माता-पिता भी अपने बच्चों के विदेश जाने के सपने को पूरा करने के लिए अपनी पुश्तैनी जमीन और जायदाद तक बेच देते हैं, जिससे भारतीय समाज और अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ रहा है.

भारतीय युवाओं के बीच विदेश जाने की इस प्रबल इच्छा के कई कारण हैं. सबसे बड़ा कारण यह है कि वे मानते हैं कि एक समृद्ध और सम्मानजनक जीवन केवल विदेशों में ही संभव है. उन्हें लगता है कि विदेशों में कमाई अधिक होगी और जीवन शैली अधिक सुविधाजनक होगी. यह सोच अक्सर मीडिया, सोशल मीडिया और विदेशों में रहने वाले रिश्तेदारों की कहानियों से प्रभावित होती है, जो सिर्फ चमक-दमक वाली तस्वीर पेश करते हैं. हालांकि, सच्चाई इससे बहुत अलग है. विदेश जाकर हर किसी को उच्च पद या शानदार नौकरी नहीं मिलती. 2023 में संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 1.8 करोड़ भारतीय विदेशों में रह रहे हैं, और इनमें से बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जो उच्च कौशल या शिक्षा के बावजूद निम्न-स्तरीय काम करते हैं. उदाहरण के लिए, उन्हें रेस्तरां में वेटर, टैक्सी ड्राइवर, डिलीवरी एजेंट, या फैक्ट्रियों में श्रमिक के रूप में काम करना पड़ता है. यह विडंबना है कि यही काम जब भारत में करने की बात आती है, तो वे इसे 'निम्न स्तर का काम' मानकर शर्म महसूस करते हैं. लेकिन विदेशों में, डॉलर या पाउंड की चमक और विदेशी मुद्रा में कमाई की संभावना के कारण, वही काम उन्हें स्वीकार्य लगने लगता है. यह मानसिकता दर्शाती है कि बाहरी चमक-दमक उन्हें अपनी जड़ों से दूर कर रही है, और वे दिखावे की जिंदगी के पीछे भाग रहे हैं.

विदेश में जीवन उतना सरल और आकर्षक नहीं होता, जितना कि सोशल मीडिया पर दिखाया जाता है. वहाँ रहने की लागत बहुत अधिक होती है. 2022 के डेटा के अनुसार, कनाडा जैसे देशों में एक छात्र के लिए प्रति वर्ष औसतन लगभग 16 से 24 लाख रुपये तक का खर्च होता है, जिसमें ट्यूशन फीस, आवास, भोजन और बीमा शामिल होता है. इसके अलावा, किराए, बीमा, टैक्स, और चिकित्सा सेवाएँ भी बहुत महंगी होती हैं.मानसिक दबाव और संघर्ष भी बहुत बड़ा होता है. नई संस्कृति और भाषा में ढलना, परिवार से दूर रहना, और अकेलेपन का सामना करना युवाओं को भीतर से तोड़ देता है. हाल ही के वर्षों में, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन जैसे देशों ने प्रवासी श्रमिकों के लिए वीजा नियमों को और सख्त कर दिया है. कनाडा में 2023 में अंतर्राष्ट्रीय छात्रों के लिए आर्थिक सहायता की आवश्यकताओं को बढ़ा दिया गया है. इसी तरह, ब्रिटेन ने भी कुछ वीज़ा श्रेणियों में आश्रितों के लिए नियमों को कड़ा कर दिया है, जिससे प्रवासियों के लिए स्थायी निवास और परिवार को साथ ले जाना मुश्किल हो गया है. एक सर्वे के अनुसार, विदेश में रहने वाले लगभग 40% भारतीय युवा मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं, जैसे अवसाद और चिंता से जूझ रहे हैं, क्योंकि वे सामाजिक अलगाव और आर्थिक दबाव का सामना करते हैं.

आज का भारत एक तेजी से विकसित हो रहा देश है. यहाँ अवसरों की कोई कमी नहीं है, बस उन्हें पहचानने और उनका उपयोग करने की आवश्यकता है. भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम है. 2023 तक, भारत में 1 लाख से अधिक स्टार्टअप हैं, जिनमें से 100 से अधिक यूनिकॉर्न हैं. ये स्टार्टअप युवाओं को नए प्रयोग करने और खुद का व्यवसाय शुरू करने का मौका देते हैं. सरकार की 'स्टार्टअप इंडिया' और 'मुद्रा योजना' जैसी पहले युवाओं को वित्तीय सहायता प्रदान कर रही हैं ताकि वे अपने विचारों को हकीकत में बदल सकें. कृषि में आज भी असीम संभावनाएं हैं. युवा कृषि आधारित उद्योगों में नवाचार ला सकते हैं, जैसे कि जैविक खेती, खाद्य प्रसंस्करण, और कृषि-तकनीकी. 'किसान क्रेडिट कार्ड' और 'प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना' जैसी सरकारी योजनाएं किसानों और कृषि उद्यमियों को मदद कर रही हैं. यह गांवों को आत्मनिर्भर बना सकता है और पलायन को कम कर सकता है. भारत दुनिया का सबसे बड़ा आईटी और बीपीओ हब है. आईटी, डिजिटल मार्केटिंग, ई-कॉमर्स, और तकनीकी क्षेत्रों में युवाओं के लिए अनगिनत अवसर हैं. 'डिजिटल इंडिया' और 'मेक इन इंडिया' जैसी पहले देश में तकनीकी विकास को बढ़ावा दे रही हैं. 'स्किल इंडिया मिशन' के तहत सरकार युवाओं को ऐसे कौशल प्रदान कर रही है जो उन्हें रोजगार योग्य बनाते हैं.

जब युवा विदेश चले जाते हैं, तो गाँवों में काम करने वाले हाथों की कमी हो जाती है. कृषि भूमि खाली पड़ी रहती है या कम उत्पादकता के साथ ठेके पर दी जाती है. इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रौनक खो जाती है. सबसे बड़ी मार बुजुर्ग माता-पिता पर पड़ती है, उन्हें अकेलापन और असुरक्षा से जूझना पड़ता है. कई बार तो उन्हें वृद्धाश्रमों में रहने को मजबूर होना पड़ता है. परिवार के ताने-बाने में भी दरारें आती हैं, क्योंकि विदेश बसे बच्चे धीरे-धीरे अपनी संस्कृति और जड़ों से कट जाते हैं. विदेशों में रहने से युवा अपनी संस्कृति, भाषा और परंपराओं से दूर हो जाते हैं. वे अक्सर पश्चिमी जीवन शैली को अपना लेते हैं, जिससे भारतीय संस्कृति की विरासत कमजोर होती है.

अब सवाल यह है कि क्या विदेश जाना ही एकमात्र विकल्प है? यदि कोई युवा विदेश में छोटे-मोटे काम कर सकता है, तो वही काम वह अपने ही देश में क्यों नहीं कर सकता? फर्क केवल सोच और दृष्टिकोण का है. भारत में 140 करोड़ से अधिक की आबादी है, जो एक विशाल बाजार और असीम मानवीय संसाधन प्रदान करती है.आत्मनिर्भरता, मेहनत और लगन से किए गए कार्य से ही वास्तविक सम्मान और संतोष मिलता है. युवाओं को यह समझना होगा कि अपनी मिट्टी से जुड़कर आगे बढ़ने में जो संतोष है, वह पराए देश में छोटे काम करके भी हासिल नहीं हो सकता. यह बदलाव सोच से शुरू होता है. हमें युवाओं को यह प्रेरणा देनी होगी कि वे अपने हुनर और क्षमता का इस्तेमाल अपने देश की उन्नति में करें. विदेश जाकर अकेले सपने पूरे करने से बेहतर है कि अपने गाँव और समाज को साथ लेकर समृद्धि की ओर बढ़ें. सरकार को भी ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के अवसरों को बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए. निजी क्षेत्र को भी इन क्षेत्रों में निवेश के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. जब भारत के युवा अपनी ही भूमि पर अपनी क्षमताओं का पूरा उपयोग करेंगे, तभी भारत न केवल आर्थिक दृष्टि से सशक्त बनेगा, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से भी समृद्ध होगा.

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