हिन्दी सिनेमा में दिलीप कुमार को ट्रेजिडी किंग कहा गया तो राज कपूर शोमैन थे। वहीं देव आनंद सदाबहार हीरो थे। लेकिन धर्मेंद्र अपनी मासूमियत के लिए जाने जाते हैं। उन्हें मासूमियत का बादशाह कहना अतिश्योक्ति नहीं है। यह विरोधाभास भी है कि उन्हें ही-मैन कहा गया। पर धर्मेंद्र जब किसी फिल्म के किरदार में हों या जब आप उनसे व्यक्तिगत रूप से मिले हों तो उनके अंदर का बच्चा हमेशा दिखता रहा है और उनके चेहरे पर मासूमियत झलकती रही है। जब वह संवाद भी बोलते थे तो उनके बोलने के लहजे और उनके चेहरे के हाव भाव में भी मासूमियत दिखती थी। और इसी खासियत की वजह से उनके व्यक्तित्व को अलग पहचान मिली थी। जिंदगी के आखिरी सफर में भी उनकी यह बादशाहत कायम रही है।
धर्मेंद्र को मैंने बहुत नजदीक से देखा है, सुना है और पढ़ा भी है। मेरे व्यक्तिगत अनुभव में भी धर्मेंद्र एक मासूम बच्चे की तरह ही नजर आए। इसे कुदरत का करिश्मा कहें या उनके अंदर के बच्चे की मासूमियत जिसने उन्हें हर दिल अजीज बनाया। उनमें कोई बनावटीपन नहीं था। वह हर किसी से दिल खोलकर बात करते थे। उनमें कोई छल कपट नहीं थी। बातचीत के दौरान वह अपनी चौड़ी और मोटी हथेली का जिक्र करते थे जिसे वह अपने लिए भाग्यशाली मानते थे। वह एक जिंदादिल इंसान थे। जिंदगी का लुत्फ उठाना जानते थे। वह हमेशा सकारात्मक बातें करते थे। प्यार-मोहब्बत की बातें करते थे। शायद यही वजह है कि उन्हें शायरी से भी प्यार हो गया था। मीडिया के लोगों से भी जब वह बात करते थे तो अपनी लिखी हुई शायरी जरूर सुनाया करते थे। उन्हें शायरी से कब और कैसे प्यार हो गया इसका खुलासा उन्होंने नहीं किया। लेकिन उन्होंने यह जरूर कहा कि शायरी उनकी जिंदगी का हिस्सा है। इस पल में वह अलग अंदाज में जीते हैं। यह भी कहा जा सकता है कि उनकी शायरी में उनकी जिंदगी का मर्म है। एक बार जब उनसे पूछा गया कि आप इतनी अच्छी शायरी करते हैं तो उसे किताब के रूप में क्यों नहीं लाते? इस पर उन्होंने बड़ी मासूमियत से कहा था कि यह तो मेरी जिंदगी है यह मेरी महबूबा है इसे किताबों में कैद करना नहीं चाहता। लेकिन धर्मेंद्र अपनी शायरी सोशल मीडिया पर भी पोस्ट किया करते थे। इंस्टाग्राम पर उन्होंने अपनी शायरी सुनाई है जो इस तरह है-सब कुछ पाकर भी हासिल-ए-जिंदगी कुछ भी नहीं, कमबख्त जान क्यों जाती है जाते हुए। पता नहीं कहां ले जाएंगे, कौन ले जाएगा, साथ ले जाएंगे। खैर, यह इंसानी फितरत है कि इकट्ठा करते रहो। अपना ख्याल रखो। लाइफ एंजॉय करो। आप सभी को प्यार।
अलग शख्सियत के होने के साथ-साथ धर्मेंद्र ने सिनेमा और परिवार के बीच का फासला हमेशा चौड़ा ही रखा। वह खुद भी फिल्मी पार्टियों में कम जाया करते थे। परिवार को इस चकाचौंध की दुनिया से अलग रखा करते थे। बेटे सनी देओल और बॉबी देओल के बाद पोते करण देओल और राजदीप देओल ने सिनेमा में कदम जरूर रखा। लेकिन उन्होंने बेटियों अजीता और विजीता को इस दुनिया से दूर रखा। धर्मेंद्र की पहली पत्नी प्रकाश कौर को भी बहुत कम लोगों ने देखा है। कोमल हृदय और मोहब्बत को गहराई से समझने वाले धर्मेंद्र ने ड्रीम गर्ल हेमालिनी के प्यार में भी कैद हुए। उनसे उनकी दो बेटियां ईशा और अहाना हैं। हिंदू परिवार में दो शादियां काफी संवेदनशील मामला होता है। धर्मेंद्र और उनका परिवार इस मामले में बातचीत नहीं करते। कई सालों बाद सनी और बॉबी को ईशा और अहाना के साथ देखा गया। लेकिन हेमामालिनी के साथ उनकी बेटियों को देओल परिवार का सदस्य के रूप में स्वीकार करने की बात उजागर नहीं हुई।
धर्मेंद्र जितने मासूम थे उतने ही ज्यादा वह संवेदनशील इंसान भी थे। कई ऐसे मौके आए हैं जब धर्मेंद्र ने बच्चों की तरह अपनी आंखों से आंसू बहाए हैं। ये खुशी के आंसू थे। एक मौका फिल्म फेअर लाइफटाइम एचिवमेंट अवार्ड से सम्मानित होने का भी था। दिलीप कुमार से यह अवार्ड लेते हुए धर्मेंद्र भावुक हो गए थे। उनकी आंखें डबडबा गई थी। उसी मंच से उन्होंने कहा था कि इतनी सारी सफल फिल्मों और लगभग सौ लोकप्रिय फिल्मों में काम करने के बावजूद उन्होंने कभी भी सर्वश्रेष्ठ अभिनेता की श्रेणी में कोई फिल्मफेयर पुरस्कार नहीं जीता। उनकी भावनाओँ का कद्र करते हुए तब दिलीप कुमार ने भी अपनी भावनाएं व्यक्त करते हुए कहा था कि जब भी मैं सर्वशक्तिमान ईश्वर से मिलूंगा, मैं उनके सामने अपनी एकमात्र शिकायत रखूंगा कि तुमने मुझे धर्मेंद्र की तरह सुंदर क्यों नहीं बनाया। धर्मेंद्र की सुंदरता को लेकर दिलीप कुमार की टिप्पणी में काफी दम था। तभी तो हैंडसम धर्मेंद्र को सत्तर के दशक के मध्य में दुनिया के सबसे सुंदर पुरुषों में से एक चुना गया था। अब इसे संयोग ही कहा जाएगा कि जिस तरह से धर्मेंद्र सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के पुरस्कार से वंचित रहे उसी तरह भाजपा के पूर्व सांसद और पद्म भूषण से सम्मानित होने के बावजूद वह राजकीय सम्मान के साथ विदा होने से भी वंचित रह गए।
धर्मेंद्र ने अपने अभिनय से करोड़ों दिलों पर राज किया। उनके अभिनय में कोई बनावटीपन नहीं था। वह जीवंत अभिनय करते थे। उन्होंने तीन सौ से ज्यादा फिल्मों में काम किया था। शोले, सत्यकाम, चुपके चुपके, अनुपमा, जॉनी गद्दार, फूल और पत्थर, सीता और गीता, यादों की बारात, धरम वीर, लोफर जैसी फिल्मों में उनके अलग-अलग किरदार को समझा जा सकता है। वह अपने सिनेमाई किरदार में जितने ईमानदार थे उतने ही अपने निजी जीवन में भी थे। यही वजह है कि वह राजनीति में सफल नहीं हो पाए। पंजाब के गांव से रिश्ता रखने वाले धर्मेंद्र किसानों के हक की भी बात करते थे। लेकिन वह विवादों से खुद को दूर रखते थे। इसलिए मुंबई में जिस तरह से अपना बंगलो बनाया है उसमें उनका पूरा परिवार रहता है और उसमें सारी सुविधाएं हैं। यहां तक कि खेल का मैदान भी है जहां हर तरह के खेल खेलने की सुविधा है। जिम भी आधुनिक है। धर्मेंद्र को जब गांव की जिंदगी जीने की इच्छा होती थी तो वह फार्म हाउस चले जाते थे और ऑर्गेनिक खेती भी कर लेते थे।