व्रत कितने प्रकार के होते हैं और उनका अर्थ क्या है?

व्रत कितने प्रकार के होते हैं और उनका अर्थ क्या है?

प्रेषित समय :21:17:02 PM / Tue, Apr 30th, 2024
Reporter : reporternamegoeshere
Whatsapp Channel

व्रत के प्रकार

व्रत कई प्रकार के होते हैं जैसे एकभुक्त, नक्त, चान्द्रायण, अयाचित आदि. इन्हें रखने का अपना तरीका और नियम होता है. व्रती को चाहिए कि वो पूरे विधि विधान से व्रत कार्य को पूर्ण करे. इस लेख में हम व्रत के प्रकार को प्रस्तुत कर रहे हैं.
यह सभी व्रत – मास, पक्ष, तिथि, वार, नक्षत्र, योग, करण, समय और देवपूजा से सहयोग रखते हैं. यथा–वैशाख, कार्तिक और माघ के ‘मास’ व्रत. शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष के ‘पाक्षिक’ व्रत. चतुर्थी, एकादशी और अमावस्या आदि के ‘तिथि’ व्रत. सूर्य, सोम और मंगल आदि के ‘वार’ व्रत. श्रवण, अनुराधा और रोहिणी आदि के ‘नक्षत्र’ व्रत. व्यतीपातादि के ‘योग’ व्रत. भद्रा आदि के ‘करण’ व्रत और गणेश, विष्णु आदि के ‘देव’ व्रत स्वतंत्र हैं.
एकभुक्त

‘एकभुक्त व्रत’ के तीन भेद हैं—स्वतंत्र, अन्यांग और प्रतिनिधि. आधा दिन – होने पर ‘स्वतंत्र’ एकभुक्त होता है, मध्याह्न में ‘अन्यांग’ किया जाता है और प्रतिनिधि आगे-पीछे हो सकता है.
नक्त

‘नक्त व्रत’ रात में किया जाता है. गृहस्थ को चाहिए कि विशेष रूप से रात होने पर इस व्रत को करे. संन्यासी तथा विधवा सूर्य की मौजूदगी में यह व्रत रखें.
अयाचित

‘अयाचित व्रत’ में बिना मांगे अर्थात याचना किए बगैर जो कुछ भी मिले, उसी से निषेधकाल बचाकर दिन या रात में जब भी अवसर (केवल एक बार) मिले, भोजन करें. यहां यह स्मरणीय है कि भितभुक् में प्रतिदिन दस ग्रास भोजन करें. अयाचित और मितभुक्, दोनों ही व्रत परम सिद्धि देने वाले हैं.
चान्द्रायण

चन्द्र की प्रसन्नता, चन्द्रलोक की प्राप्ति या पापों की निवृत्ति के लिए ‘चान्द्रायण’ व्रत किया जाता है. यह व्रत चन्द्रकला के समान बढ़ता-घटता है.
इसे इस प्रकार समझे—शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को एक, द्वितीया को दो, तृतीया को तीन-इस क्रम से रोज एक-एक ग्रास बढ़ाते हुए पूर्णिमा को 15 ग्रास भोजन करें, फिर इस क्रम को अगले पक्ष में एक-एक ग्रास घटाते रहें. अर्थात कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को चौदह, द्वितीया को तेरह, तृतीया को बारह, इसी क्रम में घटाकर चतुर्दशी (चौदस) को एक और अमावस्या को निराहार रहने से एक ‘चान्द्रायण’ होता है. यह ‘यवमध्य चान्द्रायण’ है.
यवमध्य क्या है?

यव का अर्थ है—जौ का दाना. जैसे जौ आदि धान्य अंत में पतला और मध्य में मोटा होता है, उसी प्रकार एक ग्रास से आरम्भ कर मध्य तक पन्द्रह ग्रास कर फिर धीरे-धीरे एक-एक ग्रास घटाकर अगले पन्द्रहवें दिन तक एक ग्रास पर आ जाना, वहीं यह समाप्त होता है. यवमध्य चान्द्रायण किसी मास की शुक्ल प्रतिपदा से ही शुरू किया जाता है.
प्राजापत्य

‘प्राजापत्य’ बारह दिन का होता है. इसमें व्रत के पहले तीन दिनों में प्रतिदिन बाइस ग्रास भोजन करना चाहिए, फिर तीन दिन तक प्रतिदिन छब्बीस ग्रास भोजन करें, फिर तीन दिन तक आपाचित (पूरी तरह पकाया हुआ) अन्न का चौबीस ग्रास भोजन करें, तत्पश्चात् तीन दिन बिल्कुल निराहार रहें. इस प्रकार बारह दिन में एक ‘प्राजापत्य’ होता है. यहां ग्रास से तात्पर्य जितना मुंह में आ सके, उतने से है.
कायिक

शास्त्राघात, मर्माघात और कार्यहानि आदि जनहित हिंसा के त्याग से कायिक व्रत होता है.
वाचिक

सत्य भाषण व प्राणीमात्र में निवैर रहने से वाचिक व्रत होता है.
मानसिक

मन को शांत रखने की दृढ़ता से मानसिक व्रत होता है.
नित्य

पुण्य संचय के एकादशी आदि ‘नित्य’ व्रत जिन्हें लम्बे समय तक किया जाता है.
काम्य

सुख-सौभाग्य के लिए वट-सावित्री आदि काम्य व्रत माने गए हैं.

Astro nirmal

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

पापमोचनी एकादशी व्रत

कुंडली के सभी भावों पर सूर्य और शनि युति का प्रभाव

कुंडली के दसवें भाव में गुरु ग्रह शुभ हो तो व्यक्ति ऊंचा पद प्राप्त कर सकता