भारत और पाकिस्तान में फिर तैनात हो सकते हैं उच्चायुक्त, संघर्षविराम की घोषणा का असर

भारत और पाकिस्तान में फिर तैनात हो सकते हैं उच्चायुक्त, संघर्षविराम की घोषणा का असर

प्रेषित समय :16:56:47 PM / Mon, Mar 1st, 2021

नई दिल्ली. भारत और पाकिस्तान  द्वारा पिछले हफ्ते संघर्षविराम के नियमों पर सहमति जताने  वाली घोषणा के बाद दोनों पड़ोसी नई दिल्ली और इस्लामाबाद में अपने संबंधित उच्चायुक्तों को मिशन में बहाल करने पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं. फरवरी 2019 में पुलवामा आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान ने अपने उच्चायुक्तों को वापस बुला लिया था और दोनों मिशन तब से ही नेतृत्वहीन हैं.

इससे पहले दोनों देशों ने अपने उच्चायुक्तों को वापस ऑपरेशन पराक्रम के दौरान साल 2002 में  बुलाया था. अंतत: तत्कालीन जनरल मुशर्रफ और तब भारत के प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी के बीच 2003 के संघर्ष विराम समझौता हुआ. इसके बाद साल 2004  में सार्क समिट के लिए भूतपूर्व पीएम वाजपेयी पाकिस्तान भी गये थे. कुछ ऐसा ही इस बार भी हो सकता है. हालांकि सूत्रों ने कहा है कि इस साल के अंत में सार्क सम्मेलन के लिए पीएम मोदी के इस्लामाबाद की यात्रा करने की संभावना दूर- दूर तक नहीं' है. हालांकि हमेशा राजनीति ही नहीं बल्कि कई बार डिप्लोमेसी भी काम आती है.

सवाल यह उठ रहे हैं कि आखिर यह नरमी आई कैसे? अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि पिछले तीन महीनों में एनएसए अजीत डोभाल और पाकिस्तानी सिविल और आर्मी नेतृत्व के बीच पर्दे के पीछे बातचीत हुई थी. दोनों देशों के बैठकों में खाड़ी से किसी तीसरे देश के भी बैठक में होने की संभावना जाहिर की गई.  किसी भी पक्ष ने इस दावे से इनकार नहीं किया.

भारत के लिए संघर्ष विराम की घोषणा अच्छी खबर थी. एलएसी पर चीन के साथ डिसएंगेजमेंट की घोषणा के ठीक बाद संघर्षविराम के पालन की घोषणा हुई. भारत-पाक के बीच हुई समझौते के ठीक बाद विदेश मंत्री जयशंकर ने अपने चीनी समकक्ष वांग यी के साथ एक घंटे से अधिक की टेलीफोन पर बातचीत की. वे भारत-चीन के विदेश मंत्रालयों बीच एक हॉटलाइन स्थापित करने के लिए भी सहमत हुए. अभी तक उच्च पदस्थ सूत्रों ने बीजिंग और इस्लामाबाद के बीच किसी भी तरह के पैकेज डील से इनकार किया है.

भारत और पाकिस्तान ने दोनों देशों के बीच नरमी लाने में किसी भी अमेरिकी दबाव का जोरदार खंडन किया है, लेकिन हालांकि यह स्पष्ट है कि दोनों पक्ष व्हाइट हाउस में नए प्रशासन के साथ गलत कदम नहीं उठाना चाहते हैं.  एक ओर जहां कश्मीर , मानवाधिकार समेत अन्य मुद्दों पर बाइडन प्रशासन की टिप्पणी भारत के लिए बेहतर नहीं है तो वहीं पाकिस्तान में बलूचिस्तान और अफगानिस्तान से सटी उसकी सीमा पर अस्थिरता को लेकर भी अमेरिकी रुख उसे परेशान कर सकता है.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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