संजय रोकड़े. मैं मधुमेह की बीमारी का एक मरीज हूं. जिस तरह से इंदौर में कोरोना बेकाबू और अनियंत्रित होते जा रहा है उसे देखते हुए सोचा मैं भी क्यूं न कोरोना वैक्सीन का पहला डोज ले लूं. वैसे तो इस बात की जानकारी थी कि ये अभी 45 साल तक के इंसानों को ही लगाई जा रही है लेकिन एक आम भारतीय नागरिक की तरह जुगाड़ तंत्र को ध्यान में रखते हुए अस्पताल पहुंच गए. वहां सबसे पहले आधार कार्ड मांगा गया. देखने के तत्पल बाद कहा गया कि आपको वैक्सीन नहीं लग सकती. मैंने पूछा क्यूं. बताया गया कि अभी आप 45 साल के नहीं हुए है, कुछ दिन घट रहे है. मैंने अनजाने में ही पूछा कितने दिन, वो बोले आप 23 अप्रैल को 45 साल के होगे.
मैंने कहा क्या फरक पड़ता है, कुछ ही दिन तो घट रहे है. लगा दो. उधर से मेरे कानों में एक ठोस आवाज, वो भी किसी डांट भरे लहजे वाली आई. उस आवाज में ये था कि ये कोई सब्जी भाजी की दुकान नहीं है. कुछ भी अपने हिसाब से कर लें. इसके अपने नियम कायदे है. मैंने डरे सहमे लहजे में पूछा वो क्या? कहने लगे बता दिया न पैतालीस साल से कम उम्र के लोगों को अभी वैक्सीन नहीं लगेगी. मैंने ज्यादा मुंह जोरी नहीं की. मुंह लटकाए वापस चल दिया लेकिन चलते -चलते मेरे दिमाग में ये बात आई कि आखिर बेतहाशा बढ़ती इस बीमारी पर अंकुश लगाने के लिए उम्र का बंधन क्यू जबकि देश के वजीरे आजम से लेकर तमाम राज्यों के मुख्यमंत्री ये कहने में कोई चुक नही कर रहे है कि सब कोई वैक्सीन लगवाएं.
फिर ये बात भी जेहन में आई कि पीएम मोदी तो कह रहे हैं कि देश में वैक्सीन की कमी नहीं है. हर व्यक्ति वैक्सीन लगवाए. फिर कोरोना वैक्सीन लगवाने की उम्र सीमा तुरंत क्यों नहीं हटा रही मोदी सरकार? असल में मुझे तो ये लगता है कि कोरोना वैक्सीन में उम्र का यह बंधन कहीं आपदा में अवसर का मामला तो नहीं है क्योंकि महामारी के इसी दौर में भारत में फार्मा इंडस्ट्री की पौ बारह है. गर ये सच नहीं है तो फिर पेटेंट और जरूरी कंपोनेंट मिलने में दिक्कतों के बावजूद भारत की दवा कंपनियों के लिए मौके कैसे बढ़ रहे है.
दरअसल कोरोना वैक्सीन को लेकर भारत सहित विश्व भर में खेल होने शुरू हो चुके है. महज 18 फार्मा कंपनियां, 14 वैक्सीन, सैकड़ों देश, करोड़ों लोग और अरबों डोज. यह उस कोविड-19 की नई कहानी है जिसकी शुरुआत दिसंबर 2019 में हुई और देखते-देखते मार्च 2020 तक पूरी दुनिया उसकी चपेट में आ गई.
अब इस महामारी से बचने का एकमात्र दीर्घकालिक उपाय वैक्सीन ही जान पड़ता है जो अब खरबों रुपये का बिजनेस बन चुका है. मतलब साफ है कि जहां व्यापार का मामला आ जाता है वहां मानवता दीगर बात हो जाती है. यकीनन भारत में भी कोरोना वैक्सीन में उम्र के बंधन में झोल ही झोल दिखाई दे रहा है.
पर मोदी सरकार को चाहिए कि फार्मा कंपनियों पे नजरे इनायत करने की बजाय कोरोना वैक्सीन लगवाने के लिए अपने नियमों में अब थोड़ा और लचीलापन लाकर परिवर्तन करंे. कोरोना वैक्सीन में उम्र का ये बंधन गले की हड्डी न बन जाए, उसके पहले कुछ शिथिलता बरतनी चाहिए. बता दंे कि अभी कईं राज्यों से ये मांग उठ रही है कि मोदी सरकार को उम्र का बंधन हटा कर सबको समय पर वैक्सीन का लाभ देना चाहिए. गर इस समय वैक्सीन का लाभ सबको न दे पाए तो पैंतालीस साल की बाध्यता हटा कर तत्काल 18 साल कर देनी चाहिए.
कोरोना वैक्सीन के लिए उम्र का बंधन हटाने के आशय का पत्रा लिखने वालों में महाराष्ट्र, राजस्थान और दिल्ली की सरकारें है. गौर करने वाली बात ये है कि इन तीनों राज्यों के साथ ही बीते दिनों ऐसी ही मांग इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने भी कर दी है. सबसे पहले हम जानते है कि महाराष्ट्र सरकार ने क्या लिखा है. इस बारे में महाराष्ट्र सरकार ने केंद्र सरकार को चिऋी लिख कर कहा है कि 25 साल से ऊपर सभी को कोरोना का टीका लगवाने की इजाजत दे देनी चाहिए.
इसके साथ ही कुछ इसी तरह का पत्रा दिल्ली सरकार ने भी लिखा है. दिल्ली की सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी के नेता राघव चड्ढा ने प्रधानमंत्री से सवाल किया है कि क्या भारत सरकार के लिए पाकिस्तान के लोगों के जान की कीमत, भारत के लोगों की जान की कीमत से ज्यादा है. राघव का इशारा वैक्सीन निर्यात के फैसले को लेकर था.
इधर राजस्थान सरकार ने भी गुहार लगाते हुए पत्र लिखा है. राजस्थान के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर रघु शर्मा ने पत्र में लिखा है कि राजस्थान में जिस तेजी से कोरोना संक्रमण फैल रहा है, केंद्र सरकार तुरंत कोरोना वैक्सीनेशन के लिए आयु सीमा को हटाएं, जिससे कम समय में अधिक लोगों का टीकाकरण कर संक्रमण के फैलाव को रोका जा सके.
अब हम बात करते है इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के लिखे पत्र की. आईएमए ने प्रधानमंत्री को पत्र लिख कर सुझाव दिया है कि 18 साल से ऊपर के सभी भारतीयों को कोरोना वैक्सीन लगवाने की इजाजत दे देनी चाहिए.
अब सवाल उठता है कि जब अलग-अलग हलके से ये मांग उठने लगी है तो फिर भी क्यों मोदी सरकार इस पर फैसला तुरंत नहीं ले रही है. हालांकि इस संबंध में बीते दिनों केंद्र सरकार के स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने संवाददाता सम्मेलन बुलाकर सरकार का पक्ष रखा था. इसमें राजेश ने बताया था कि विश्व में हर जगह जिसको जरूरत, होती है उसे पहले टीका दिया गया है न कि जिसको चाहत होती है उसे. इसके लिए दुनिया के कई देशों जैसे ब्रिटेन, अमेरिका फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया का उदाहरण भी दिया. इसके साथ ही कहा कि हर देश ने चरणबद्ध तरीके से उम्र सीमा के साथ टीकाकरण अभियान की शुरुआत की.
पर राजेश ने जो बताया. उसके इतर भी एक सच है. ये सब अच्छे से जानते है कि अमेरिका और ब्रिटेन की आबादी भारत से कम है. वहां की सरकारों ने आबादी कम होने के बावजूद भी वैक्सीन लगाने की रफ्तार तेज रखी और आबादी के एक बड़े हिस्से को टीका लगा चुकी है. वहां कोरोना की लहर धीरे-धीरे कम होते जा रही है. इसे देखते हुए तो भारत सरकार को अपनी रणनीति पर दोबारा से विचार करना चाहिए. दो हफ्ते पहले तक भारत ने जितने डोज अपने नागरिकों को लगाए थे, उससे कहीं ज्यादा दूसरे देशों की मदद के लिए भेज दिए थे. यह रणनीति कितनी उचित है. सरकार को चाहिए कि पहले देश के नागरिकों को टीका लगे, उसके बाद राजनीतिक साख चमकाने का काम हो पर दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हुआ.
बहरहाल, कोरोना वैक्सीन लगवाने के लिए मोदी सरकार उम्र की सीमा को फिलहाल हटा क्यों नहीं सकती, इसको लेकर विशेषज्ञों के अपने तर्क है. इस मामले में द कोरोना वायरस बुक, द वैक्सीन बुक के लेखक व मुंबई के जसलोक अस्पताल के मेडिकल रिसर्च के डायरेक्टर डाक्टर राजेश पारेख का साफ कहना है कि कोरोना की दूसरी लहर से निपटने के लिए जरूरी है कि उम्र सीमा का बंधन हटे. इसके साथ ही वे कहते है कि कोरोना की दूसरी लहर भारत के कुछ राज्यों में आ चुकी है और यह पहली लहर के मुकाबले तेजी से फैल रही है. सीरो-सर्वे में पता चला कि कुछ इलाकों में लोगों के अंदर कोरोना के खिलाफ एंटी बाडी ज्यादा हैं और कुछ इलाकों में कम. जहां लोगों में एंटी बाडी कम है, वहां हॉटस्पॉट बनने का खतरा ज्यादा है. इस वजह से उन इलाकों में सभी आयु वर्ग के लिए वैक्सीनेशन की इजाजत सरकार को अब दे देनी चाहिए ताकि दूसरी लहर पर जल्द काबू पाया जा सके.
अब आपको केन्द्र सरकार की जनता को वैक्सीन लगाने की रणनीति की तरफ ले चलते है. ये सब जानते है कि भारत सरकार ने पहले चरण में हेल्थ वर्कर्स और फ्रंट लाइन वर्कर्स को टीका लगाने का लक्ष्य रखा था लेकिन तीन महीने बाद भी वो अपना लक्ष्य पूरा नहीं कर पाई. यह एक डरावना आंकड़ा है कि भारत में अब तक केवल पांच फीसदी आबादी को ही वैक्सीन लग पाई है. जबकि ब्रिटेन में 50 फीसद लोगों को वैक्सीन लग चुकी है. अमेरिका और इजरायल में भी वैक्सीनेशन की रफ्तार खासी अच्छी है. इस वजह से वहां मामले कंट्रोल में भी है. सच तो यह है कि मोदी सरकार इन देशों की सरकारों इसे कुछ सीख लेना ही नहीं चाहती.
एक और भयावह जानकारी ये है कि फिलहाल जिस रफ्तार से भारत में वैक्सीन लग रही है, उसे देखते हुए तो लगता है कि यहां सभी लोगों को टीका लगने में तीन साल का वक्त लग सकता है पर उम्र की सीमा को हटा कर इस समय सीमा को कम किया जा सकता है.
ये कितना हास्यास्पद है कि एक तरफ तो हम लोगों को वक्त रहते वैक्सीन नहीं लगा पा रहे है, वहीं दूसरी तरफ वैक्सीन की बर्बादी पर भी रोक नहीं लगा पा रहे है. इस बात को भारत सरकार ने खुद राज्य सरकारों के साथ बैठक में माना था कि वैक्सीन न लग पाने की वजह से वैक्सीन बर्बाद भी हो रही है. आंकड़ों के लिहाज से बात करे तो सात फीसदी वैक्सीन भारत में इसी वजह से बर्बाद हो रही है. अगर उम्र सीमा हटा दी जाए तो इस बर्बादी को रोका जा सकता है.
अब मोदी सरकार को चाहिए कि वैक्सीन की बर्बादी को रोकने के साथ ही सबको वक्त रहते वैक्सीन का डोज मिले, इसके लिए कोई ईमानदार और उचित रणनीति बनानी चाहिए. कोरोना के बढ़ते केसों को लेकर देश में जिस तरह के हालात बन रहे है, वह भयावह है. कोरोना जैसी बीमारी देश के लोगों के लिए काल का कारण न बन जाए, उसके पहले नीतियों में बदलाव कर लेना चाहिए. इस वक्त मोदी सरकार को चाहिए कि कोरोना महामारी के नियंत्रण को लेकर विदेशों में कदम उठाए गए हैं, कम से कम उनका ही अनुसरण करे.
कोरोना के नियंत्रण को लेकर हमारे सामने कई देशों के अच्छे बुरे उदाहरण हैं. ध्यान रहे कि अब से दो महीने पहले इजराइल में ऐसी नौबत आ गई थी कि वहां दूसरी लहर के बीच एक से दो दिन के लिए टीकाकरण अभियान को बंद करना पड़ा था. भारत में जिस तेजी से मामले बढ़ रहे हैं, उसे देखते हुए मोदी सरकार नियंत्रण की नीति पर काम करे. यहां इजरायल जैसी नौबत नहीं आने देना चाहिए कि बीच में ही टीकाकरण रोकना पड़े. ये केन्द्र सरकार की जिम्मेदारी है, इसलिए मोदी सरकार को वक्त रहते इजराइल से सबक लेना चाहिए.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-केन्द्र सरकार ने विदेश निर्मित कोरोना वैक्सीन को मंजूरी देने की प्रक्रिया तेज की
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