दर्द की धूल सिर्फ नारी के ही दामन पर क्यों?

दर्द की धूल सिर्फ नारी के ही दामन पर क्यों?

प्रेषित समय :08:20:09 AM / Thu, Apr 29th, 2021


नाजिश शमीम. नारी की ज़िन्दगी शुरू से लेकर आज तक दर्द भरा सैलाब बनी हुयी है। नारी चाहे कितनी भी आगे बढ़ जाए, ज़्यादा से ज़्यादा कामयाबी हासिल कर ले लेकिन यह पुरूष प्रधान समाज किसी न किसी बहाने से उसे दर्द की दीवारों में कैद करना चाहता है। यह खुशियों के फूलों को खिलते हुए नहीं देख सकता।
समाज के निर्माण में स्त्री पुरुष दोनों का ही अहम स्थान है लेकिन जन्म के बाद जहां लड़के को विशेष महत्व मिलने लगता है, वहीं लड़की के साथ शोषण और गैर बराबरी का सिलसिला शुरू हो जाता है।
अगर स्त्रियों के प्रति शुरू से ही समानता का दृष्टिकोण अपनाया जाता, और यह दृष्टिकोण पुरुषों में भी विकसित किया जाता तो शायद स्त्रियों पर कहीं जुल्म नहीं होते। स्त्रियों के दामन में दर्द की धूल नहीं जमी होती। कहीं कोई न जलाई जाती, न ही तलाक शब्द का निर्माण होता।
आज भी बेटी के जन्म पर चेहरे की मुस्कान खो जाती है और बेटा होने पर कई दिन तक जश्न मनाया जाता है। अफसोस तब होता है जब पढ़ी लिखी अच्छे पदों पर आसीन महिलाएं बाहरी मन से भले ही बेटी बेटे में समानता का डंका पीटें लेकिन उनके मन के किसी कोने में बेटे की चाह बरकरार है।
 लड़कियां माता पिता की ज्यादा देखभाल करती हैं। वैसे भी जब तक हमारे समाज की सोच नहीं बदल जाती, तब तक कुछ नहीं हो सकता। जब तक दहेज का लेन देन खत्म नहीं हो जाता, तब तक महिलाओं की स्थिति में सुधार की उम्मीद नहीं की जा सकती।
शिल्पी की चार बहनें हैं। चारों बहनें सर्विस करती हैं। उसके कोई भाई नहीं है। उसके मां बाप कहीं भी अपनी लड़कियों के लिए शादी की बात चलाते हैं और जब लड़के वालों को यह पता चलता है कि उनके यहां लड़का नहीं है, सिर्फ चार लड़कियां हैं तो वे उनके यहां रिश्ता करने से इंकार कर देते हैं। कितनी दकियानूसी सोच है। जिस घर में लड़के नहीं हों, उस घर की लड़कियों की शादी नहीं हो सकती।
ये कैसे रीति रिवाज हैं। एक दूसरे की खुशियों में आग लगाते हैं, नारी के अरमानों और ख्वाइशों को कुचल देते हैं जब कि वर्तमान सामाजिक माहौल में लिंग भेद का कोई अर्थ नहीं रह गया है। आज सफलता का मापदंड सिर्फ योग्यता है। आज की नारी को ज्यादा से ज्यादा योग्यता हासिल करनी चाहिए, आगे ही आगे बढ़ना चाहिए। अपनी खुशियों की जमीन खुद तलाश करनी चाहिए।
कहीं तो किसी को इन सब पुराने रीति रिवाज और दकियानूसी दीवारों को तोड़ कर बाहर आना होगा, अपनी मंजिल का आशियाना खुद बनाना होगा। आज की नारी को योग्यता, प्यार, एहसास के रास्तों पर चल कर सब को खुश करके अपने  दामन से दर्द की धूल को हटाना है। अपने आप को सबसे आगे बढ़ाना है। अपनी ख्वाहिशों को आसमान से ऊंचा उठाना है। समाज को भी नारी को पुरुष के बराबर समझने का हक देना ही चाहिए। लड़का लड़की को बराबर समझना ही चाहिए!

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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