प्रदीप द्विवेदी. बतौर नाकामयाब प्रधानमंत्री, नरेंद्र मोदी एक्सपोज हो चुके हैं. यह विरोधी ही नहीं, उनके अपने भी कह चुके हैं.
अब यह भी साफ होता जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता भी लगातार कम हो रही है.
खबर है कि- मॉर्निंग कंसल्ट, नामक अमेरिकी संस्था ने कहा है कि नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में सितंबर 2019 से अब तक 22 प्रतिशत अंक की गिरावट आई है.
यही वजह है कि देश का नेतृत्व नितिन गडकरी जैसे सुलझे नेता को सौंपने के सुझाव भी हैं, जिन पर मोदी के सापेक्ष विपक्ष भी ज्यादा भरोसा करता है.
याद रहे, करीब दो हफ्ते पहले बीजेपी के दिग्गज नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने जब गडकरी में अपना भरोसा जताते हुए उन्हें कोविड मैनेजमेंट की जिम्मेदारी देने की सलाह दी थी, तभी से ऐसी चर्चाएं शुरू हो गई थी.
स्वामी ने ट्विटर पर कहा था कि प्रधानमंत्री कार्यालय से कोविड के खिलाफ निर्णायक लड़ाई की उम्मीद नहीं की जा सकती है.
स्वामी ने ट्वीट कर यह भी कहा था कि- भारत कोरोना वायरस महामारी से भी निपट लेगा जैसे इस्लामिक आक्रांताओं और ब्रिटिश उपनेश वादियों से निपटा था. अभी अगर सख्त सावधानियां नहीं बरतीं तो एक और लहर आ सकती है जिसमें बच्चे प्रभावित होंगे, इसलिए मोदी को इस लड़ाई का मोर्चा गडकरी को संभालने देना चाहिए, पीएमओ पर भरोसा करना बेकार है!
जब यह सवाल आया कि- आखिर स्वामी को गडकरी पर इतना भरोसा क्यों है? तो जवाब था- क्योंकि कोविड 19 से निपटने के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर फ्रेमवर्क की जरूरत है जिसमें गडकरी अपनी क्षमता दिखा चुके हैं!
दरअसल, लोकतंत्र की यही सबसे बड़ी कमजोरी है कि यहां योग्यता को लोकप्रियता मात दे देती है और इसीलिए बड़ा सवाल यही है कि- क्या नितिन गडकरी प्रधानमंत्री बन पाएंगे?
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यह बेहद मुश्किल है कि नरेंद्र मोदी त्यागपत्र दे दें और नितिन गडकरी को सत्ता सौंप दें.
नरेंद्र मोदी शुरू से ही सत्ता पर मजबूत पकड़ बनाए रखने की सियासत पर फोकस रहे हैं. यही वजह है कि संघ की पृष्ठभूमि के भी अनेक वरिष्ठ नेताओं को चाहे-अनचाहे सियासी संन्यास आश्रम में भेज दिया गया है.
इतना ही नहीं, केवल कांग्रेस विरोधी नेताओं का मंच बनी जनता पार्टी से दोहरी सदस्यता के मुद्दे पर अलग हो कर बीजेपी बनी, लेकिन मोदी टीम ने विभिन्न दलों के भ्रष्ट नेताओं को लेकर भारतीय जनता पार्टी को फिर से जनता पार्टी का रूप दे दिया है.
इसका असर यह है कि बीजेपी की सैद्धांतिक छवि को तो झटका लगा ही, संघ पृष्ठभूमि के नेताओं का प्रभाव और प्रतिशत भी बीजेपी में कम हो गया है.
जाहिर है, अब नरेंद्र मोदी को हटाकर नितिन गडकरी को प्रधानमंत्री बनाना आसान नहीं है.
सबसे बड़ी बात यह है कि तानाशाही तो दूर, नितिन गडकरी सत्ता हांसिल करने के लिए जोड़तोड़ करने वाले नेता भी नहीं हैं.
ऐसे में केवल एक ही आशा की किरण है- संघ, जो नितिन गडकरी को प्रधानमंत्री बना सकता है, क्या ऐसा हो पाएगा?
आजाद भारत का इतिहास रहा है कि मनमानी करनेवाली हर केन्द्र सरकार को बदलने में संघ ने सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, पर इस बार संघ की भी अग्निपरीक्षा है, क्योंकि मनमानी करने वाली केंद्र सरकार बीजेपी की है!
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-एक की बजाय 10 कंपनियों को दिया जाए कोरोना वैक्सीन बनाने का लाइसेंस : नितिन गडकरी
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