रानी लक्ष्‍मीबाई: वो वीरांगना जिसने ठुकराई अंग्रेजों की 60,000 रुपए की पेंशन

रानी लक्ष्‍मीबाई: वो वीरांगना जिसने ठुकराई अंग्रेजों की 60,000 रुपए की पेंशन

प्रेषित समय :10:25:37 AM / Fri, Jun 18th, 2021

18 जून 1858 इतिहास की वो तारीख जिसमें भारत ने अपनी एक वीरांगना को खो दिया. हम बात कर रहे हैं झांसी की रानी लक्ष्‍मीबाई की जिन्‍होंने आज ही के दिन ब्रिटिश हुकूमत से लड़ते हुए झांसी की रानी लक्ष्‍मीबाई ने अपने प्राण त्‍याग दिए थे. उन्‍हें इतिहास में उस वीरांगना के तौर पर याद किया जाता है जो आज तक लोगों विशेषकर महिलाओं को प्रेरणा देती हैं. ‘खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी,’ आज तक यह स्‍लोगन एक प्रेरणा देने वाला स्‍लोगन है. महारानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नंवबर 1835 को हुआ था. बचपन में मनुबाई के नाम से मशहूर रानी का विवाह सन् 1850 में झांसी के राजा गंगाधर राव से हुआ था. सन् 1851 में वो एक बेटे की मां बनी लेकिन 4 माह बाद ही उसका निधन हो गया. बेटे की मौत के बाद पति गंगाधर की तबियत खराब रहने लगी.

1853 में राजा का निधन हो गया. राजा गंगाधर ने अपने चचेरे भाई के बेटे को गोद लिया था और उसका नाम दामोदर राव था. अंग्रेजों ने दामोदर के राजा बनने के फैसले को गैरकानूनी करार दिया था. इस वजह से रानी को झांसी का महल छोड़ना पड़ना था.

ये माना जाता है कि झांसी की रानी तीन घोड़े प्रयोग करती थीं जिनका नाम पवन, बादल और सारंगी था. ये भी कहा जाता है कि जब रानी बादल पर सवार होकर महल की ऊंची दीवार से कूदी तो बादल ने रानी को बचाने के लिए अपनी जान दे दी, उसके बाद रानी लक्ष्मी बाई पवन का प्रयोग करने लगी थीं. सिर्फ 18 साल की उम्र में अपने पति को खो देने वाली लक्ष्‍मीबाई कमजोर नहीं पड़ीं बल्कि और मजबूत हो गईं.

रानी ने ठुकराई पेंशन भी

उनकी उम्र की वजह से अंग्रेजों ने उन्‍हें झांसी से चले जाने को कहा. ब्रिटिश सरकार ने रानी को 60,000 रुपए बतौर पेंशन देने की बात भी कही मगर देश से प्रेम करने वाली झांसी ने इसे ठुकरा दिया. रानी ने अंग्रेजों से लड़ने की ठानी और अपनी एक सेना तैयार की. उनकी सेना में सिर्फ पुरुष ही नहीं बल्कि महिलाएं भी शामिल थीं. रानी ने कसम खाई थी कि वो किसी तरह से भी ईस्‍ट इंडिया कंपनी के हाथों अपना किला नहीं लगने देंगी.

रानी ने तैयार की अपनी सेना

लक्ष्मी बाई ने झांसी को बचाने के लिए बागियों की फौज तैयार की. उनके इस मिशन में उन्‍हें अपने दोस्त खान ,खुदा बख्‍श, सुंदर – सुंदर, काशी बाई ,लाला भऊ बख्शी, मोती बाई से मदद मिली. सन् 1857 में अंग्रेजी शासन से आजादी का बिगुल बज चुका था और अंग्रेजों का सारा ध्‍यान एक खास क्षेत्र पर हो गया था. इस बीच झांसी में रानी ने 14,000 बागियों की सेना तैयार कर डाली थी. 1858 में जब ब्रिटिश झांसी के अंदर दाखिल हुए तो उन्‍होंने लोगों को लुटना और उन्‍हें मारना-पीटना शुरू किया. अंग्रेजों ने महिलाओं और बच्‍चों की हत्‍या भी करनी शुरू कर दी थी.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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