ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जातक की कुंडली से यह पता चल जाता है की वह मादक पदार्थो का सेवन करता है या नहीं. इससे उसे ठीक करने में भी मदद मिलती है. अच्छी दशा आने पर वह खुद अपना इलाज कराता है और जीवन में सफल रहता है. खाने – पीने वाली वस्तुओ का सम्बन्ध चन्द्रमा से है और राहू के नक्षत्र – आद्रा, स्वाती, शतभिषा में दोनों की उपस्थिति, दुसरे भाव के स्वामी की नीच राशी में मौजूदगी और खुद राहू का साथ बैठना जातक द्वारा मादक पदार्थो के सेवन का स्पष्ट संकेत कराता है. अपनी नीच राशी वृश्चिक में चन्द्रमा अक्सर जातक को मादक पदार्थो का सेवन कराता है. क्रूर गृह शनि, राहू पीड़ित बुध और क्षीण चन्द्रमा इसमें इजाफा करते है.
कलियुग में राहु का प्रभाव बहुत है अगर राहु अच्छा हुआ तो कलेक्टर,या राजनैता बनता है. इसकी शक्ति असीम है. सामान्य रूप से राहु के द्वारा मुद्रण कार्य फोटोग्राफी नीले रंग की वस्तुए, चर्बी, हड्डी जनित रोगों से पीडि़त करता है. राहु के प्रभाव से जातक आलसी तथा मानसिक रूप से सदैव दुःखी रहता है. यह सभी ग्रहों में बलवान माना जाता है तथा वृष और तुला लग्न में यह योगकारक रहता है.
रोग ऊपरी बाधा
ग्रहों से निकलने वाली विभिन्न किरणों के विविध प्रभाव के कारण प्राणी के स्थूल एवं सूक्ष्म शरीर में अनेक भौतिक एवं रासायनिक परिवर्तन होते रहते है. इनमें कुछ प्रभाव क्षणिक होते है. जो ग्रहों के अपने कक्षा में निरंतर संचरण के कारण बनते मिटते रहते है. किन्तु कुछ ग्रह अपना स्थाई प्रभाव छोड़ देते है जैसे रोग व्याधि आदि ग्रह नक्षत्रो के संचरण के अनुरूप आते है.तथा समाप्त हो जाते है.प्रायः इनका सदा ही स्थाई कुप्रभाव देखने में नहीं आया है.किन्तु चोट-चपेट एवं दुर्घटना आदि में अंग भंग या विकलांगता स्थाई हो जाते है.
ऐसे ग्रहों में मंगल, राहू, केतु एवं शनि के अतिरिक्त सूर्य भी गणना में आता है. राहू अन्तरंग रोग या धीमा ज़हर या मदिरापान आदि व्यसन देता है. मंगल शस्त्राघात या ह्त्या आदि देता है. केतु गर्भाशय, आंत, एवं गुदा संबंधी रोग देता है. शनि मानसिक संताप, बौद्धिक ह्रास, रक्त-क्षय, राज्यक्षमा आदि देता है. सूर्य कुष्ट, नेत्र रोग एवं प्रजनन संबंधी रोग देता है. वैसे तों अशुभ स्थान पर बैठने से गुरु राजकीय दंड, अपमान, कलंक, कारावास आदि देता है. किन्तु यह अशुभ स्थिति में ही संभव है.
मादक पदार्थ सेवन
हालाँकि वृश्चिक पर बृहस्पति की द्रष्टि इसमे कुछ कमी करती है और जातक बदनाम होने से बच जाता है. जिस जातक की कुंडली में एक या दो ग्रह नीच राशि में होते है और चन्द्रमा पीड़ित होकर शत्रु ग्रह में दूषित होता है उसमे मादक पदार्थो के सेवन की इच्छा प्रबल होती है. द्वितीय भाव जिसे भोजन, कुटुंब, वाणी आदि का भाव भी कहा जाता है, के स्वामी की स्थिति से भी उसके द्वारा मादक पदार्थों के सेवन का ब्यौरा मिल जाता है. कलयुग में राहू शनि मंगल व् क्षीण चन्द्रमा ग्रहों की मानसिक चिंताओं को उजागर करने में आगे रहते है. शुक्र की अपनी नीच राशि कन्या में मौजूदगी मादक पदार्थों के सेवन का प्रमुख कारण बनती है. नीच गृह लोगो को नशा कराते है, जिससे जातक अपने साथ ही साथ अपने परिवार को भी अपमानित कराता है.
लग्न लग्नेश एवं राहु सम्बन्ध
मेष, सिंह,अपने परिवार को भी अपमानित कुम्भ एवं वृश्चिक लग्न वालो के लिये यदि राहू छठे, आठवें या बारहवें बैठे तों व्यक्ति निश्चित रूप से मदिरा सेवी होता है.वृषभ, कर्क, तुला एवं मकर लग्न वालो क़ी कुंडली में यदि मंगल पांचवें स्थित हो तों यौन रोग या अल्प मृत्यु या नपुंसकता होती है.किन्तु इन्ही लग्नो में यदि मंगल सातवें बैठा हो तों वह व्यभिचारी या परस्त्रीगामी होता है. किसी भी लग्न में यदि केंद्र में राहू-मंगल युति बनती है तों पुरा परिवार ही इस व्यक्ति के कारण धन एवं यश क़ी हानि भुगतता है. नित्य नए उपद्रव खड़े होते है. किसी भी लग्न में यदि मंगल एवं शनि केंद्र में हो तों वह व्यक्ति हो सकता है धनाधिप हो, किन्तु राजकीय दंड एवं सामाजिक बहिष्कार का भागी होता है. किन्तु यदि दशम भाव में मंगल उच्च का होकर शनि के साथ हो तों वह व्यक्ति बलपूर्वक समाज या शासन में अपनी प्रतिष्ठा स्थापित करता है.ऐसा व्यक्ति जघन्य हत्यारा भी हो सकता है यदि लग्न में सूर्य हो.
शनि-राहु युति दुष्परिणाम
किसी भी लग्न में यदि शनि एवं राहू केंद्र में हो तों वह भयंकर गुदा, भगंदर, अर्बुद एवं कर्कट रोग से युक्त होगा.और ऐसी अवस्था में यदि किसी भी केंद्र में मेष राशि का राहू-शनि योग हो तों वह व्यक्ति असाध्य रक्त रोग से युक्त होता है. आज का एड्स रोग इसी ग्रह युति का परिणाम है. देश विदेश के 47 एड्स रोगियों के सर्वेक्षण से यह तथ्य पुष्ट हुआ है.
क्रूर ग्रह-राहु युति दुष्परिणाम
जन्म के समय यदि चन्द्र-मंगल सप्तम एवं सूर्य राहु अष्टम में हो तों वह शिशु विद्रूप- अर्थात लकवा या पक्षाघात से ग्रस्त हो जाता है.यदि चन्द्र मंगल लग्न तथा सूर्य-राहू अष्टम में हो तों बालक विक्षिप्त होता है.यदि सूर्य-शनि-मंगल-राहु किस के जन्म नक्षत्र में एकत्र हो जाय तों उस व्यक्ति की रक्षा भगवान कैसे करेगें यह वही जाने.
राहु अन्य ग्रह युति
यदि सिंह, वृश्चिक, कुम्भ या मेष राशि में सातवें सूर्य-मंगल युति हो तों विवाह क़ी कोई संभावना नहीं बनती है.
राहू के साथ चन्द्र दूसरे और पांचवे घर में होने जातक सट्टा खेलने का बड़ा शोकिन होता है. राहू के साथ बुध कही भी हो किसी भी भाव में हो, सट्टा,लोटरी, जुहा, आदि एबो की तरफ जातक का धयान जायगा.यदि बुध अस्त हो तो जातक जुए में लूट जाता है.राहू के साथ मंगल हो तो यक्ति मारधाड़ में विश्वास रखता है. और आतिशबाजी का शोकिन हो जाता है. राहू के साथ गुरु होने पैर राहू ठीक हो जाता है. और शंनी के साथ होने पर राहू बहूत ख़राब हो जाता है. और इनकी दशा, महादशा में सबकुछ चोपट हो जाता है. अत राहू से पीड़ित जातको के लिए तत्काल राहु का जाप हवन करवाना चाहिए. जो जातक पागल हो गया हो उसे चन्दन की माला पहनाये. तथा राहू के बीज मंत्र का जप गोमेद या सफ़ेद चन्दन की माला से करे.
नशा
लग्न में नीच का वृहस्पति जातक को अफीम का शौकीन बनता है. द्वादश भाव के स्वामी का शत्रु या नीच राशी में होना जातक को नशेडी बनता है. कमजोर लग्न भी मित्र ग्रहों से सहयोग न मिलाने से नशे की तरफ बदता है लग्न पर पाप ग्रहों की द्रष्टि भी मादक पदार्थो का सेवन करती है. पेट, जीभ और स्नायु केन्द्रों पर बुध का अधिकार होता है. बुध को मिश्रित रस भी पसंद है. शुक्र का वीर्य, काफ, जल, नेत्र और कमंगो पर अधिकार है. अत : इन दोनों के द्वितीय भाव से सम्बंधित होने से पीड़ित होने से और द्रष्टि होने से जातक द्वारा मादक पदार्थो का सेवन करने और नहीं करने का पता चलता है. मंगल, शनि, राहू और क्षीण चन्द्रमा की द्रष्टि उत्तेजना बढाती है. जो जातक को नशेडी बनने पर मजबूर कर देती है.
अचानक घटना का घटना
राहु धरातल वाला ग्रह नहीं होने से छाया ग्रह कहा जाता है. लेकिन राहू की प्रतिष्ठा अन्य ग्रहों की भांति ही है.शनि की भांति लोग राहु से भी भयभीत रहते है.दक्षिण भारत में तो लोग राहुकाल में कोई भी कार्य नहीं करते है. राहू को अन्धकार युक्त ग्रह कहा गया है राहू के नक्षत्र आद्रा,स्वाति, और सात्भिसा है. राहु को कन्या राशी का अधिपत्य प्राप्त है. कुछ ज्योतिषी राहु को मिथुन राशी में उच्च का एवं धनु राशी में नीच का मानते है. राहू का वर्ण नीलमेघ के समान है. सरीर में इसे पेट और पिंडलियों में स्थान मिला है गोमेद इसकी मणि, पूर्णिमा इसका दिन, व अभ्रक इसकी धातु है. राहू रोग कारक ग्रह है. काला जादू, हिप्नोटीज्म में रूचि यही ग्रह देता है. अचानक घटने वाली घटनायो के योग राहू के कारण ही होते है.
पंचम भाव से राहु सम्बन्ध
कुंडली में पंचम भाव के स्वामी पर नीच या पीड़ित शनि, राहू की द्रष्टि मादक पदार्थो का सेवन कराती है. सूर्य की नीच राशी तुला में ये स्पष्ट लिखा है की जातक शराब बनाने और बचने वाला होता है. कर्क राशी में मंगल नीच का होता है. अत : वह चंचल मन वाला और जुआ खेलने में विशेष रूचि रखता है. बुध की नीच राशी मीन है. यह जातक को चिंतित रखता है और उस की स्मरण शक्ति भी ख़राब होती है. कन्या में शुक्र पीड़ित होकर मद्यपान की और ले जाता है. शनि मेष में नीच होता है. वह जातक से जालसाजी, फरेब करने के साथ ही नशा भी करता है. राहू वृश्चिक में नीच का होता है, वह जातक को शराब के आलावा कोकीन, अफीम, हिरोइन आदि का भी टेस्ट कराना चाहता है.
संतान सुख हानि
यदि अवैध रूप से किसी स्त्री/पुरुष को सहगामी बना भी लिया जाय तों संतान सुख तों कदापि नहीं होगा. कारण यह है कि प्रजनन द्रव्य या शुक्ररस शुरू से ही नहीं होता है. यदि दत्तक संतान ग्रहण भी कर लिया जाय तों वह जीवित नहीं बचती है.
इस प्रकार विविध ग्रहों क़ी भाव स्थिति या युति अशुभ अवस्था में बुरी आदतों को जन्म एवं बढ़ावा देता है.
आयुर्वेद में छ : रसो – मधुरम, अमल, लवण, कषाय, कटुक व् रिक्त का उल्लेख मिलता है. ज्योतिष में शुक्र, मंगल, वृहस्पति सूर्य व् चन्द्रमा को इनका स्वामी माना जाता है. राहू, शुक्र, चन्द्र व् पीड़ित बुध की दशा, अन्तर्दशा, प्रत्यंतर दशा आदि तथा क्रूर ग्रहों मंगल व् शनि की द्रष्टि जातक को नशे की ओर धकेलती है. मजबूत वृहस्पति की द्रष्टि इसमे कमी रहती है. हालाँकि यह आवश्यक है की उस लग्न विशेष में वृहस्पति मारक की भूमिका में न हो. यूनानी लोगो में एमीथिष्ट ( कटेला ) से बने प्यालो में शराब पीने का प्रचलन था. माना जाता है कि इससे नशा करने वाले जातक को कटेला पहनाकर नशा छुड़वाया जा सकता है. संभव है की वह पूरी तरह नशा छोड़ दे.
हठ संघर्ष द्वारा सफलता की ओर
राहू की अपनी कोई राशी नहीं है. वह जिस ग्रह के साथ बैठता है वहा तीन कार्य करता है.
1️⃣उस ग्रह की सारी शक्ति समाप्त कर देता है
2️⃣ उसकी शक्ति स्वयं ले लेता है.
3️⃣उस भाव में अत्यदिक संगर्ष के बाद सफलता देता है.
राहू कूटनीति का सबसे बड़ा ग्रह है राहू संगर्ष के बाद सफलता दिलाता है यह कई महापुरशो की कुंडलियो से सपष्ट है.राहू का 12 वे घर में बैठना बड़ा अशुभ होता है क्योकि यह जेल और बंधन का मालिक है 12वे घर में बैठकर अपनी दशा, अंतरदशा में या तो पागलखाने में या अस्पताल और जेल में जरूर भेजता है.किसी भी कुंडली में राहू जिस घर में बैठता है 19वे वर्ष में उसका फल दे कर 20 वे वर्ष में नस्ट कर देता है राहू की महादशा 18 वर्ष की होती है.राहू चन्द्र जब भी एक साथ किसी भी भाव में बैठे हुए हो तो चिंता का योग बनाते है.
विविध परेशानियों का सामना करना पड़ता हैं.
नौकरी व व्यवसाय में बाधा
मानसिक तनाव व अशांति
रात को नींद न आना
परीक्षाओं में असफलता प्राप्त होना.
कार्य में मन न लगना
बेबुनियाद ख्यालों में उलझे रहना.
अचानक धन का अधिक खर्च होना या धन रूक-रूक कर प्राप्त होना
बिना सोचे समझे कार्य करना.
दुर्जनों व दुष्टों से मित्रता
पति-पत्नी में तनाव व नीच स्त्रियों से सम्बन्ध होना.
पेट व आंतडि़यों के रोग होना
बनते कार्यो में रूकावट होना.
पुलिस व कानूनी परेशानियां तथा सरकार की तरफ से दण्ड
घर व भौतिक सुखों की कमी
धन, चरित्र, स्वास्थ्य की तरफ से लापरवाही.
महत्वाकांक्षा पूर्ति में सहायक
राहु के शुभ होने पर व्यक्ति को कीर्ति, सम्मान, राज वैभव व बौद्धिक उपलब्धता प्राप्त होती हैं परन्तु राहु के अशुभ होने पर जो राहु की महादशा, अन्र्तदशा, प्रत्यन्तर व द्वादश भावों में राहु की स्थिति के दौरान व्यक्ति को कई तरह की परेशानियों व कष्टों का सामना भोगना पड़ता हैं. मिथुन, कन्या, तुला, मकर और मीन राशियाँ राहु की मित्र राशि है तथा कर्क और सिंह शत्रु राशिया है. यह ग्रह शुक्र के साथ राजस तथा सूर्य एवं चन्द्र के साथ शत्रुता का व्यवहार करता है. बुध, शुक्र, गुरू को न तो अपना मित्र समझता है और नहीं उससे किसी प्रकार की शत्रुता ही रखता है यह अपने स्थान से पाँचवे, सातवे, नवे स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखता हैं.
जन्म कुण्डली के विभिन्न भावों में स्थित राहु अपने दोषी प्रभाव को निम्नानुसार प्रकट करता है.
प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ, सप्तम, नवम, दशम तथा एकादश भाव में राहु की स्थिति शुभ नहीं मानी जाती हैं. परन्तु कुछ विद्वान तीसरे, छठे तथा ग्यारहवें भाव राहु की स्थिति को शुभ भी मानते हैं.
नीच अथवा धनु राशि का राहु, अशुभ फल देता हैं.
✅यदि राहु शुभ भावी का स्वामी होकर अपने भाव से छठे अथवा आठवें स्थान पर बैठा हो तो अशुभ फल देता हैं.
✅ यदि राहु श्रेष्ट भाव का स्वामी होकर सूर्य के साथ बैठा हो अथवा शुक्र व बुध के साथ बैठा हो तो अशुभ फल देता हैं.
✅सिंह राशिस्थ अथवा सूर्य से दृष्ट राहु अशुभ होता हैं.
✅ जन्म कुण्डली में राहु की अशुभ स्थिति हो तो राहु कृत पीड़ा के निवारणार्थ राहु-शांति के उपाय करे.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-जानें ज्योतिष आचार्य पं. श्रीकान्त पटैरिया से 3 जुलाई 2021 तक का साप्ताहिक राशिफल
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