संतान पीड़ा: राहु या बृहस्पति?

संतान पीड़ा: राहु या बृहस्पति?

प्रेषित समय :20:57:37 PM / Wed, Jul 7th, 2021

*सन्तान उत्पत्ति से सम्बन्धित बाधाएं जन्म लग्न, चन्द्र लग्न व बृहस्पति से पंचम भाव में देखी जाती हैं. सूर्य, मंगल, शनि, राहु, केतु जैसे ग्रह पाप ग्रह कहलाते हैं या क्रूर ग्रह कहलाते हैं और ये पाँचवें भाव में स्थित रहकर सन्तान उत्पत्ति में बाधाएँ उत्पन्न करते हैं. अगर सन्तान उत्पन्न हो गई है तो आगे उसके विकास में बाधाएँ उत्पन्न करते हैं.

*वैदिक ऋषियों ने वर्तमान जन्म की ग्रह स्थितियों के आधार पर यह तक पता लगा लिया कि पिछले जन्म में क्या पाप किये थे या किसका शाप लगा है जिसके कारण इस जन्म में सन्तान उत्पत्ति में बाधा आ रही है या गर्भ धारण के बाद भी सन्तान नष्ट हो जाती है और जन्म ही नहीं लेती. यदि जन्म पत्रिका के पंचम भाव में बाधा कारक ग्रह सूर्य हो तो शास्त्रों में कहा गया है कि भगवान शम्भू और गरुड़ के प्रति अपराध किया है या पितरों का शाप है. यदि यह बाधा कारक ग्रह चन्द्रमा हैं तो माता या किसी सधवा स्त्री के मन को दुःखी करने के कारण या देवी के शाप के कारण संतान में बाधा है. यदि पांचवें भाव में मंगल हो तो ग्राम देवता या भगवान कार्तिकेय के प्रति अवज्ञा या भाई-बन्धुओं के शाप के कारण सन्तान नहीं हो रही है. यह सब कथाएँ पिछले जन्म की हैं और शाप प्रमुख कारण है.यदि बाधाकारक ग्रह बुध है तो गत जन्म में बिल्ली के मारने के कारण या मछलियों के या अन्य प्राणियों के अण्डों को नष्ट करने के कारण या बालक-बालिकाओं के शाप से या भगवान विष्णु की नाराजगी से सन्तान नहीं हो रही है.*

*यदि पंचम भाव में बृहस्पति हैं तो इस व्यक्ति ने इस जन्म में या पूर्व जन्म में फलदार वृक्षों को कटवाया है या गुरु से द्रोह किया है. शुक्र के कारण यदि सन्तान नहीं हो रही हो तो पुष्प के वृक्षों को कटवाने के कारण या गाय के प्रति कोई अपराध करने के कारण या किसी साध्वी स्त्री के शाप से सन्तान उत्पन्न नहीं हो रही है या सन्तान नष्ट हो जाती है. यक्षिणी का शाप भी इसका कारण माना गया है. यदि शनि ग्रह अशुभ हैं तो गत जन्म में पीपल का पेड़ कटवाने के कारण या पिशाच, प्रेत या यमराज के शाप से सन्तान हानि का योग बना है.* 
*यदि लग्न, चन्द्रमा या बृहस्पति से पंचम भाव में राहु हो या पाँचवे भाव के स्वामी के साथ राहु बैठे हों तो गत जन्म में सर्पों के प्रति अपराध करने के कारण उनका शाप मिला है. ब्राह्मण के प्रति अपराध करने से केतु नाराज हो जाते हैं. केतु का शाप भी सन्तान नहीं होने देता. शनि का ही एक छोटा भाग मांदि कहलाता है. यदि पाँचवें भाव में शुक्र और चन्द्रमा के साथ यदि मांदि मिले तो शास्त्र कहते हैं कि इस व्यक्ति ने गत जन्म में गाय या युवा स्त्री की हत्या की है. परन्तु यदि पाँचवें भाव में केतु या बृहस्पति के साथ मांदि भी हो तो इस व्यक्ति ने गत जन्म में किसी ब्राह्मण की हत्या की हुई है. मांदि की गणना में विद्वान ज्योतिषी की मदद लेनी ही चाहिए.एक प्रसिद्ध विद्वान हुए हैं मंत्रेश्वर. ये 13वीं शताब्दी में हुए थे. इन्होंने अपने ग्रंथ फलदीपिका में सन्तान बाधाकारक ग्रहों को शांत करने के उपाय बताये हैं.*

 *सेतुस्नानं कीर्तनं सत्कथायाः
*पूजां शंभोः श्रीपतेः सदूव्रतानि..
*दानं श्राद्धं कर्जनागप्रतिष्ठां*
*कुर्यादेतैः प्राप्नुयात्सन्ततिं सः.. 

*अर्थात:-समुद्र स्नान, सत्कथाओं का आयोजन, शिवजी की पूजा, भगवान विष्णु के व्रत ,दान, श्राद्ध और नाग पूजा करने से सन्तान प्राप्ति हो सकती है. ऋषि पाराशर भी कहते हैं कि बहुत सारे मामलों में सर्प शाप के कारण सन्तान प्राप्ति में बाधा आती है. इसीलिए नागमण्डल की प्रतिष्ठा कराकर एक बहुत छोटा सा सोने का नाग बनाकर उनकी पूजा की जानी चाहिए, जिससे सर्प प्रसन्न देवता होकर कुल बढ़ने का आशीर्वाद देते हैं. मैंने पंचम भाव से पीड़ा में राहु को जब कारण पाया तो इस बात की पुष्टि होती है कि ज्योतिष में राहु का समीकरण सर्प से किया गया है. हमारी शोध के विषय यह रहे कि किसी शरीर में जो - जो भी सर्पाकृति की रचनाएँ हैं उन पर राहु का प्रभाव है. सन्तान के मामले में स्त्री के शरीर में फैलोपियन ट्यूब जो कि गर्भाशय के पास होती है, वह फैलोपियन ट्यूब के माध्यम से ही पुरुष का स्पर्म प्रवेश करता है व ओवम् से मिलन करता है, तब गर्भ धारण होता है. जब-जब मैंने जन्म पत्रिका में राहु को दोषी पाया तब-तब उस स्त्री की फैलोपियन ट्यूब में इन्फेक्शन देखने को मिला.*

*बृहस्पति को संतान कारक माना गया है. जिसकी जन्म पत्रिका में बृहस्पति कमजोर हों उसके या तो संतान होती ही नहीं है या होने के बाद भी सुख नहीं देती है. ऐसे मामलों में बृहस्पति का पूजा-पाठ मदद कर जाता है. जहाँ राहु का दोष सन्तानोत्पत्ति में बाधा उत्पन्न करता है वहीं बृहस्पति जन्म के बाद सन्तान सम्बन्धी कष्टों को बताता है. जिन लोगों की संतानें उनके साथ नहीं रहती हैं, एक ही शहर में रहते हुए भी सन्तान पास नहीं आती हैं या माता - पिता का ध्यान नहीं रखती हैं या किसी अन्य तरह से कष्ट देती है तो बृहस्पति का पूजा - पाठ इसमें मदद कर सकता है. चूंकि स्ति्रयों की जन्म पत्रिका में तो बृहस्पति पुत्र और पति दोनों के ही कारक होते हैं इसलिए उनके लिए तो बृहस्पति का व्रत और पूजा पाठ बहुत मदद करने वाला है. प्रायः करके बृहस्पति वार के व्रत में केले का पूजन करके जल चढ़ाया जाता है और व्रत खोलते समय बिना नमक का भोजन किया जाता है. इसके अलावा केले के वृक्ष पर ही चने की दाल, हल्दी और गुड़ अर्पण किया जाता है और पीले वस्त्र धारण किये जाते हैं.
*यदि गर्भ धारण से पूर्व ही राहु और बृहस्पति का मंत्र पाठ स्त्रियां कर लें तो राहु और गुरु सम्बन्धित समस्याएँ नहीं आएंगी. इनके यह मंत्र लाभकारी होंगे.*

 *बृहस्पति के लिए -
 *_देवानां च ऋषीणां च गुरुकांचन सन्निभम्._
 *_बुद्घि भूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम्॥_
 *राहु के लिए 
 *_अर्धकायं महावीर्यं चन्द्रादित्य विमर्दनम्._ 
 *_सिंहिकागर्भ सम्भूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम्॥_

*ये मंत्र गर्भाधान से पूर्व ही उचित रहते हैं. परन्तु संतान जन्म लेने के बाद राहु की भूमिका कम हो जाती है और बृहस्पति का पूजा-पाठ चाहे व्यक्तिगत और चाहे अनुष्ठानिक रूप में घर-परिवार में करवाया जा सकता है.
Astro nirmal

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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