तृणमूल कांग्रेस बंगाल में शानदार जीत के बाद पार्टी ने फिर से पूर्वोत्तर के राज्यों पर ध्यान केंद्रित किया है. त्रिपुरा, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश तथा मेघालय में पार्टी पूर्व में भी चुनाव लड़ती रही है तथा सीटें भी जीती हैं. लेकिन पिछले कुछ सालों से भाजपा की पकड़ मजबूत होने के कारण तृणमूल कमजोर पड़ी है. तृणमूल कांग्रेस से जुड़े सूत्रो के अनुसार, मणिपुर और त्रिपुरा ऐसे राज्य हैं जहां पार्टी को छह से दस फीसदी तक वोट पूर्व के चुनावों में मिले हैं. इन राज्यों में मिले अच्छे मतों से ही पार्टी को राष्ट्रीय दल का दर्जा मिला है, जिसके लिए तीन राज्यों में छह फीसदी से ज्यादा वोट मिलने की शर्त है.
दरअसल, 2014 से पूर्व यह देखा गया था कि पूर्वोत्तर राज्यों में कांग्रेस के मतों पर तृणमूल सेंध लगा रही थी. लेकिन बाद में जब भाजपा का विस्तार हुआ तो तृणमूल के मत प्रतिशत में गिरावट आई और उसके अनेक विधायक भाजपा में शामिल हो गए. त्रिपुरा में 2017 में तृणमूल के छह विधायक भाजपा में चले गए थे और भाजपा बिना चुनाव लड़े वहां विपक्ष की पार्टी बन गई थी जबकि पहले तृणमूल विपक्ष में थी. इसी प्रकार हाल में मणिपुर एवं अरुणाचल प्रदेश में भाजपा के एक-एक विधायक ने भाजपा की शरण ले ली थी. मेघालय में भाजपा का एक विधायक था जिसने पार्टी छोड़ दी थी.
पूर्वोत्तर के तीन राज्य त्रिपुरा, असम एवं मेघालय में बंगाली आबादी खासी तादात में है. इसलिए नई रणनीति के तहत इन तीन राज्यों पर तृणमूल का फोकस रहेगा. त्रिपुरा में 65, असम में 28 तथा मेघालय में 10 फीसदी बंगाली वोटर होने का अनुमान है. इन राज्यों में बंगालियों में पैठ बनाने के साथ-साथ छोटे दलों के साथ गठबंधन भी कर रही है. त्रिपुरा में 2023 में चुनाव हैं इसलिए वहां पार्टी विशेष ध्यान दे रही है तथा पार्टी की कोशिश है कि सत्ता विरोधी लहर का फायदा उठाने के साथ-साथ वाम मोर्चे के विकल्प के रूप में खुद को पेश करे. पार्टी ने कुछ समय पूर्व चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की भी मदद ली थी.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी मना रही है खेला होबे दिवस, चुनाव में दिया था खेला होबे का नारा
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