प्रदीप द्विवेदी. केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का नेशनल मोनेटाइजेशन पाइपलाइन को लेकर कहना है कि एक भी संपत्ति बेची नहीं जाएगी, उसे लीज पर दिया जाएगा और फिर उसका स्वामित्व अनिवार्य रूप से वापस लिया जाएगा.
यह बयान कागजों में जितना आकर्षक है, आमजन के लिए उतना ही परेशान करने वाला है.
मोदी सरकार चाहे तो देश की वे तमाम संपत्तियां बेच दे, जहां जनता की आजादी का सीधा संबंध नहीं हो और अपने लिए करोड़ो रुपयों के हवाई जहाज खरीदे, सत्ताधीशों के लिए बंगले बनवाए, पार्टी के लिए चंदा ले, लेकिन उन संपत्तियों को लीज पर भी नहीं दे, जहां आमजन की आजादी जुड़ी है, जैसे रेलवे?
कहने को तो लीज पर संपत्ति लेनेवाले 'मासूम उद्योगपति' बेहद अनुशासित और सरकार को कमा कर देनेवाले 'दानवीर' हैं, लेकिन जब किराएदार के नाम पर संपत्ति उनके हाथ में आ जाती है, तो उनका 'विनम्र व्यवहार' आम आदमी की आजादी पर सवालिया निशान लगा देता है?
सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि कोई संस्थान यदि घाटे में चल रहा है, तो कोई उद्योगपति उसे क्यों लेगा? और यदि फायदे में है, तो सरकार क्यों देगी? मतलब साफ है.... कई सेवा संस्थानों को व्यावसायिक संस्थान में बदलना है और उनका अप्रत्यक्ष लाभ भी उठाना है!
क्या मोदी सरकार यह कानून बनाएगी कि जो भी संस्थान लीज पर दिया जा रहा है, उस उद्योगपति से पार्टी चंदा नहीं लेगी? चुनाव में सुविधाएं नहीं लेगी?
जाहिर है, मोदी सरकार को आम आदमी की सुविधा और आजादी से कोई मतलब नहीं है, मोदीजी को तो सत्ता हांसिल करनी है, अपने ड्रीम प्रोजेक्ट पूरे करने हैं और उनके लिए धन जुटाना है?
वैसे भी मोदी सरकार ने पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस के दम पर आम आदमी को लूूटने में कोई कसर नहीं छोड़ी है?
कोरोना प्रभावितों के साथ 20 लाख करोड़ के राहत पैकेज का क्रूर मजाक यादगार है, तो 80 करोड़ गरीबों को मोदीजी के फोटोवाला मुफ्त राशन का झौला देकर देशवासियों पर जो अहसान किया है, उसके लिए तो थैंक यू मोदीजी चारो ओर गुंज ही रहा है!
क्या निर्मला सीतारमण 80 करोड़ गरीबों की जिलेवार सूची जारी करेंगी, ताकि जनता जान सके कि उन्हें और उनके परिवार को मोदी सरकार ने कितना मुफ्त का राशन दिया है?
जरूरत जो इस बात की है कि....
एक- विभिन्न सरकारी संस्थाओं में जो कमियां हैं उन्हें दूर किया जाए, कर्मचारियों को बेहतर कार्य करने के लिए पाबंद किया जाए, यह नहीं कि इन कमियों के मद्देनजर संस्थाओं को प्राइवेट हाथों में सौंप दे.
दो- हो सकता है, कोई सरकारी संस्था घाटे में चल रही हो, लेकिन यदि वह जनउपयोगी है, तो सरकार की जिम्मेदारी है कि उसे आर्थिक संरक्षण प्रदान करे, घाटे के नाम पर अपने उद्योगपति मित्रों को नहीं दे दे.
याद रहे, पिछली सरकारों की चोरियों का जिक्र करने से किसी को देश की संपत्तियों पर डाका डालने का अधिकार नहीं मिल जाता है!
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-अफगानिस्तान संकट पर पीएम मोदी और पुतिन के बीच बातचीत, 45 मिनट तक हुई चर्चा
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