आज हर व्यक्ति चाहता है कि उसका भाग्य प्रबल रहे , उसकी मेहनत का उसको भरपूर फल मिले, समाज में उसका खूब यश और मान हो, उसे जिंदगी में किसी चीज की कमी ना हो . धन दौलत, शोहरत हर चीज उसके पास हो. लेकिन हमारी सोचने या चाहने से कुछ नहीं होता. आपने बहुत से लोग देखे होंगे जो जीवन भर संघर्ष करते हैं, उनमें काबिलियत की कमी नहीं होती लेकिन वे डट कर मेहनत करने के बावजूद जिंदगी में वह सब चीजें हासिल नहीं कर पाते, जिनके लिए वे डिजर्व करते हैं. आपने ऐसे भी लोग देखे होंगे , जो कम पढ़ा लिखा होने या कम संघर्ष करने के बावजूद सफलता की सीढ़ियां चढ़ते चले जाते हैं और जीवन में नेम एंड फेम हासिल करते हैं. लक्ष्मी भी उन पर मेहरबान रहती है. किसी भी व्यक्ति की सफलता या असफलता के पीछे ग्रहों का भी बहुत बड़ा योगदान होता है. खासकर हमारी जन्मकुंडली के भाग्य स्थान यानी नवम स्थान में बैठा ग्रह हमारे भाग्योदय की उम्र तय करता है. कई ग्रह छोटी उम्र में ही भाग्य उदय कर देते हैं तो कई ग्रह तब हमारा भाग्योदय करते हैं, जब हम 35 साल की उम्र पार करने लगते हैं.
ज्योतिषशास्त्र में कुण्डली के नवम घर को भाग्य स्थान कहा जाता है. इस घर में जो ग्रह बैठा होता है या जो ग्रह इस घर को देखता है , उसके अनुरूप व्यक्ति को भाग्य का सहयोग प्राप्त होता है. इस घर का स्वामी ग्रह जिस घर में बैठता है, उससे भी भाग्य प्रभावित होता है. नवम घर में बैठे ग्रह बताते हैं कि हमारे जीवन में कब धन और सुख आएगा. कब भाग्य हमारे पर मेहरबान होता चला जाएगा.
किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में नौंवे घर यानि भाग्य स्थान पर देव गुरु बृहस्पति बैठे हों , तो उस व्यक्ति का 16 साल में भाग्योदय होता है.
अगर नवम भाव में सूर्य बैठे हों तो 22 वे साल में भाग्योदय होता है .
चंद्रमा बैठे हों तो 24 में साल में भाग्योदय होता है . शुक्र बैठे होंं तो 25 वेें साल में भाग्योदय होता है . मंगल बैठे हों तो 28 वे साल में भाग्योदय होता है . बुध बैठे हों तो 32 में साल में भाग्योदय होता है . शनि बैठे हों तो 36 में साल में भाग्योदय होता है.राहु केतु बैठे हो तो 42 साल में भाग्योदय होता है.
जिस व्यक्ति के भाग्य स्थान में सूर्य होता है, वह व्यक्ति स्वाभिमानी और महत्वाकांक्षी होता है. 22 वें वर्ष में उसका भाग्योदय होता है और ऐसा व्यक्ति राजनीति और सामाजिक कार्यों में बढ़चढ़ कर भाग लेता है. उसकी आर्थिक स्थिति अच्छी होती है.
चन्द्रमा जिनकी कुण्डली में नवें घर में होता है, उनका भाग्योदय 16वें वर्ष में होता है. ऐसे व्यक्ति दयालु और धार्मिक प्रवृति के होते हैं. जल से जुड़े क्षेत्र से इन्हें लाभ होता है. ऐसे व्यक्ति जन्म स्थान से दूर जाकर तरक्की करते हैं.
मंगल का नवम घर में होना बताता है कि व्यक्ति को भूमि से संबंधित कार्यों में तथा अपने जन्मस्थान पर ही अच्छी कामयाबी मिल जाएगी. ऐसे लोग कई बार धन लाभ के लिए गलत तरीका भी अपना लेते हैं.
बुध का नवम भाव में होना दर्शाता है कि व्यक्ति का भाग्योदय 32वें वर्ष में होगा. ऐसे लोग कल्पनाशील और अच्छे लेखक होते हैं. ज्योतिष, गणित एवं पर्यटन क्षेत्र से इन्हें लाभ मिलता है और प्रसिद्घि भी प्राप्त होती है.
गुरू नवम स्थान का स्वामी ग्रह माना जाता है. गुरू का इस स्थान में होना उत्तम माना जाता है. ऐसे व्यक्ति का भाग्योदय 24वें वर्ष में होता है और इन्हें भाग्य का साथ हमेशा मिलता रहता है. धन-संपत्ति के साथ ही इन्हें मान-सम्मान भी प्राप्त होता है.
गुरू की तरह शुक्र का भी नवम स्थान में होना अत्यंत शुभ माना जाता है. ऐसे व्यक्ति का भाग्योदय 25वें वर्ष में होता है. ऐसे व्यक्ति की रूचि साहित्य और कला में होती है. इनके पास धन-संपत्ति भरपूर होती है.
भाग्य स्थान में शनि का होना दर्शाता है कि व्यक्ति की तरक्की धीमी गति से होगी.
ऐसे व्यक्ति के जीवन का उत्तरार्ध पूर्वार्ध से अधिक सुखमय और खुशहाल होता है. इनका भाग्योदय 36वें वर्ष में होता है. ऐसे व्यक्ति नियम-कानून एवं प्राचीन मान्यताओं से जुड़े रहते हैं. राहु केतु का इस स्थान में होना बताता है कि व्यक्ति का भाग्योदय 42वें वर्ष में होगा.
22 वें वर्ष में इनका भाग्योदय होता है. ऐसा व्यक्ति राजनीति और सामाजिक कार्यों में बढ़चढ़ कर भाग लेता है. इनकी आर्थिक स्थिति अच्छी होती है. वाहन सुख प्राप्त होता है.
चन्द्रमा जिनकी कुण्डली में नवें घर में होता है उनका भाग्योदय 16वें वर्ष में होता है. ऐसे व्यक्ति दयालु और धार्मिक प्रवृति के होते हैं. जल से जुड़े क्षेत्र से इन्हें लाभ होता है. ऐसे व्यक्ति जन्म स्थान से दूर जाकर तरक्की करते हैं. मंगल का नवम घर में होना बताता है कि व्यक्ति को भूमि से संबंधित कार्यों में तथा अपने जन्मस्थान पर ही अच्छी कामयाबी मिल जाएगी. ऐसे लोग कई बार धन लाभ के लिए गलत तरीका भी अपना लेते हैं.
बुध का नवम भाव में होना दर्शात है कि व्यक्ति का भाग्योदय 32वें वर्ष में होगा. ऐसे लोग कल्पनाशील और अच्छे लेखक होते हैं. ज्योतिष, गणित एवं पर्यटन क्षेत्र से इन्हें लाभ मिलता है.
ऐसे लोग काफी बुद्धिमान होते हैं. इन्हें प्रसिद्घि प्राप्त होती है. गुरू नवम स्थान का स्वामी ग्रह माना जाता है. गुरू का इस स्थान में होना उत्तम माना जाता है. ऐसे व्यक्ति का भाग्योदय 24वें वर्ष में होता है इन्हें भाग्य का साथ हमेशा मिलता रहता है. धन-संपत्ति के साथ ही इन्हें मान-सम्मान भी प्राप्त होता है.
गुरू की तरह शुक्र का भी नवम स्थान में होना अत्यंत शुभ माना जाता है. ऐसे व्यक्ति का भाग्योदय 25वें वर्ष में होता है. ऐसे व्यक्ति की रूचि साहित्य और कला में होती है. धन प्राप्ति का एक माध्यम कला और साहित्य हो सकता है. इनके पास धन-संपत्ति भरपूर होती है.
भाग्य स्थान में शनि का होना दर्शात है कि व्यक्ति की तरक्की धीमी गति से होगी. ऐसे व्यक्ति का भाग्योदय 36वें वर्ष में होता है. ऐसे व्यक्ति नियम-कानून एवं प्राचीन मान्यताओं से जुड़े रहते हैं.
राहु केतु का कुंडली के नवम भाव यानी भाग्य स्थान में होना बताता है कि व्यक्ति का भाग्योदय 42वें वर्ष में होगा.
जिन लोगों की कुंडली में सिंह राशि का मंगल, कुंडली के नवम अथवा दशम भाव में हो तो ऐसे लोगों को अपने कैरियर में बहुत जल्दी सफलता प्राप्त होती है.
जिन लोगों की कुंडली में शनि या देव गुरु बृहस्पति वक्री होकर भाग्य स्थान पर बैठे हो तो अपने यह दशा के दौरान यह ग्रह भाग्योदय के सबसे प्रबल योग बनाते हैं.
जिस व्यक्ति की कुंडली में अधिकतर ग्रह कुंडली के तीसरे भाग में या 10 में भाग में हों तो, वह व्यक्ति बहुत सौभाग्यशाली माना जाता है और ऐसे लोग बहुत जल्दी कार्य क्षेत्र में सफलता प्राप्त करते हैं.
जिस व्यक्ति की कुंडली में शनि से अगले घर में देव गुरु बृहस्पति बैठे हो ऐसा व्यक्ति 21 - 22 साल की उम्र में ही कमाने लगता है.
जिस व्यक्ति की कुंडली में देव गुरु बृहस्पति मेष राशि में, मंगल अपनी उच्च मकर राशि में और ऐश्वर्या का प्रतीक शुक्र ग्रह कुंडली के नौवें घर में होता है , वह व्यक्ति कैरियर में ऊंचाइयों को छूते हैं.
जब सूर्य और चंद्रमा कर्क राशि में हो, शुक्र आठवें घर में हो , मंगल ग्यारहवें घर में हो तो चाहे कोई भी लग्न हो , ऐसा व्यक्ति अपने जीवन में हर दिशा में वैभव प्राप्त करता.
Astro nirmal
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