पिठौरी अमावस्या के दिन भगवान शिव जी की आराधना से भी अन्यान्य पुण्य प्राप्त होता

पिठौरी अमावस्या के दिन भगवान शिव जी की आराधना से भी अन्यान्य पुण्य प्राप्त होता

प्रेषित समय :20:20:42 PM / Sun, Sep 5th, 2021

भाद्रपद माह की अमावस्या को पिठौरी अमावस्या तथा कुशोत्पाटिनी अमावस्या भी कहा जाता है . वर्ष  2021 मे यह अमावस्या 6 सितम्बर, सोमवार को पड़ रही है. 
वर्ष 2021 मे कुशोत्पाटिनी अमावस्या 6 सितम्बर सोमवार को आ रही है. जो भी भक्त, पुरोहित तथा पण्डित कुशा एकत्र करना चाहे, तथा वह भक्त जो अमावस्या का व्रत धारण करना चाहे, उन्हें 6 सितम्बर को ही अमावस्या मनाना उचित रहेगा. परन्तु स्नान तथा दान इत्यादि शुभ कर्म 7 सितम्बर को 6:23 am से पहले करने चाहिए

उत्तर भारत में पिठौरी अमावस्या कुशोत्पाटिनी अमावस्या के नाम से जानी जाती है वहीं दक्षिण भारत में इसे पोलाला अमावस्या कहा जाता है. दक्षिण भारत में इस दिन देवी पोलेरम्मा की पूजा होती है. पोलेरम्मा को पार्वती माता का ही एक रूप माना जाता है. 

भाद्रपद अमावस्या का व्रत 6 सितम्बर
*कुशाग्रहण हेतु अमावस्या=6.09.2021
*अमावस्या तिथि प्रारंभ=6.09.21, 7:40 am
*अमावस्या तिथि समाप्त=7.09.21, 6:23 am*
*स्नान-दान हेतु अमावस्या= 7.09.21, 6:23 am तक*
पिठौरी अमावस्या का महत्व

पिठौरी अमावस्या का हिन्दू धर्म तथा साल की बारह अमावस्याओ में खासा महत्व है. भाद्रपद की इस अमावस्या के दिन तीन विभिन्न प्रकार के पूजा-व्रत तथा पितृकार्य तथा दान इत्यादि कर्म किए जाते हैं, जोकि इस प्रकार से है .

1. दुर्गा पूजा:- धर्म ग्रंथों के अनुसार पिठौरी अमावस्या के दिन दुर्गा माता की पूजा करने और व्रत रखने से पुत्र-रत्न की प्राप्ति होती है. विशेष रूप से सुहागिन स्त्रियाँ अपने पति और बच्चों के लिए अर्थात अपने परिवार हेतु सुख की कामना के लिए इस दिन का व्रत रखती हैं .

2. शिव आराधना:- इसके अलावा पिठौरी अमावस्या के दिन भगवान शिव जी की आराधना से भी अन्यान्य पुण्य प्राप्त  होता है. भगवान शिव के सिर पर चंद्रमा विराजमान है, इसलिए भगवान शिव को आशुतोष भी कहते है . अतः इस दिन भगवान शिव जी की आशुतोष नाम से अराधना करें. 

3. पितृकार्य:- भाद्रपद मास की यह अमावस्या पितृकार्य हेतु प्रशस्त है . पितृ दोष से होने वाली समस्याएं जैसे जिन व्यक्तियों को पितृ दोष होता है. उनके परिणामस्वरूप घर में कोई मांगलिक कार्य नहीं हो पाता है. संतान के विकास में बाधा आती है. साथ ही घर में क्लेश की स्थिति बनी रहती है. संतान उत्पत्ति में रुकावट होती है. कार्य क्षेत्र में रुकावटें आने लगती हैं.

व्यापार, नौकरी आदि में उन्नति नहीं हो पाती है. इन सभी समस्याओं से निजात पाने के लिए अमावस्या का यह दिन उत्तम माना जाता है. 

अतः इस अमावस्या को पितरों का तर्पण और श्राद्ध करने से घर में सुख-शांति आती है. पितृ प्रसन्न होते है, श्राद्ध-तर्पण इत्यादि कार्यों तृप्त होकर वंशजो को 
आर्शीवाद प्रदान करते है .
पिठौरी अमावस्या की पूजा विधि

*1. दुर्गा पूजा:
पिठौरी अमावस्या के दिन प्रातः काल गंगा स्नान अथवा गंगा जल से स्नान करने का विशेष महत्व है.
इसके उपरांत दिन पूजा पूजा स्थल को फूलों से सजायें, दुर्गा माता को सोने के आभूषण चढ़ाना ख़ासा महत्वपूर्ण माना जाता है. 
पिठौरी अमावस्या के दिन शिवजी और माता पार्वती की पूजा की जाती है. दिन खासतौर से कुछ क्षेत्रों में दुर्गा माता की योगिनी रूप की पूजा अर्चना की जाती है. 
अतः अमावस्या के दिन आटे की 64 प्रतिमाएं बनाई जाती है, अथवा चावल को अलग-अलग रंगों से रंग कर एक वेदी पर उसकी 64 ढेरियां बनाई जाती है . आटे की प्रतिमाओ को नए कपड़े पहनाकर और सजाया जाता है . इसके बाद पूजा घर को फूलों से सजा कर इन प्रतिमाओं को रखें. (ऐसा माना जाता है कि माता पार्वती ने इंद्र की पत्नी को पिठौरी अमावस्या की कथा सुनायी थी.) साथ ही इस पार्वती माता (दुर्गा मां) को नई चूड़ियां, बिंदी और सुहाग का सामान चढ़ाएं.
 इस प्रकार दुर्गा माता सहित अन्य देवी देवताओं की विधि पूर्वक पूजा अर्चना करना चाहिए .
इस दिन शाम के समय विशेष रूप से देवी माँ को व्रती महिलाएं सुहाग का सामान चढ़ायें. शाम को पूजा घर की साफ-सफाई करें. फिर एक थाली में आटे का दीपक सरसों के तेल से बनाएं और थाली में मिठाई, फल-फूल रखकर पूरे घर में घुमाएं. उसके उस दीपक को घर के पास किसी मंदिर में रख दें. 

*2. शिव पूजन
माता के पूजन के साथ ही एक लोटे में दूध, जल और सफेद फूल लेकर शिवजी को चढ़ाएं . इस प्रकार भगवान शिव का भी विधिवत् पूजन करे . इससे भगवान प्रसन्न होकर भक्त पर कृपा बनाये रखते है . 
इसके अतिरिक्त मन की शांति के लिए इस दिन चंद्रमा की पूजा करना भी शुभदायक है . रात्रि काल में चंद्रमा को प्रणाम कर चंद्र मंत्र का जाप करना चाहिए . 

*3. पितृकार्य:
इस प्रकार पूजन के उपरांत किसी सुयोग्य तथा विद्वान पंडित द्वारा श्रद्धापूक पूर्वजो का तर्पण और श्राद्ध कर्म अवश्य करना चाहिए .
श्राद्ध इत्यादि सब कर्मो के पूर्ण होने पर सूर्यदेव को अर्ध्य दे तथा अंत मे ब्राह्मण भोजन करवाकर उचित दक्षिणा देकर ब्राह्मण को संतुष्ट करना चाहिए .

4. इस प्रकार यह सब कार्य होने के उपरांत पीपल को जल देना चाहिए . गाय, कुत्ता, कौआ तथा चींटियों को भोजन दे .
इस दिन स्वयं चांदी धारण करे, तथा साथ ही चांदी तथा तांबे की वस्तुओं को भी दान गरीबों तथा ब्राह्मणो को करना विशेष फलदायी होता है. इस दिन गरीबों को भोजन और कपड़े दान करने से विशेष लाभ मिलता है.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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