नजरिया. इन दिनों विभिन्न न्यूज चैनल पर पक्ष-विपक्ष के कई बड़े नेताओं से ज्यादा समय तो ओवैसी को मिल रहा है, क्यों?
सियासी संभावनाएं व्यक्त की जा रही हैं, कि वे यूपी में मुस्लिम वोट बैंक को तोड़ेंगे, मतलब.... ओवैसी की पार्टी जीते या नहीं जीते, बीजेपी को फायदा हो सकता है?
लेकिन.... पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के नतीजों को देखकर लगता तो नहीं है कि उनकी पार्टी को या बीजेपी को कोई बहुत बड़ा लाभ होगा!
ध्रुवीकरण की राजनीति का भी कोई खास फायदा नजर नहीं आ रहा है, इतना ही नहीं.... चुनाव आने तक भागीदारी संकल्प मोर्चा के दल कौन किधर होंगे, वे स्वयं भी नहीं जानते हैं?
खबरों की माने तो ओम प्रकाश राजभर का साथ रहा नहीं, महान दल समाजवादी पार्टी के साथ जा चुका है, तो जनवादी क्रांति पार्टी भी सपा के साथ है, जबकि आजाद समाज पार्टी आरएलडी के साथ है और शिवपाल यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) भी सपा से करीब जाती नजर आ रही है, मतलब.... सियासी भीड़ में अकेले पड़ते जा रहे हैं ओवैसी!
जाहिर है, ओवैसी को कितना ही मीडिया स्पेस दिया जाए, यूपी का सियासी समीकरण कुछ खास नहीं बदलेगा?
सियासी सयानों का मानना है कि सियासी समीकरण उलझाने की कोशिश करने के बजाए यदि जनता की समस्याएं सुलझाने पर ध्यान दिया जाए, तो शायद कुछ फायदा हो सकता है, वरना तो.... बंगाल की जनता ने बता ही दिया है कि वह उतनी भोली भी नहीं है, जितना राजनेता समझ रहे हैं!
https://twitter.com/pankajjha_/status/1435144921963401224
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