हिंदी दिवस! टेबल और चेयर को हिंदी में क्या कहते हैं?

हिंदी दिवस! टेबल और चेयर को हिंदी में क्या कहते हैं?

प्रेषित समय :20:50:48 PM / Tue, Sep 14th, 2021

प्रदीप द्विवेदी. टेबल और चेयर को हिंदी में क्या कहते हैं? यह सवाल किसी को परेशान करने के लिए नहीं है, बल्कि इसलिए है कि जो लोग अपनी भाषा के लिए औरों की भाषा का अपमान करते हैं, उन्हें ठीक से समझ में आ जाए कि- स्वभाषा स्वाभिमान, शेष भाषा सम्मान से ही अपनी मातृभाषा का मान बढ़ता है.

कोई पैतीस साल पहले प्रसिद्ध गीतकार गोपालदास नीरज ने माही रेस्ट हाउस, बांसवाड़ा में विशेष इंटरव्यू में कहा था... जो भाषाएं अपने खिड़की-दरवाजे दूसरी भाषाओं के लिए खूले रखती हैं, वे समृद्ध होती हैं, लोकप्रिय होती हैं!

ऐसा नहीं है कि हिंदी में ही अन्य भाषाओं के कई शब्द आ गए हैं, वरन कई अन्य भाषाओं में भी हिंदी के हजारों शब्द चलन में हैं, लोकप्रिय हैं?

मैं माही रेस्ट हाउस में राजस्थान साहित्य अकादमी के तत्कालीन अध्यक्ष प्रकाश आतुर का इंटरव्यू ले रहा था. बनियान पहने, लूंगी लपेटे एकदम देसी अंदाज में नीरज मेरे पास आए और बोले- ये तो उदयपुर रहते हैं, इनका इंटरव्यू कभी भी ले लेना, मेरा इंटरव्यू लो!

मैंने कहा- मैं आपका ही इंटरव्यू लेने के लिए आया हूं. मैंने उनका इंटरव्यू लिया जो देश के अनेक अखबारों में छपा.

कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे, आज मदहोश हुआ जाए रे, मेरा मन मेरा मन मेरा मन, स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से, शोखियों में घोला जाए फूलों का शबाब, लिखे जो खत तुझे, ऐ भाई! जरा देख के चलो, दिल आज शायर है, खिलते हैं गुल यहां, आदमी हूं, आदमी से प्यार करता हूं जैसे सुपर हिट गीत लिखने वाले नीरज ने आने वाले समय को ठीक पहचाना था. आज सस्ते और गंदे गीतों की भरमार होती जा रही है और नतीजा यह है कि अब गीतों की गंदगी को लेकर अदालतों में शिकायतें भी होती रही हैं!

ऐसे ही गीतों को लेकर नीरज ने कहा था- गीतों की किस्मत में एक दिन ऐसा आना है, वो उतना ही महंगा होगा जो जितना ही सस्ता होगा?

पुरावली, इटावा, उत्तर प्रदेश में 4 जनवरी, 1925 को जन्में नीरज का साहित्यिक में तो अमूल्य योगदान है ही, देशभर में कवि सम्मेलनों को प्रतिष्ठा दिलाने में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है. उनकी  मुख्य रचनाएं है... दर्द दिया है, प्राण गीत, आसावरी, गीत जो गाए नहीं, बादर बरस गयो, दो गीत, नदी किनारे, नीरज की गीतीकाएं, नीरज की पाती, लहर पुकारे, मुक्तकी, गीत-अगीत, विभावरी, संघषज़्, अंतरध्वनी, बादलों से सलाम लेता हूं, कुछ दोहे नीरज के आदि.

जब उनसे पूछा गया था कि उन्होंने फिल्मों के लिए लिखना क्यों छोड़ दिया? तो उनका जवाब था... फिल्मी दुनिया में म्यूजिक पहले बन जाता है और उस पर गीत लिखने के लिए कहा जाता है, जैसे कफन बता कर कह रहे हों... इस साइज का मुर्दा ढूंढ लाओ!

उन्होंने आने वाले 20-20 युग को भी ठीक-से पहचान लिया था और इसीलिए कहा था कि यदि तुलसीदास इस युग में पैदा हुए होते तो रामायण ग्रंथ नहीं लिख पाते... केवल गीत ही लिख पाते!

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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