प्राचीन भारतीय चिंतन परम्परा में मां दुर्गा को शक्ति की देवी के रूप में मानते हुए इनके विभिन्न स्वरूपों के पूजन, अर्चन और स्तवन का विधान बताया गया है. हमारे यहां वर्ष में दो बार मां दुर्गा के नौ विभिन्न स्वरूपों की आराधना के लिये नवरात्र का आयोजन किया जाता है. नवरात्र दो बार आयोजित किये जाते हैं. पहले नवसंवत्सर के प्रारंभ में जब चैत्र प्रतिपदा का आरंभ होता है तब चैत्र नवरात्र का आयोजन होता है और पूरे नौ दिनों तक मां दुर्गा के नवस्वरूपों के पूजन के बाद रामनवमी के रूप में चैत्र नवरात्र संपन्न हो जाते हैं. इसी तरह वर्ष में दूसरी बार आश्विन के शुक्ल पक्ष में शारदीय नवरात्र का आयोजन किया जाता है. इन नवरात्र में भी मां दुर्गा के नवस्वरूपों का विशेष पूजन और अर्चन किया जाता है और नौ दिनों के बाद विजयदशमी से एक दिन पूर्व शारदीय नवरात्र संपन्न हो जाते हैं. दोनों ही नवरात्र में मां दुर्गा के शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री रूपों का पूजन और अर्चन किया जाता है.
मां दुर्गा का प्रथम स्वरूप ‘शैलपुत्री’
7 अक्टुबर को नवरात्र का पहला दिन है और इस दिन घटस्थापना के बाद मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री का पूजन, अर्चन और स्तवन किया जाता है. शैल का अर्थ है हिमालय और पर्वतराज हिमालय के यहां जन्म लेने के कारण इन्हें शैलपुत्री कहा जाता है. पार्वती के रूप में इन्हें भगवान शंकर की पत्नी के रूप में भी जाना जाता है. वृषभ (बैल) इनका वाहन होने के कारण इन्हें वृषभारूढा के नाम से भी जाना जाता है. इनके दाएं हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में इन्होंने कमल धारण किया हुआ है. मां शैलपुत्री का पूजन और स्तवन निम्न मंत्र से किया जाता है.
वन्दे वांछितलाभाय, चंद्रार्धकृतशेखराम्.
वृषारूढां शूलधरां, शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ॥
मां दुर्गा का दूसरा रूप ‘ब्रह्मचारिणी’
नवरात्र के दूसरे दिन मां दुर्गा के ‘देवी ब्रह्मचारिणी’ रूप की पूजा करने का विधान है. मां ब्रह्मचारिणी के दाएं हाथ में माला और बाएं हाथ में कमण्डल है. शास्त्रों में बताया गया है कि मां दुर्गा ने पार्वती के रूप में पर्वतराज के यहां पुत्री बनकर जन्म लिया और महर्षि नारद के कहने पर अपने जीवन में भगवान महादेव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी. हजारों वर्षों तक अपनी कठिन तपस्या के कारण ही इनका नाम तपश्चारिणी या ब्रह्मचारिणी पड़ा. अपनी इस तपस्या की अवधि में इन्होंने कई वर्षों तक निराहार रहकर और अत्यन्त कठिन तप से महादेव को प्रसन्न कर लिया. इनके इसी रूप की पूजा और स्तवन दूसरे नवरात्र पर किया जाता है.
मां ब्रह्मचारिणी की पूजा निम्न मंत्र के माध्यम से की जाती है-
दधाना करपद्माभ्याम्, अक्षमालाकमण्डलू.
देवी प्रसीदतु मयि, ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा..
मां दुर्गा का तीसरा रूप मां ‘चंद्रघंटा’
नवरात्र के तीसरे दिन दुर्गाजी के तीसरे रूप चंद्रघंटा देवी के वंदन, पूजन और स्तवन करने का विधान है. इन देवी के मस्तक पर घंटे के आकार का अर्ध चंदंमा विराजमान है इसीलिये इनका नाम चंद्रघंटा पड़ा. इस देवी के दस हाथ माने गए हैं और ये खड्ग आदि विभिन्न अस्त्र और शस्त्र से सुसज्जित हैं. ऐसा माना जाता है कि देवी के इस रूप की पूजा करने से मन को अलौकिक शांति प्राप्त होती है और इससे न केवल इस लोक में अपितु परलोक में भी परम कल्याण की प्राप्ति होती है.
इनकी पूजा अर्चना के लिये निम्न मंत्र बताया गया है.
पिंडजप्रवरारूढा, चंडकोपास्त्रकैर्युता.
प्रसादं तनुते मह्यं, चंद्रघंटेति विश्रुता..
मां दुर्गा का चौथा रूप ‘कूष्मांडा
नवरात्र के चौथे दिन दुर्गाजी के चतुर्थ स्वरूप मां कूष्मांडा की पूजा और अर्चना की जाती है. माना जाता है कि सृष्टि की उत्पत्ति से पूर्व जब चारों ओर अंधकार था तो मां दुर्गा ने इस अंड यानी ब्रह्मांड की रचना की थी. इसी कारण उन्हें कूष्मांडा कहा जाता है. सृष्टि की उत्पत्ति करने के कारण इन्हें आदिशक्ति नाम से भी अभिहित किया जाता है. इनकी आठ भुजाएं हैं और ये सिंह पर सवार हैं. सात हाथों में चक्र, गदा, धनुष, कमण्डल, कलश, बाण और कमल है.
मां दुर्गा के इस कूष्मांडा स्वरूप की पूजा अर्चना निम्न मंत्र से करनी चाहिए –
सुरासंपूर्णकलशं, रुधिराप्लुतमेव च.
दधाना हस्तपद्माभ्यां, कूष्मांडा शुभदास्तु मे..
मां दुर्गा का पांचवां रूप ‘मां स्कंदमाता’
नवरात्र के पांचवे दिन दुर्गाजी के पांचवें स्वरूप मां स्कंदमाता की पूजा और अर्चना की जाती है. स्कंद शिव और पार्वती के दूसरे और षडानन (छह मुख वाले) पुत्र कार्तिकेय का एक नाम है. स्कंद की मां होने के कारण ही इनका नाम स्कंदमाता पड़ा. मां के इस रूप की चार भुजाएं हैं और इन्होंने अपनी दाएं तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कंद अर्थात कार्तिकेय को पकड़ा हुआ है और इसी तरफ वाली निचली भुजा के हाथ में कमल का फूल है. बाईं ओर की ऊपर वाली भुजा में वरद मुद्रा है और नीचे दूसरा श्वेत कमल का फूल है. सिंह इनका वाहन है. क्योंकि यह सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं इसलिये इनके चारों ओर सूर्य सदृश अलौकिक तेजोमय मंडल सा दिखाई देता है.
स्कंदमाता के इस रूप की आराधना निम्न मंत्र से करनी चाहिए-
सिंहासनगता नित्यं, पद्माश्रितकरद्वया.
शुभदास्तु सदा देवी, स्कंदमाता यशस्विनी..
मां दुर्गा का छठा रूप ‘मां कात्यायनी’
नवरात्र के छठे दिन दुर्गाजी के छठे स्वरूप मां कात्यायनी की पूजा और अर्चना की जाती है. ऐसा विश्वास है कि इनकी उपासना करने वाले को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चार पुरुषार्थ चतुष्टय की प्राप्ति हो जाती है. क्योंकि इन्होंने कात्य गोत्र के महर्षि कात्यायन के यहां पुत्री रूप में जन्म लिया, इसीलिये इनका नाम कात्यायनी पड़ा. इनका रंग स्वर्ण की भांति अन्यन्त चमकीला है और इनकी चार भुजाएं हैं. दाईं ओर के ऊपर वाला हाथ अभय मुद्रा में है और नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में. बाईं ओर के ऊपर वाले हाथ में खड्ग अर्थात् तलवार है और नीचे वाले हाथ में कमल का फूल है. इनका वाहन भी सिंह है. इनकी पूजा, अर्चना और स्तवन निम्न मंत्र से किया जाता है.
चंद्रहासोज्ज्वलकरा, शार्दूलवरवाहना.
कात्यायनी शुभं दद्यात्, देवी दानवघातनी..
मां दुर्गा का सातवां रूप ‘मां कालरात्रि’
नवरात्र के सातवें दिन दुर्गाजी के सातवें स्वरूप मां कालरात्रि की पूजा और अर्चना का विधान है. इनका वर्ण अंधकार की भांति एकदम काला है. बाल बिखरे हुए हैं और इनके गले में दिखाई देने वाली माला बिजली की भांति देदीप्यमान है. इन्हें तमाम आसुरिक शक्तियों का विनाश करने वाला बताया गया है. इनके तीन नेत्र हैं और चार हाथ हैं जिनमें एक में खड्ग अर्थात् तलवार है तो दूसरे में लौह अस्त्र है, तीसरे हाथ में अभयमुद्रा है और चौथे हाथ में वरमुद्रा है. इनका वाहन गर्दभ अर्थात् गधा है. मां कालरात्रि की पूजा, अर्चना और स्तवन निम्न मंत्र से किया जाता है.
एकवेणी जपाकर्ण, पूरा नग्ना खरास्थिता.
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी, तैलाभ्यक्तशरीरिणी.
वामपादोल्लसल्लोह, लताकंटकभूषणा.
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा, कालरात्रिभयंकरी..
मां दुर्गा का आठवां रूप ‘मां महागौरी’
नवरात्र के आठवें दिन दुर्गाजी के आठवें स्वरूप मां महागौरी की पूजा और अर्चना का विधान है. जैसा कि इनके नाम से ही स्पष्ट है कि इनका वर्ण पूर्ण रूप से गौर अर्थात् सफेद है. इनके वस्त्र भी सफेद रंग के हैं और सभी आभूषण भी श्वेत हैं. इनका वाहन वृषभ अर्थात् बैल है और इनके चार हाथ हैं. इनका ऊपर वाला दाहिना हाथ अभयमुद्रा में है और नीचे वाले हाथ में त्रिशूल है. बाईं ओर के ऊपर वाले हाथ में डमरू है और नीचे वाला हाथ वरमुद्रा में है. ऐसा वर्णन मिलता है कि भगवान् शिव को पतिरूप में पाने के लिये इन्होंने हजारों सालों तक कठिन तपस्या की थी जिस कारण इनका रंग काला पड़ गया था लेकिन बाद में भगवान् महादेव ने गंगा के जल से इनका वर्ण फिर से गौर कर दिया मां गौरी की अर्चना, पूजा और स्तवन निम्न मंत्र से किया जाता है.
श्वेते वृषे समारूढा, श्वेताम्बरधरा शुचि:.
महागौरी शुभं दद्यात्, महादेवप्रमोददाद..
मां दुर्गा का नौवां रूप ‘मां सिद्धिदात्री’
नवरात्र के नौवें दिन दुर्गाजी के नौवें स्वरूप मां सिद्धदात्री की पूजा और अर्चना का विधान है. जैसा कि इनके नाम से ही स्पष्ट हो रहा है कि सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली देवी हैं मां सिद्धिदात्री. इनके चार हाथ हैं और ये कमल पुष्प पर विराजमान हैं. वैसे इनका वाहन भी सिंह ही है. इनके दाहिनी ओर के नीचे वाले हाथ में चक्र है और ऊपर वाले हाथ में गदा है. बाईं ओर के नीचे वाले हाथ में कमल का फूल है और ऊपर वाले हाथ में शंख है. प्राचीन शास्त्रों में अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, और वशित्व नामक आठ सिद्धियां बताई गई हैं. ये आठों सिद्धियां मां सिद्धिदात्री की पूजा और कृपा से प्राप्त की जा सकती हैं. हनुमान चालीसा में भी ‘अष्टसिद्धि नव निधि के दाता’ कहा गया है. मां सिद्धिदात्री की पूजा, अर्चना और स्तवन निम्न मंत्र से किया जाता है.
सिद्धगंधर्वयक्षाद्यै:, असुरैरमरैरपि.
सेव्यमाना सदा भूयात्, सिद्धिदा सिद्धिदायिनी..
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-गुरुग्राम में धर्म प्रचारक ने 10 साल की मासूम के साथ की अश्लील हरकत, लोगों ने की धुनाई
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