नजरिया. लोकसभा चुनाव 2019 में जनता मोदी सरकार से खुश नहीं थी, लेकिन जनता ने एक मौका और दिया था, नतीजा?
मोदी सरकार यह मान बैठी कि जनता नासमझ है और तेल के लूट के खेल में जनता को उलझा दिया, लेकिन उप-चुनाव में जनता ने साबित कर दिया कि वह इतनी नादान नहीं है और तेल के लूट के खेल में फेल हो गई मोदी सरकार!
अब उन राज्यों में सियासी घबराहट ज्यादा है, जहां विधानसभा चुनाव होने हैं, लिहाजा तेजी से तेल के दामों में कमी हो रही है?
पहले पेट्रोल-डीजल के दाम कम हुए और अब खाने के तेल के दाम भी कम होने जा रहे हैं, हालांकि लूट खत्म नहीं हुई है, केवल लूट में कुछ कमी के संकेत हैं, अलबत्ता विधानसभा चुनाव के बाद हो सकता है फिर से तेल आसमान में पहुंच जाए?
खैर, खबर है कि मोदी सरकार के एक्साइज ड्यूटी कम करने के बाद हिमाचल प्रदेश सरकार ने भी वैट में कटौती की है, जिसके कारण हिमाचल में कुल जमा पेट्रोल 12 रुपये और डीजल 17 रुपये सस्ता हुआ है, मतलब.... एक ही झटके में हिमाचल में पेट्रोल और डीजल के दाम सौ रुपये से नीचे आ गए? उल्लेखनीय है कि हिमाचल उप-चुनाव में कांग्रेस ने बीजेपी का सूपड़ा साफ कर दिया है, लिहाजा लोगों का मानना है कि- तीन विधानसभा और एक लोकसभा सीट पर हार के बाद मोदी सरकार को डर लगने लगा है!
यही नहीं, पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने के स्वर भी तेज हो रहे हैं, तो कड़वा तेल और गैस सिलेंडर के दामों में कटौती की मांग करते हुए कहा जा रहा है कि यदि ऐसा नहीं हुआ तो जनता 2022 में सबक सिखायेगी?
सियासी डर का परिणाम यह है कि मोदी सरकार ने खाना पकाने के तेल की कीमतों पर ब्रेक लगाने के लिए कच्चे पाम तेल, कच्चे सोयाबीन तेल और कच्चे सनफ्लावर तेल पर बेसिक ड्यूटी 2.5 प्रतिशत से घटाकर जीरो कर दिया है, जिसके कारण खाने का तेल भी सस्ता होगा!
सियासी सयानों का मानना है कि मोदी सरकार ने मध्यम वर्ग को जो आर्थिक झटके दिए हैं, उसके नतीजे तो आनेवाले चुनावों में भी असर तो दिखाएंगे ही?
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