एर्नाकुलम. केरल हाई कोर्ट ने कहा है कि सेक्स के लिए सहमति सिर्फ इस वजह से नहीं मानी जा सकती कि लड़की या महिला किसी पुरुष से प्यार करती है. कोर्ट ने सहमति और किसी की बात मानने के बीच के अंतर को भी समझाया. कोर्ट ने कहा कि अपरिहार्य मजबूरी के सामने लाचारी को सहमति नहीं माना जा सकता है.
सिर्फ प्यार करना सेक्स की सहमति नहीं
जस्टिस आर नारायण पिशारादी ने एक फैसले में कहा कि सहमति और बात मानने के बीच अंतर की खाई है. प्रत्येक सहमति में बात मानना शामिल होता है लेकिन बातचीत का पालन नहीं होता है. अपरिहार्य मजबूरी के सामने लाचारी को सहमति नहीं माना जा सकता, जैसा कि कानून में समझा जाता है. सहमति के लिए अधिनियम के महत्व और नैतिक प्रभाव के ज्ञान के आधार पर बुद्धि का प्रयोग आवश्यक है. केवल इस कारण से कि पीड़िता आरोपी से प्यार करती थी, यह नहीं माना जा सकता कि उसने सेक्स के लिए सहमति दी थी.
आरोपी की सजा को रखा बरकरार
अदालत ने एक 26 वर्षीय व्यक्ति द्वारा दायर एक अपील पर सुनवाई की. आरोप है कि युवक ने 17 वर्षीय लड़की के सामने आत्महत्या करने की धमकी देकर उसको अपने साथ भागने के लिए मजबूर किया. आरोपी उसे कायमकुलम से अलाप्पुझा और फिर बेंगलुरू ले गया. बेंगलुरू के एक होटल के कमरे में उसके साथ रेप करने के बाद वह उसे गोवा ले गया. आरोपी ने वहां के एक होटल में भी उसके साथ रेप किया. आरोपी ने पैसे कमाने के लिए रास्ते में उसके सोने के जेवर बेचे थे. आरोपी द्वारा दायर अपील पर विचार करने के बाद अदालत ने रेप के लिए उसकी सजा को बरकरार रखा.
सहमति से सेक्स को रेप मानने से इंकार
सुप्रीम कोर्ट ने इस साल मार्च में लिव-इन रिलेशनशिप में सहमति से शारीरिक संबंध बनाने को बलात्कार की श्रेणी में रखने से इंकार किया है. अदालत ने कहा था कि अगर लंबे वक्त तक चले रिश्ते में सहमति से सेक्स होता है और पुरुष महिला से शादी करने का अपना वादा नहीं निभा पाता तो इसे रेप नहीं कहा जा सकता. मामला कॉल सेंटर के दो कर्मचारियों से जुड़ा था. यह पांच साल तक लिव-इन रिलेशनशिप में थे. लड़के ने बाद किसी और महिला से शादी कर ली थी. इसके बाद लड़की ने उस पर शादी का झूठा वादा करके यौन संबध बनाने का आरोप लगाते हुए बलात्कार का केस कर दिया था.
शादी का वादा शुरू से ही झूठा तो रेप माना जा सकता है
इस साल मार्च में सुप्रीम कोर्ट ने रेप के एक मामले में सुनवाई के दौरान कहा था कि यदि महिला से शादी करने का किया गया वादा शुरू से झूठा है तो उसे रेप माना जा सकता है, अन्यथा ये रेप नहीं होगा. पीठ ने कहा कि पीबी पवार बनाम महाराष्ट्र केस में हम तय कर चुके हैं कि धारा 375 के तहत महिला की सहमति कब और कैसे होगी. यह स्थापित करने के लिए दो बाते सिद्ध करनी होंगी. पहला, शादी का वादा झूठा और बुरे इरादे से किया गया हो. अभियुक्त का वादा करने के समय ही उसका उसे पूरा करने का कोई इरादा न हो. दूसरा, ये झूठा वादा बहुत नया हो और तुरंत किया गया हो या इस वादे का महिला पर उससे संबंध बनाने के बारे में फैसला लेने से सीधा संबंध हो.
सहमति से सेक्स का मतलब अपने अधिकारों का त्याग नहीं
दिल्ली की द्वारका कोर्ट ने रेप के आरोपी की जमानत को खारिज करते हुए महत्वपूर्ण टिप्पणी की थी. पिछले महीने के मामले में सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि जब एक महिला अपने साथी के साथ यौन संबंध बनाती है तो इसका मतलब ये नहीं कि उसने अपने प्रजनन अधिकारों का भी त्याग कर दिया है.
कॉन्डम होने का मतलब सहमति से सेक्स नहीं
मुंबई की एक अदालत ने इस साल सितंबर में रेप के मामले की सुनवाई करते हुए कहा था कि कॉन्डम की उपस्थिति का मतलब यह नहीं है कि सेक्स सहमति से किया गया था. कोर्ट ने कहा था कि यह भी हो सकता है कि आगे आने वाली दिक्कतों से बचने के लिए आरोपी ने कॉन्डम का इस्तेमाल किया हो. अदालत एक नौसेना कर्मचारी की जमानत पर सुनवाई कर रही थी. इस कर्मचारी पर अपनी सहयोगी के साथ रेप करने का आरोप लगा था.
शादी का वादा कर सेक्स, फिर शादी से इंकार रेप माना जाएगा
सुप्रीम कोर्ट ने दो साल पहले अप्रैल में एक अहम फैसले में कहा था कि शादी का वादा करके किसी महिला से यौन संबंध बनाना और फिर उससे शादी न करना रेप माना जाएगा. शीर्ष अदालत ने कहा था कि ऐसी स्थिति में यौन संबंध के लिए महिला की सहमति के कोई मायने नहीं हैं, क्योंकि यह धोखा देकर किया गया है लिहाजा इसे महिला की सहमति नहीं माना जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस एल नागेश्वर राव और एम आर शाह ने यह फैसला दिया था. मामला छत्तीसगढ़ के बिलासपुर के मालखरौदा में सरकारी अस्पताल के जूनियर डाक्टर के खिलाफ रेप का था.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-मैच से पहले भारतीय क्रिकेटरों को वो देते थे सेक्स करने की सलाह : कंडिशनिंग कोच पैडी अप्टन
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