प्रदीप द्विवेदी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विरोधियों को ही नहीं, अपनों को भी चौंकाते हुए अचानक करीब एक साल से चल रहे किसान आंदोलन के मद्देनजर कृषि कानून वापस ले लेने का ऐलान कर दिया, क्यों?
इसके कई कारण हैं....
किसान आंदोलन तोड़ने के अनेक प्रयास हुए लेकिन कामयाबी नहीं मिली, यही नहीं, बीजेपी के कई जनप्रतिनिधियों को अपने ही क्षेत्र में लगातार विरोध का सामना करना पड़ रहा था, ऐसी हालत में यूपी सहित पांच राज्यों के चुनाव में चुनाव प्रचार बेहद मुश्किल होता जा रहा था.
इसके अलावा आक्रोशित किसानों की ओर से चुनाव के मौके पर बीजेपी के प्रमुख नेताओं को काले झंडे दिखाकर विरोध करने की भी सियासी चर्चाएं चल रही थी.
शुरुआत में जो पार्टी समर्थक खुलकर कृषि कानूनों के पक्ष में बोल रहे थे, उनके स्वर भी कमजोर पड़ने लगे थे, तो वरुण गांधी जैसे बीजेपी नेताओं ने ही किसानों के मुद्दों पर मोदी सरकार का विरोध शुरू कर दिया था. ऐसी हालत में यह विरोध बढ़ने की आशंका थी. यदि ऐसा होता तो लंबे समय से बीजेपी संगठन पर और सरकार पर जो पीएम मोदी का एकाधिकार बना हुआ है, उसके खत्म होने के भी आसार नजर आने लगे थे.
यदि किसान आंदोलन के चलते बीजेपी यूपी के विधानसभा चुनाव हार जाती तो इस हार की जिम्मेदारी सीधी पीएम मोदी पर आती. इसके अलावा क्योंकि लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश बीजेपी की सबसे बड़ी ताकत है, यदि यूपी बीजेपी के हाथ से निकल गया तो फिर लोकसभा चुनाव 2024 पर भी सवालिया निशान लग जाता.
सियासी सयानो का मानना है कि पीएम मोदी ने बड़ी हार की आशंका से बचने के लिए पहली बार इस तरह का समर्पण करना बेहतर समझा है?
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-कृषि कानून की वापसी पर: सरकार की विफलता का ठीकरा उमा भारती ने बीजेपी पर ही फोड़ा
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