नजरिया. करीब एक साल किसान आंदोलन चलने के बाद अचानक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों कृषि कानून वापस लेने का ऐलान कर दिया, लेकिन न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी सहित कुछ मांगों को लेकर किसान संगठनों का आंदोलन जारी रहा, वजह?
मोदी सरकार किसानों का भरोसा खो चुकी है!
यह बात पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री सोमपाल शास्त्री ने एनबीटी से इंटरव्यू में भी कही थी, सोमपाल शास्त्री, जो अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में केंद्रीय कृषि मंत्री और राष्ट्रीय किसान आयोग के पहले अध्यक्ष भी थे, का कहना था कि- कानून बनाने से काफी पहले लोकसभा चुनाव 2014 के समय भाजपा ने जो वादा किया था, उसे पूरा नहीं किया, आपने वादा किया था कि अगर हमारी सरकार आई तो वे राष्ट्रीय किसान आयोग यानी कि स्वामीनाथ आयोग की सिफारिशों को लागू करेंगे, आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि इस आयोग का पहला अध्यक्ष मैं ही था, सरकार बनने के एक साल तक जब सरकार अपने इस वादे की तरफ ध्यान नहीं दिया तो कुछ सुप्रीम कोर्ट चले गये, सुप्रीम कोर्ट ने जब सरकार से यह पूछा तो उन्होंने एक शपथ पत्र दिया और कहा कि केंद्र सरकार के पास इतने संसधान नहीं है या इसे लागू करना व्यवहारिक नहीं है.
इसके बाद इसी सरकार ने 2016 में नारा दिया कि हम 2022 तक किसानों का आय दोगुनी करेंगे. इसके बाद 2018 में 2019 लोकसभा चुनाव को देखते हुए भाजपा सरकार ने घोषणा कर दी कि उन्होंने स्वामीनाथन की रिपोर्ट को लागू कर दिया है, जबकि तथ्य है कि जो समर्थन मूल्य उन्होंने घोषित किया वह A2+FL पर था, स्वामीनाथन आयोग ने सिफारिश की थी कि किसानों की C2 लागत पर 50% जोड़कर एमएसपी तय किया जाए, लेकिन इस सरकार ने A2+ फैमिली लेबर पर 50% जोड़कर दावा कर दिया कि आयोग की सिफारिशें मान ली गई हैं. सरकार के इस तरह के रवैए से किसानों और सरकार के बीच अविश्वास की खाई बड़ी हुई है.
उनका साफ कहना था कि- इन सब वादों को लेकर किसानों का सरकार की ओर सोचने का नजरिया बदल गया, किसानों को लगा कि सरकार उन्हें बरगला रही है, इस तरह किसानों का सरकार में विश्वास कम होता गया, ऐसे में मैंने कृषि मंत्री से कहा था कि किसानों को एमएसपी की गारंटी और समग्र लागत पर फसल की कीमत तय करने की घोषणा करते हुए स्वामीनाथ आयोग की सिफारिशों को लागू करिए, हो सकता है तब किसान मान जाएं, मैंने तब यही राय दी थी और यह भी बताया कि पहले किसानों के साथ जो वादा किया गया, उसे पूरा नहीं किया गया, ऐसे में अब उन्हें सरकार की बातों पर विश्वास नहीं है!
यह एकदम स्पष्ट है कि जिस तरह से मोदी सरकार ने किसान आंदोलन को नजरअंदाज किया उसके कारण किसानों का ही नहीं, उनके अपनों का भी भरोसा डगमगा गया है, इसलिए यदि वाकई मोदी सरकार चाहती है कि किसानों का भरोसा फिर से कायम हो, तो एक तरफा निर्णय छोड़कर, किसानों को भरोसे में लेकर, उनकी मांगों पर जल्दी से जल्दी निर्णय करना चाहिए!
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-अभिमनोज: किसान आंदोलन की दिशा बदल जाएगी, पर किसानों की धारणा कैसे बदलेगी?
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