भगवान को नैवेध्य अर्पण करने की विधि

भगवान को नैवेध्य अर्पण करने की विधि

प्रेषित समय :21:54:42 PM / Fri, Jan 14th, 2022

शास्त्र के अनुसार नैवेध्य किस प्रकार से भगवन को अर्पण करना चाहिए.* 

नैवेध्य अर्पण करने की शास्त्रीय विधि यह हे की उसे थाली में या प्लेट में परोसकर उस अन्न पर घी परोसे. एक दो तुलसी पत्र छोड़े. नैवेध्य की परोसी हुई थाली पर दूसरी थाली ढक दे. भगवन के सामने जल से चोकोर एक दायरा बनाये. उस पर नैवेध्य की थाली रखे. बाये हाथ से दो चमच जल ले कर प्रदक्षिणा सोचे यह जल सोचते हुए “ सत्यम त्वर्तेन परिन्सिचामी “ मन्त्र बोले. फिर एक बार एक चमच जल थाली में छोड़े तथा “ अम्रुतोपस्तरणमसि “ बोले. उसके बाद बाये हाथ से नैवेध्य की थाली का ढक्कन हटाये और दाये हाथ से नैवेध्ये परोसे. अन्नपदार्थ के ग्रास दिखाते समय  प्राणाय स्वाहा, अपानाय स्वाहा, व्यानाय स्वाहा, उदानाय स्वाहा, सामानाय स्वाहा, ब्रह्मणे स्वाहा मन्त्र बोले. अगर हो शके तो यह मंत्रो के साथ निचे दी गई ग्रास मुद्राये भी दिखाए 

प्राणाय स्वाहा : तर्जनी मध्यमा और अंगुष्ठ द्वारा.
अपानाय स्वाहा : मध्यमा, अनामिका और अंगुष्ठ द्वारा.
व्यानाय स्वाहा : अनामिका, कनिष्ठिका और अंगुष्ठ द्वारा.
उदानाय स्वाह : मध्यमा, कनिष्ठिका अंगुष्ठ द्वारा.
सामानाय स्वाहा : तर्जनी, अनामिका, अंगुष्ठ द्वारा.
ब्रह्मणे स्वाहा : सभी पांचो उंगलियो द्वारा.

इस प्रकार भोग अर्पण करने के बाद  प्राशानारथे पानियम समर्पयामी मन्त्र बोल कर एक चम्मच जल भगवन को दिखा कर थाली में छोड़े. यह क्रिया में एक ग्लास पानी में इलायची पावडर डाल कर भगवन के सामने रखने की भी परंपरा कई स्थानों पर हे. फिर ऊपर दिए अनुसार छह ग्रास दिखाए. आखिर में चार चमच पानी थाली में छोड़े. जल को छोड़ते वक्त “ अमृतापिधानमसी, हस्तप्रक्षालनम समर्पयामी, मुखप्रक्षालनम समर्पयामी तथा आचामनियम समर्पयामी “ यह चार मन्त्र बोले पश्चात फूलो को गंध लगाकर करोध्वरतनं समर्पयामी बोल कर भगवन को चढ़ाये. इस प्रकार नैवेध्य अर्पण करने के बाद यह थाली को कुछ देर तक वहा रहने दे और बाद में यह प्रसाद के रूप में सभी को बांटे और बाद में खुद  करे.|

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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