नई दिल्ली. भारत-नेपाल के बीच सीमा विवाद गहराता जा रहा है. नेपाल ने एक बार फिर लिपुलेख में सड़क के निर्माण एवं विस्तारीकरण की भारतीय परियोजना पर आपत्ति दर्ज की है. नेपाल ने रविवार को भारत से कहा है कि वह पूर्वी काली नदी के क्षेत्रों में एकतरफा रोड के निर्माण और विस्तार की कार्रवाई को रोक दे. हालांकि नेपाल ने इसके लिए औपचारिक कूटनीतिक विरोध दर्ज नहीं किया है. नेपाल इस रोड के निर्माण को रोके जाने का विरोध 30 दिसंबर 2021 से ही कर रहा है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हलद्वानी की अपनी चुनावी रैली में लिपुलेख सड़क के निर्माण की घोषणा की थी. प्रधानमंत्री ने कहा था कि उनकी सरकार इस सड़क का चौड़ीकरण करेगी.
अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक नेपाल लिपुलेख क्षेत्र पर अपना दावा जता रहा है. नेपाल के सूचना और प्रसारण मंत्री ज्ञानेंद्र बहादुर कारकी ने कहा है, काली नदी का पूर्वी इलाका लिंपियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी नेपाल का अभिन्न हिस्सा है और इस इलाके में किसी भी तरह का निर्माण भारत को नहीं करना चाहिए. उन्होंने कहा, भारत और नेपाल के बीच किसी भी तरह के सीमा विवाद का हल ऐतिहासिक दस्तावेजों, नक्शों और साक्ष्य दस्तावेजों के आधार पर कूटनीतिक माध्यमों से किया जाना चाहिए जो दोनों देशों के बीच मौजूद द्विपक्षीय संबंधों की भावना के अनुरूप हो. लिपुलेख दर्रा कालापानी के पास एक सुदूर पश्चिमी स्थान है, जो नेपाल और भारत के बीच का सीमा क्षेत्र है. भारत और नेपाल दोनों कालापानी को अपने क्षेत्र के अभिन्न अंग के रूप में दावा करते हैं. भारत उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के हिस्से के रूप में और नेपाल धारचूला जिले के हिस्से के रूप में इसे अपना क्षेत्र मानता है.
नेपाल का ताजा बयान उस समय आया है जब भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि जहां पर सड़क का निर्माण किया जा रहा है वह क्षेत्र भारत में स्थित है. हालांकि भारत ने यह भी कहा कि किसी भी तरह के विवाद का समाधान द्वपक्षीय दोस्ती की भावना के अनुरूप बातचीत से सुलझाया जाना चाहिए. काठमांडू में भारतीय दूतावास ने अपने बयान में कहा है कि भारत-नेपाल सीमा पर भारत सरकार का रुख सर्वविदित, सुसंगत और स्पष्ट है. इस बारे में नेपाल सरकार को अवगत करा दिया गया है. हालांकि बयान में यह भी कहा गया कि हमारा विचार है कि स्थापित अंतर-सरकारी तंत्र और माध्यम संवाद के लिए सबसे उपयुक्त हैं. पारस्परिक सहमति से बाकी सीमा मुद्दों का हमेशा हमारे करीबी और मैत्रीपूर्ण द्विपक्षीय संबंधों की भावना के अनुसार समाधान किया जा सकता है.
कालापानी औऱ लिपुलेख इलाकों पर दावे के कारण पिछले डेढ़ साल से भारत और नेपाल के रिश्ते में खटास आई है. पिछले दिनों नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा को गुजरात वाइब्रेंट बैठक में सम्मिलित होना था. हालांकि कोविड-19 के कारण बैठक रद्द कर दी गई लेकिन उनके आने की संभावना बहुत कम ही थी. यह मामला तब और बिगड़ गया जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों उत्तराखंड चुनावी रैली में इस रोड के निर्माण की घोषणा कर दी. नेपाल की अंदरुनी राजनीति में इस मामले में हलचल मची हुई थी. नेपाल के नेताओं में इस मामले को लेकर रोष है. नेपाल में भारत के राजदूत विनय मोहन क्वात्रा के लिए इसे सुलझाना काफी चुनौतीपूर्ण काम है.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में नहीं दिखेगी बंगाल की झांकी, केंद्र और ममता सरकार आमने-सामने
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