मथुरा. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले चरण के नामांकन का आज आखिरी दिन है. वहीं, सभी राजनीतिक दलों ने अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है. इस बीच 2022 के रण में विजय श्री हासिल करने के लिए सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पूरा दमखम लगा रहा है. यही वजह है कि वह पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जयंत चौधरी की आरएलडी समेत तमाम छोटे-बड़े दलों के साथ गठबंधन कर सत्ता पाने का प्रयास कर रहे है. हालांकि सत्ता की चाबी हासिल करने से पहले ही सपा-आरएलडी गठबंधन के ताले में पेच फंस गया है और यह पेंच मथुरा की मांट विधानसभा पर फंसा है.
दरअसल मथुरा की मांट विधानसभा सीट पर आरएलडी और सपा प्रत्याशी दोनों के नामांकन करने के बाद यह पेच सामने आ गया है. दोनों पार्टी के प्रत्याशी अपने अपने नामांकन को सही बता रहे हैं और अभी से वर्चस्व की लड़ाई में जुट गए हैं. बता दें कि योगेश नौहवार ने पिछला चुनाव भी आरएलडी से इसी सीट से लड़ था और महज 432 वोटों से चुनाव हार गए थे. वहीं, कुछ वोट के अंतर और आरएलडी के गढ़ वाली सीट सपा के खाते में जाने पर पार्टी प्रत्याशी नाराज है. उनका आरोप है कि जिस ने गांव गांव जाकर दरी बिछाकर आरएलडी की जड़ों में पानी डाला हो, सींचा हो और जनता क्षेत्र की सरदारी ने आशीर्वाद दिया हो. इसके अलावा राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी ने आशीर्वाद के साथ बी फार्म दिया हो तो फिर क्यों चुनाव नहीं लड़ेंगे?
योगेश नौहवार ने नामांकन कर दिया और अब सपा प्रत्याशी के नामांकन के बाद उनका साफ कहना है कि अब वह राष्ट्रीय अध्यक्ष के कहने के बाद भी नामांकन वापस नहीं लेंगे. सिर्फ एक ही स्थिति में नामांकन वापस ले सकते हैं, जब खुद जयंत चौधरी या उनकी पत्नी चारु चौधरी इस सीट से चुनाव लड़ेंगे.
आरएलडी प्रत्याशी के नामांकन के बाद सपा से संजय लाठर ने भी क्षेत्र के प्रसिद्ध झाड़ी वाले हनुमान जी का आशीर्वाद लेकर नामांकन कर दिया है. जब संजय लाठर से इस बाबत बात की गई तो उन्होंने कहा कि दोनों राष्ट्रीय अध्यक्ष से बात होने के बाद ही नामांकन किया गया है. पहले यह सीट आरएलडी के खाते में गयी थी. इसके बाद फिर सपा के खाते में आ गयी है, इसीलिए उन्होंने पर्चा भरा है. गौरतलब रहे कि संजय लाठर भी सपा सरकार में इस सीट से जयंत के सीट छोड़ने के बाद उपचुनाव में भाग्य आजमा चुके हैं, लेकिन सपा सरकार की तमाम मशीनरी और मंत्रिमंडल के बाद भी वह जीत नहीं सके थे और फिर मैदान में उतर गये हैं.
फिलहाल दोनों प्रत्याशियों ने पूरे भरोसे के साथ नामांकन कर दिया है. अब देखना होगा कि नामांकन वापसी की तारीख को कौन नामांकन वापस लेता है. फिर दोनों ही प्रत्याशी चुनावी मैदान में एक-दूसरे खिलाफ ताल ठोकते हैं. बहरहाल इतना तो साफ है कि सत्ता में आने से पूर्व भी गठबंधन की गांठ ढीली हो रही है. साथ ही सवाल खड़ा कर रही है कि यदि सपा सत्ता में एंट्री भी करती है तो जनता के विकास की जगह दोनों नेताओं के वर्चस्व की जंग पांच साल देखने को मिलेगी.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-छत्तीसगढ़ का फार्मूला यूपी में: कांग्रेस सत्ता में आयी तो सरकार किसानों से खरीदेगी गोबर
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