चेन्नई. मद्रास उच्च न्यायालय की प्रथम पीठ ने शिक्षण संस्थानों में हिंदी को तीसरी भाषा बनाने में क्या कठिनाई है, यह सवाल करते हुए मंगलवार को कहा कि यदि कोई हिंदी नहीं सीखता है, तो उत्तर भारत में नौकरी हासिल करना बहुत मुश्किल होगा. कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश एम एन भंडारी और न्यायमूर्ति पी डी औदिकेसवलु की पीठ ने यह बात आज उस समय कही जब केंद्र सरकार की नयी शिक्षा नीति 2020 को पूरी तरह से लागू करने के अनुरोध करने वाली एक जनहित याचिका आज उसके सामने आई.
कुड्डालोर जिले के एक गैर सरकारी संगठन, आलमराम के सचिव अर्जुनन एलयाराजा की याचिका ने संबंधित प्राधिकारियों को यह निर्देश देने का अनुरोध किया कि वे इस मुद्दे पर विभिन्न मामलों में उच्चतम न्यायालय के सुझावों को समायोजित करते हुए आवश्यक संशोधनों के साथ तमिलनाडु में एनईपी को लागू करें.
ऐसे कुछ उदाहरणों का हवाला देते हुए जिसमें तमिलनाडु के योग्य व्यक्तियों ने हिंदी ज्ञान की कमी के कारण उत्तर भारत में नौकरियों पाने का अवसर खो दिया था, कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश ने कहा, तमिलनाडु राज्य में नौकरी प्राप्त करने के लिए कोई कठिनाई नहीं है क्योंकि उम्मीदवार स्थानीय भाषा (तमिल) से अच्छी तरह वाकिफ हैं, लेकिन राज्य के बाहर उन्हें कठिनाई का सामना करना पड़ेगा. जब महाधिवक्ता आर षणमुगसुंदरम ने जवाब दिया कि राज्य में हर कोई हिंदी प्रचार सभा जैसे संस्थानों के माध्यम से हिंदी सीखने के लिए स्वतंत्र है, तो एसीजे ने कहा कि सीखना शिक्षण से अलग है.
जब शणमुगसुंदरम ने उल्लेख किया कि राज्य एक नीति के रूप में दो भाषा प्रणाली (तमिल और अंग्रेजी) का पालन कर रहा है, तो एसीजे ने सवाल किया कि अगर हिंदी को त्रि-भाषा नीति में पेश किया जाता है तो क्या नुकसान होगा? एजी ने जवाब दिया कि यह छात्रों पर अधिक दबाव डालेगा. हालांकि एसीजे ने कहा कि बात केवल भाषाओं के चयन का विकल्प देना है.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-आईआईटी मद्रास ने कहा- कोरोना की तीसरी लहर का पीक करीब, 6 फरवरी तक सबसे ज्यादा केस होंगे
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