वसंत पंचमी तिथि पूजन मुहूर्त सुबह 07:07 बजे से 12 :35 तक लाभदायक

वसंत पंचमी तिथि पूजन मुहूर्त सुबह 07:07 बजे से 12 :35 तक लाभदायक

प्रेषित समय :20:32:55 PM / Fri, Feb 4th, 2022

05 फरवरी 2022 शनिवार को वसंत पंचमी माँ सरस्वती का प्राकट्य दिवस है . सारस्वत्य मंत्र लिए हुए जो भी साधक हैं , सरस्वती माँ का पूजन करें और सफेद गाय का दूध मिले अथवा गाय के दूध की खीर बनाकर सरस्वती माँ को भोग लगाएं . सफेद पुष्पों से पूजन करें और जिन विद्यार्थियों ने  सारस्वत्य मंत्र लिया है वे तो खास जीभ तालू पर लगाकर सारस्वत्य मंत्र का जप इस दिन करें तो वे प्रतिभासम्पन्न आसानी से हो जायेंगे .*

 *वसंत पंचमी सरस्वती माँ का आविर्भाव  का दिवस है . जो भी पढ़ते हों और शास्त्र आदि या जो भी ग्रन्थ, उनका आदर-सत्कार-पूजन करो . और भ्रूमध्य में सूर्यदेव का ध्यान करो . जिससे पढ़ाई-लिखाई में आगे बढ़ोगे .

बसंत पंचमी में मां सरस्वती का पूजन क्यों करते हैं 

पौराणिक कथाओं के अनुसार सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा ने जीवों, खासतौर पर मनुष्य योनि की रचना की. अपनी सर्जना से वे संतुष्ट नहीं थे. उन्हें लगता था कि कुछ कमी रह गई है जिसके कारण चारों ओर मौन छाया रहता है. विष्णु से अनुमति लेकर ब्रह्मा ने अपने कमंडल से जल छिड़का, पृथ्वी पर जल कण बिखरते ही उसमें कंपन होने लगा. इसके बाद वृक्षों के बीच से एक अद्भुत शक्ति का प्राकट्य हुआ. यह प्राकट्य एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री का था जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था. अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी.

ब्रह्मा ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया. जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई. जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया. पवन चलने से सरसराहट होने लगी. तब ब्रह्मा ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा. सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है. ये विद्या और बुद्धि प्रदाता हैं. संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी हैं. बसन्त पंचमी के दिन को इनके जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते हैं.ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है-

प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु.

अर्थात ये परम चेतना हैं. सरस्वती के रूप में ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं. हममें जो आचार और मेधा है उसका आधार भगवती सरस्वती ही हैं. इनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है. पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण ने सरस्वती से ख़ुश होकर उन्हें वरदान दिया था कि वसंत पंचमी के दिन तुम्हारी भी आराधना की जाएगी और यूँ भारत के कई हिस्सों में वसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की भी पूजा होने लगी जो कि आज तक जारी है. पतंगबाज़ी का वसंत से कोई सीधा संबंध नहीं है. लेकिन पतंग उड़ाने का रिवाज़ हज़ारों साल पहले चीन में शुरू हुआ और फिर कोरिया और जापान के रास्ते होता हुआ भारत पहुँचा.

कब आता है बसंत पंचमी 

बसंत पंचमी माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है. वसंत ऋतु को सभी छः ऋतुओं में ऋतुराज के नाम से जाना जाता है. वसंत ऋतु के आगमन पर उत्सव मनाने का दिन बसंत पंचमी का दिन होता है जिस दिन मां सरस्वती की आराधना का विशेष पर्व मनाया जाता है.

बसंत पंचमी का महत्व

ऐसा माना जाता है कि इसी दिन वेदों की देवी प्रकट हुई थी, इसलिए इस दिन को शिक्षा या कोई अन्य कला शुरू करने के लिए शुभ माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन विद्यार्थी अगर मां सरस्वती की पूजा करें तो लाभ होता है.

बसंत पंचमी की तिथि और शुभ मुहूर्त

इस साल बसंत पंचमी का पर्व 05 फरवरी 2022 शनिवार को मनाया जाएगा. हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी मनाई जाती है. ऐसे में पंचमी तिथि शुरुआत 05 फरवरी, शनिवार सुबह 07:07 बजे से होगी. पूजा मुहूर्त 12 :35  तक ही है. उदय तिथि में पंचमी तिथि 05 फरवरी को पड़ रही है इसलिए इस दिन बसंत पंचमी मनाई जाएगी.

बसंत पंचमी में लगाए जाने वाले भोग

इस दिन के लिए पीले रंग का विशेष महत्व माना गया है. वसंत पंचमी के दिन पीले फूल, पीले मिष्ठान अर्पित करना शुभ माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि देवी सरस्वती को पीला रंग बहुत प्रिय है. इस दिन पीले वस्त्र पहनने और भेंट शुभ होता है.

वसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा करने का विधान है. वसंत पंचमी को विधिपूर्वक सरस्वती पूजा के लिए पूजन सामग्री एवं हवन सामग्री  का होना जरुरी है. 

पूजा एवं हवन सामग्री
मां सरस्वती की एक मूर्ति या तस्वीर,
पीले रंग की साड़ी या कोई अन्य वस्त्र,
एक चौकी, पीला वस्त्र चौकी के लिए
सफेद चंदन, पीली रोली, पीला गुलाल
गेंदे का फूल या कोई अन्य पीला फूल, पीले फूलों की एक माला
बेसन का लड्डू, मोतीचूर लड्डू, सफेद बर्फी, खीर या मालपुआ
गंगाजल, अक्षत्, धूप, कपूर, दीपक, गाय का घी, अगरबत्ती, आम का पत्ता
एक कलश या लोटा, गणेश मूर्ति, सुपारी, पान का पत्ता, दूर्वा, हल्दी, तुलसी पत्ता, रक्षा सूत्र
सरस्वती पूजा हवन साम्रगी
एक हवन कुंड, आम की सूखी लकड़ी
चंदन की लकड़ी, बेल, नीम, मुलैठी की जड़, पीपल का तना एवं छाल
गूलर की छाल, पलाश, अश्वगंधा, ब्राह्मी आदि
चावल, अक्षत्, काला तिल, लोभान, गुग्गल, शक्कर, घी, जौ
एक गोला या सूखा नारियल
लाल रंग का कपड़ा नारियल पर लपेटने के लिए या रक्षासूत्र
एक या दो पैकेट हवन सामग्री

हवन विधि

सरस्वती पूजा के बाद कुंड में आम की लकड़ी और अन्य लकड़ियों को रखते हैं. फिर उसमें कपूर, लोभान, उप्पलें आदि डालकर आग्नि को प्रज्वलित करते हैं. चावल, अक्षत्, काला तिल, लोभान, गुग्गल, शक्कर, घी, जौ एवं अन्य हवन सामग्रियों को आहुति देने के लिए आपस में मिला लेते हैं. नारियल पर घी लगाकर लाल कपड़ा या रक्षासूत्र लपेटते हैं.

इसके बाद हवन प्रारंभ करते हैं. सबसे पहले गणेश जी, ब्रह्मा, विष्णु, महेश, नवग्रह के लिए आहूति देते हैं. फिर दसों दिशाओं के लिए आहूति देते हैं. इसके बाद सरस्वती मंत्र ‘ओम श्री सरस्वत्यै नम: स्वहा” की एक माला का जाप करते हुए आहुति देते हैं. अंत में नारियल को हवन कुंड में स्थापित कर उस पर खाद्य सामग्री रखते हैं. फिर मां सरस्वती की आरती करते हैं.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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