बेंगलुरू. कर्नाटक हाईकोर्ट में शिक्षण संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आज की सुनवाई खत्म हो चुकी है. आज भी इस मामले में कोई ठोस हल नहीं निकला. कल कर्नाटक हाइकोर्ट में फिर इस मामले में सुनवाई होगी. मुख्य न्यायाधीश ऋतुराज अवस्थी की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा कि हस्तक्षेप आवेदन पर विचार करने का प्रश्न कहां है? यह एक रिट याचिका है न कि जनहित याचिका. इस तरह के आवेदन न्यायालय का समय बर्बाद करेंगे और हमें प्रथम दृष्टया लगता है कि वे अनुरक्षण योग्य नहीं हैं. इस पर एक महिला अधिकार संगठन की ओर से वकील शादान फरासत ने कहा कि आधिपत्य हम पर समय सीमा लगा सकता है. मैं इस संदर्भ में अंतरराष्ट्रीय कानून और दायित्वों को प्रस्तुत करने जा रहा हूं. मुझे यकीन है कि कोई और इस पर बहस नहीं कर रहा है. कृपया समय सीमा लागू करें, लेकिन हमें बाहर न करें.
वहीं, प्रोफेसर रविवर्मा कुमार ने याचिकाकर्ताओं की ओर से अपना पक्ष रखा. उन्होंने कहा कि मैं कर्नाटक शिक्षा अधिनियम के प्रावधानों को दिखा रहा हूं. कृपया 1995 के नियमों पर आएं. इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता कर रहे हैं, अगर हमें लगता है कि हमें और मदद की जरूरत है तो हम इसके लिए कहेंगे. वह नियम 11 का जिक्र कर रहे हैं जो कपड़े, किताबों आदि के प्रावधानों से संबंधित है. इसके बाद कुमार नियम 11 को पढ़ते हैं. कुमार ने नियमों का हवाला देते हुए कहा कि अगर स्कूल वर्दी (ड्रेस कोड) बदलना चाहता है तो उसे एक साल पहले माता-पिता को नोटिस जारी करना होगा. अगर हिजाब पर बैन है तो उसे एक साल पहले सूचित करना चाहिए था. कुमार ने कहा कि नियमों के तहत अभिभावक-शिक्षक समिति बनाना अनिवार्य है.
सीनियर एडवोकेट प्रोफेसर रविवर्मा कुमार ने कोर्ट में कहा कि हिजाब पर कोई पाबंदी नहीं है और सवाल यह उठता है कि किस अधिकार या नियम के तहत छात्राओं को कक्षा से बाहर रखा गया. कुमार ने आगे कहा कि सरकार अकेले हिजाब क्यों चुन रही है. चूड़ी पहने हिंदू लड़कियों और क्रॉस पहनने वाली ईसाई लड़कियों को क्लास से बाहर क्यों नहीं भेजा जाता है. वरिष्ठ अधिवक्ता प्रोफेसर रविवर्मा कुमार ने कहा कि क्या आप छात्रों के कल्याण को किसी राजनीतिक दल या राजनीतिक विचारधारा को सौंप सकते हैं? वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा, कॉलेज विकास समिति के पास छात्रों के खिलाफ पुलिस जैसे अधिकार नहीं हो सकते हैं. बता दें कि मंगलवार को स्कूलों में हिजाब पहनी छात्राओं को क्लास से बाहर कर दिया गया था. जिसके बाद उनके माता-पिता ने स्कूल में जमकर हंगामा किया था.
बता दें कि मंगलवार को शादान फरासत ने कोर्ट में कहा था कि कर्नाटक हाईकोर्ट की ओर से पारित आदेश का दुरुपयोग किया जा रहा है. कोर्ट में राज्य सरकार का पक्ष रख रहे महाधिवक्ता ने इसका विरोध किया और कहा कि रिकॉर्ड में कोई आवेदन नहीं है और जो बयान दिए जा रहे हैं वे अस्पष्ट हैं. वहीं, अधिवक्ता कामत ने कहा कि कामत ने कहा कि कल अदालत की ओर से लोक व्यवस्था के मुद्दे पर कुछ जरूरी सवाल पूछे गए. इस बात पर असहमति थी कि क्या सरकार में प्रयुक्त शब्दों का अर्थ सार्वजनिक व्यवस्था है. राज्य ने कहा कि शब्दों के एक से अधिक अर्थ हो सकते हैं और जरूरी नहीं कि इसका मतलब सार्वजनिक व्यवस्था हो.
बता दें कि मंगलवार को इस मुद्दे पर सुनवाई हुई थी लेकिन कोई ठोस हल नहीं निकल सकता था. सुनवाई के दौरान दक्षिण अफ्रीका से लेकर तुर्की तक का जिक्र हुआ था. सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं के वकील ने सरकार के आदेश पर कर्नाटक हाईकोर्ट से स्पष्टीकरण मांगा. वकील कामत ने कहा कि राज्य या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किसी व्यक्ति से उसकी धार्मिक मान्यताओं पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है. इस प्रकार, उसे अपने धर्म का पालन करने और प्रचार करने का पूर्ण अधिकार है. यह देश के आपराधिक कानूनों के अधीन भी होना चाहिए. सुनवाई के दौरान कामत ने दक्षिण अफ्रीका में 2004 के सुनाली पिल्ले बनाम डरबन गर्ल्स हाई स्कूल मामले का हवाला दिया. स्कूल ने कहा था कि लड़कियों को ‘नाक में पारंपरिक गहने’ पहनने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए क्योंकि यह स्कूल में आचार संहिता में हस्तक्षेप करेगा. वकील कामत ने दक्षिण अफ्रीका के फैसले के हवाले से कहा, दुरुपयोग की संभावना उन लोगों के अधिकारों को प्रभावित नहीं करनी चाहिए जो ईमानदार विश्वास रखते हैं.
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