राँची. झारखंड में भाषा को लेकर झारखंड झारखंड मुक्ति मोर्चा झामुमो में घमासान मचा हुआ है. झामुमो के पूर्व सिल्ली विधायक अमित महतो और उनकी पत्नी सीमा महतो ने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है. इस संबंध में दोनों ने रविवार को पार्टी सुप्रीमो सह सांसद शिबू सोरेन को इस्तीफा भेज दिया है. बता दें कि अमित महतो सुदेश महतो को चुनाव में हार गये थे. सोशल मीडिया पर दोनों ने इस्तीफे की घोषणा करते हुए इसके लिए 1932 आधारित स्थानीय नीति और भाषा विवाद पर सरकार की नाकामी को जिम्मेवार ठहराया है. इसे लेकर हाल में झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन ने भी अपनी नीति साफ की थी. उसके बाद से तकरार मचा हुआ है.
शिबू सोरेन को भेजे गए इस्तीफा में उन्होंने लिखा है कि किसी भी राज्य की मूल भाषा वहां के रैयतों के द्वारा बोली जाने वाली मातृभाषा होती है. झारखंड में झारखंड के बाहर की भाषा भोजपुरी, मगही, अंगिका, उर्दू, बंगला, उड़िया को क्षेत्रीय भाषा के रूप में संवैधानिक दर्जा देने के फलस्वरूप यहां के मूल-रैयतों की मातृभाषा विलुप्त और हाशिए पर जाना शत प्रतिशत तय हो गया है.
उन्होंने लिखा, सरकार से 20 जनवरी 2022 को सोशल मीडिया के माध्यम से श्रद्धेय गुरुजी की भावना, पार्टी संविधान एवं झारखंडियों की मूल भावना एवं राज्य के नवनिर्माण के उद्देश्य से खतियान आधारित स्थानीय नीति एवं नियोजन नीति परिभाषित 20 फरवरी 2022 तक करने का आग्रह किया था. इस विषय पर सरकार ने अब तक गंभीरता से कोई ठोस पहल नहीं किया, जिससे मैं आहत हूं और मैं झारखंडी मूल भावना से समझौता नहीं करते हुए अपने घोषणा पर अडिग रहते झामुमो के सभी संवैधानिक पदों सहित प्राथमिक सदस्यता एवं दायित्वों से इस्तीफा देता हूं.
अमित महतो ने लिखा, “इस नियमावली के आधार पर प्रवासियों को झारखंड में तुष्टिकरण के तहत आमंत्रित कर तृतीय एवं चतुर्थ वर्गीय नौकरियों में प्राथमिकता के साथ अवसर देकर प्रोत्साहित करना संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन है. आज के परिपेक्ष्य में झारखंड एवं झारखंड के लोगों का उत्थान के साथ सर्वागीण विकास अवरुद्ध हो गया है, क्योंकि भाषायी अतिक्रमण को प्रोत्साहित कर नियोजन नीति में पूरे देश के अभ्यर्थियों के लिए तुष्टिकरण के तहत झारखंड में किसी भी तिथि में आकर दसवीं, बारहवीं उत्तीर्ण करने वालों के लिए द्वार खोलने से मूल रैयत झारखंडियों की भावना के विपरीत हक अधिकार से वंचित होना निश्चित हो चुका है.
उन्होंने कहा कि सरकार गठन के बाद आम झारखंडी की तरह मुझे भी बहुत उम्मीद थी की यथाशीघ्र पार्टी के चुनावी प्रतिज्ञा पत्र के अनुरूप झारखंडियत का बोध कराते हुए बहुप्रतिक्षित माटी हित में स्थानीय नीति लागू होगा, जिससे झारखंड के मेधावी, होनहार युवाओं को अपने ही माटी में झारखंडियत की पहचान के साथ झारखंड को गढ़ने का शत प्रतिशत अवसर प्राप्त होता, लेकिन बगैर स्थानीय नीति तय किए झारखण्ड से दसवीं-चावी उत्तीर्ण अभ्यर्थियों को तृतीय-चतुर्थ वर्गीय पदों में अवसर देकर पूरे देश के विद्यार्थियों को प्रवासी तुष्टिकरण के तहत झारखण्ड में समाहित करने वाले नीति से योग्य मुल-झारखंडियों का हकमारी से आहत हूं.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-झारखंड SSC की परीक्षा में मगही और भोजपुरी भाषा को मिली जगह
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