मुंबई. प्रॉपर्टी मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने बहुत ही सख्त टिप्पणी की है. कोर्ट ने एक केस की सुनवाई के दौरान एक शख्स से कहा कि कानूनी तौर पर माता-पिता के जीवित होने पर वह उनके को दो फ्लैट्स पर अपने साझा घर के रूप में दावा नहीं कर सकता. कोर्ट ने कहा कि माता-पिता के जीवित होने तक उसके पास ऐसा कोई कानूनी अधिकार नहीं है. टीओआई की खबर के हवाले से कहा कि बॉम्बे हाई कोर्ट ने शख्स से कहा कि जब तक माता या पिता में से कोई एक भी जिंदा है, वह पिता की संपत्ति पर कोई हक नहीं जता सकता. कोर्ट ने कहा कि माता-पिता चाहें तो अपनी संपत्ति को बेच भी सकते हैं, इसके लिए उन्हें बेटे से परमिशन नहीं लेनी होगी.
यह टिप्पणी एक मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस गौतम पटेल और जस्टिस माधव जामदार ने की है. कोर्ट ने इस टिप्पणी के साथ ही इंटरवेंशन एप्लिकेशन को खारिज कर दिया. दरअसल एक बेटे ने अपनी मां और दो शादीशुदा बहनों के साथ बॉम्बे हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की थी. इस याचिका में बेटे की तरफ से मांग की गई थी कि उसकी मां को पिता का लीगल गार्डियन बनाया जाए. दरअसल उसके पिता मानसिक बीमारी (डिमेंशिया) से जूझ रहे हैं, उन्हें कई बार दौरे भी आ चुके हैं. बेटे ने कहा कि उसके पिता बीमारी की वजह से कई बार अस्पताल में भर्ती रहते हैं. बेटे ने कोर्ट को दिए डॉक्युमेंट्स के जरिए बताया कि उसके पिता की कंडीशन खराब है, उन्हें खाना भी नली से दिया जाता है.
पिता की प्रॉपर्टी पर नहीं कर सकता दावा
याचिकाकर्ता बेटे ने कोर्ट में खुद को अपने पिता का लीगल गार्डियन बताया. उनसे कहा कि वह अपने पिता की कई सालों से देखरेख कर रहा है. वहीं कोर्ट ने इस मामले पर आपत्ति जताई कि बेटा खुद कानूनी संरक्षक बनना चाहता है. जब कि वह अपने पिता को कभी डॉक्टर के पास नहीं ले गया. बेटे ने कभी इलाज का खर्चा तक नहीं उठाया. वहीं कोर्ट ने साफ कर दिया कि जब तक माता और पिता में से एक जीवित है, उनकी प्रॉपर्टी पर बेटा दावा नहीं कर सकता. कोर्ट ने 16 मार्च को दिए आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता बेटे ने इस मामले में बहुत से डॉक्युमेंट्स पेश किए, जिनमें ये साफ है कि मां ने इलाज का पूरा खर्चा उठाया. एक भी डॉक्युमेंट्स से ये पता नहीं चला कि उसने पिता के इलाज का खर्चा उठाया है.
क्या कभी पिता को डॉक्टर के पास लेकर गया?
कोर्ट में दाखिल की गई जेजे अस्पताल की 1 अक्टूबर 2021 की रिपोर्ट के मुताबिक याचिकाकर्ता के पिता को 2011 से डिमेंशिया है. उन्हें न्यूमोनाइटिस और बेड सोर हैं. नाक से उन्हें ऑक्सीजन दी जाती है, साथ ही खाने के लिए राइल्स ट्यूब का इस्तेमाल किया जाता है. वह बोल और समझ नहीं सकते. साथ ही कोई भी फैसला या हस्ताक्षर भी नहीं कर सकते. बेटे के वकील का कहना है कि वह कई सालों से अपने पिता का लीगल गार्डियन है. वहीं जस्टिस पटेल ने कहा कि बेटे को खुद कोर्ट में आना चाहिए था. क्या वह एक बार भी अपने पिता को डॉक्टर के पास लेकर गया. क्या बेटे ने उनके मेडिकल बिल का भुगतान किया. वहीं कोर्ट ने कहा कि पिता और मां के जीवित रहते उनके फ्लैट्स पर साझा घर के रूप में बेटा कानून हक नहीं जता सकता.
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