नवमांश कुण्डली से जीवन के लगभग सभी प्रश्नों का उत्तर ज्ञात किया जा सकता

नवमांश कुण्डली से जीवन के लगभग सभी प्रश्नों का उत्तर ज्ञात किया जा सकता

प्रेषित समय :19:52:13 PM / Tue, Apr 26th, 2022

नवमांश कुण्डली से जीवन के लगभग सभी प्रश्नों का उत्तर ज्ञात किया जा सकता है. शिक्षा से सम्बन्धित, व्यवसाय से सम्बन्धित, विवाह से सम्बन्धित, माता पिता एवं संतान से सम्बन्धित प्रश्नों के उत्तर आप नवमांश कुण्डली से जान सकते हैं.

नवमांश कुण्डली लग्न कुण्डली बाद सबसे महत्वपूर्ण मानी जाता है. लग्न कुण्डली अगर शरीर है तो नवमांश कुण्डली को उसकी आत्मा कहा जा सकता है क्योंकि इसी से ग्रहों के फल देने की क्षमता का ज्ञान होता है. कुण्डली से फलादेश करते समय जबतक नवमांश कुण्डली का सही आंकलन नहीं किया जाए फलादेश सही नहीं हो सकता. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जिस व्यक्ति का लग्न वर्गोत्तम नवमांश होता है वह शारीरिक व मानसिक तौर पर स्वस्थ और मजबूत होता है. इसके अलावा व्यक्ति को अपने लग्न में स्थित राशि के अनुसार फल प्राप्त होत हैं. इसी प्रकार ग्रहों के वर्गोत्तम होने पर भी अलग अलग फल मिलता है

सूर्य वर्गोत्तम :- जिस व्यक्ति का सूर्य वर्गोत्तम होता हे वह दार्शनिक प्रवृति का होता है. इनकी मानसिक व शारीरिक क्षमता अच्छी होती है. ये शानो शौकत से जीवन का आनन्द लेते हैं. इन्हें समाज में मान सम्मान एवं प्रतिष्ठा मिलती है. गूढ़ विषयों में इनकी रूचि होती है. नवमांश कुण्डली में लग्न वर्गोत्तम है और 12 वें स्थान पर सूर्य स्थित है तो यह व्यक्ति को सरकारी क्षेत्र में उच्च पद दिलाता है.

चन्द्र वर्गोत्तम :- चन्द्र वर्गात्तम वाले व्यक्ति माता के भक्त होते है. इनकी स्मरण क्षमता अच्छी रहती है. ये बुद्धिमान और होशियार होते हैं. ये भेदभाव का विचार नहीं रखते और सभी के साथ एक समान व्यवहार रखने वाले होते हैं. ये अपनी चाहतों को अच्छी तरह से समझते हैं और उसे प्राप्त करने हेतु तत्पर रहते हैं. नवमांश कुण्डली में लग्न वर्गोत्तम है और 12 वें स्थान पर चन्द्र स्थित है तो व्यक्ति को व्यापार में सफलता मिलती है.

मंगल वर्गोत्तम :- जिस व्यक्ति की कुण्डली में मंगल वर्गोत्तम होता है वे अपनी बातों से लोगों को प्रभावित करना जानते हैं. ये ज्योतिष विद्या में रूचि रखते हैं और अपने परिवेश में होने वाली घटनाओं का पूर्वानुमान करने की क्षमता रखते हैं. ये उत्साही प्रवृति के होते हैं जो इन्हें पसंद नहीं होता उसका विरोध करते हैं. ये अपने ऊपर किसी चीज़ को जबर्दस्ती नहीं ढोते. नवमांश कुण्डली में लग्न वर्गोत्तम है और 12 वें स्थान पर मंगल स्थित है तो व्यक्ति सेना और उससे सम्बन्धित क्षेत्र में कामयाब होता है.

बुध वर्गोत्तम :- बुध वर्गोत्तम वाले व्यक्ति बुद्धिमान होते हैं. ये अपनी बातों से लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने की क्षमता रखते हैं. ये तर्क वितर्क में कुशल और प्रभावशाली होते हैं. इस वर्गोत्तम के व्यक्ति ज्योतिष विद्या में भी निपुणता रखते हैं. नवमांश कुण्डली में लग्न वर्गोत्तम है और 12 वें स्थान पर बुध स्थित है तो यह व्यक्ति को शिक्षा के क्षेत्र में सफल होता है.

बृहस्पति वर्गोत्तम :- जो व्यक्ति बृहस्पति वर्गोत्तम से प्रभावित होते हैं वे घमंडी और अहंकारी होते हैं. ये दूसरों की बातों को ध्यान से सुनते और समझते हैं और सच को जानने की कोशिश करते हैं. ये बुद्धिमान और समझदार होते हैं. ये दिखने में सुन्दर और गठीले नज़र आते हैं. नवमांश कुण्डली में लग्न वर्गोत्तम है और 12 वें स्थान पर बृहस्पति स्थित है तो यह व्यक्ति को धार्मिक क्षेत्र में उच्च स्थान दिलाता है

शुक्र वर्गोत्तम :- शुक्र वर्गोत्तम वाले व्यक्ति अपने शरीर और सौन्दर्य के प्रति विशेष ध्यान देने वाले होते हैं. इस वर्गोत्तम के व्यक्ति सामने वाले के मन में क्या चल रहा है इस बात को समझने की बेहतर क्षमता रखते हैं. ये एक अच्छे भविष्यवक्ता हो सकते हैं. ये अधिक बीमार नहीं होते क्योंकि इनमें रोगों से लड़ने की क्षमता होती है. नवमांश कुण्डली में लग्न वर्गोत्तम है और 12 वें स्थान पर शुक्र स्थित है तो यह व्यक्ति को सुख सुविधाओं से परिपूर्ण जीवन प्रदान करता

शनि वर्गोत्तम :- शनि वर्गोत्तम से प्रभावित व्यक्ति अपनी जिम्मेवारियों के प्रति लापरवाह होते हैं और मेहनत से बचना चाहते हैं. इनमें दृढ़ इच्छा शक्ति होती है.
ये अपने स्वास्थ्य के प्रति सचेत और गंभीर होते हैं. इनकी आयु लम्बी होती है परंतु इनका जीवन संघर्ष से भरा होता है. नवमांश कुण्डली में लग्न वर्गोत्तम है और 12 वें स्थान पर शनि स्थित है तो व्यक्ति जीवन भर किसी की नौकरी करता है.

बृहत्पराशर होराशास्त्र के अगले अध्याय में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि सभी सोलह वर्गों में बारह भाव होने चाहिए. अतः ये किंशुकादि योग वस्तुतः वही योग हैं जिन्हें कुछ इन्टरनेट-गुरुओं द्वारा ‘भावोत्तम’ कहा जाता है, और उनके द्वारा परिभाषित तथाकथित वर्गोत्तम अशुद्ध और अशास्त्रीय धारणा है. विभिन्न वर्गों में लग्न और विभिन्न भावों में किसी ग्रह के एक ही राशि में होने को वे लोग ‘वर्गोत्तम’ कहते हैं, परन्तु बृहत्पराशर होराशास्त्र कहता है कि किंशुकादि योग ग्रहों के होते हैं, राशियों के नहीं. उदाहरणार्थ, ये योग अच्छे होते हैं यदि ग्रह शुभ राशियों में हैं और अशुभ होते हैं यदि ये ग्रह अशुभ राशि या अवस्था में हों, जिसका अर्थ है कि ये किंशुकादि योग ग्रहों के योग हैं, राशियों के नहीं. कुछ प्रकरणों में ये किंशुकादि योग इतने महत्वपूर्ण हो जाते हैं कि जातक की कुण्डली के प्रमुख लक्षण को व्यक्त करते हैं तथा सर्वाधिक सशक्त योग बनकर कार्य करते हैं. राशि आधारित वर्गोत्तम को राशि-वर्गोत्तम कहा जाना चाहिए जो कि भाव-वर्गोत्तम से अलग है,

वर्गों की चार कोटियाँ कुण्डली जिस उद्देश्य से देखी जा रही है उस उद्देश्य के अनुसार ये विशेष योग चार विभिन्न प्रकार से कार्य करते हैं, जिन्हें षड्वर्ग, सप्तवर्ग, दशवर्ग और षोडशवर्ग के नाम से जाना जाता है. वर्गों के एक ही प्रकार के संयोग को चारों वर्गों में अलग-अलग नाम दिया गया है, जैसे यदि दो वर्ग वर्गोत्तम हैं तो उसे षड्वर्ग में ‘किंशुक’ कहा जाएगा, जबकि दशवर्ग का प्रयोग करते हुए इसकी ‘पारिजात’ संज्ञा होगी, और उसी जातक के लिए इस योग की संज्ञा ‘कुसुम’ हो जायेगी यदि हम सभी षोडशवर्ग का प्रयोग कुण्डली देखने में कर रहे हों. अतः इन चारों वर्गों और उनके प्रयोग, जिनकी व्याख्या शास्त्र में नहीं है, को समझना आवश्यक है. परन्तु यदि बृहत्पराशर होराशास्त्र जैसे शास्त्र की भाषा का विश्लेषण करें तो उपरोक्त विषय को समझना कठिन नहीं है.

वर्गोत्तम का प्रयोग जब हम वर्ग का प्रयोग करें तो हमें सबसे पहले वर्ग की उस कोटि का चुनाव करना चाहिए जिसके अंतर्गत हम उस वर्ग का अध्ययन कर रहे हैं. तत्पश्चात हमें उस वर्ग-कोटि के वर्गोत्तम योगों को ढूँढना चाहिए. उदाहरणार्थ यदि कोई ग्रह लग्न, होरा, चतुर्विंशांश और त्रिंशांश कुंडलियों में द्वितीय भाव में बैठा हुआ है तो इसका अर्थ यह होगा कि वह ग्रह अपनी दशान्तर्दशादि में द्वितीय भाव से सम्बन्धित उत्तम फल उन चार वर्गों में देगा. यदि वर्गोत्तम में प्रथम वर्ग (D-1) भी शामिल हो तो फल अधिक बली होता है क्योंकि चारों वर्ग-कोटियों में उसका विंशोपक सर्वाधिक होता है.

बृहत्पराशर होराशास्त्र के धनयोगाध्याय के श्लोक संख्या २८-३४ में किंशुकादि योगों के कतिपय विशिष्ट फल बताये गए हैं. ये विशिष्ट फल वर्गोत्तम के सामान्य फल के अतिरिक्त हैं. सामान्य फल भावफल और भावेशफल के मानक नियमों के आधार पर तय किये जाते हैं. यदि प्रथम वर्ग और किसी अन्य वर्ग में गजकेसरी योग एक साथ बन रहा है तो उन वर्गों (जिनमे वह योग विद्यमान है) के लिए वह योग और भी सशक्त हो जाएगा, बशर्ते दोनों वर्गों में वह योग शुभ हो या दोनों वर्गों में वह योग अशुभ हो. यही नियम अन्य वर्गों के लिए भी लागू होता है. जब इस प्रकार से दो या अधिक वर्गों के फलों का योग किया जा रहा हो तो वर्गों के विंशोपक बल, सम्बन्धित वर्गों के योगकारक ग्रहों के बल, ग्रहों की शुभ और अशुभ प्रकृति आदि का ध्यान रखना चाहिए.

वर्गोत्तम का अर्थ कुंडली के 16 वर्गों में एक ही राशि मे ग्रह होना होता है इसमें लग्न भी वर्गोत्तम हो सकते है यानी 16 में से कई एक कुंडली समान लग्न की होती है.ज्योतिष शास्त्र में इनके नाम भी उपलब्ध है. फलित की बात करें तो जो ग्रह या राशि वर्गोत्तम होते है उनसे संबंधित कारकत्वों का प्रभाव और बाहुल्य व्यक्ति के जीवन मे देखा जाता है उदाहरण स्वरूप अमिताभ बच्चन की 6-7 वर्ग कुंडली कुम्भ लग्न की है और उनकी लग्न कुंडली भी कुम्भ लग्न की ही है फलस्वरूप लग्न के सभी कारकत्व जैसे स्वास्थ्य ,स्वभाव ,धन ,यश ,प्रसिद्धि सभी उन्हें प्राप्त है.

किसी भी ग्रह की महादशा का फल कुंडली में उस ग्रह की स्थिति भाव स्वामित्व भाव स्थित स्थिति अन्य ग्रहो से सम्बन्ध आदि पर निर्भर करता है जिस तरह की ग्रह की स्थिति होगी उसी तरह का फल ग्रह अपनी महादशा में देता है.ग्रहो में वर्गोत्तम ग्रह के बारे में अधिकतर जातक तो जानते ही है कि जब कोई ग्रह लग्न कुंडली और नवमांश कुंडली में एक ही राशि में होता है तो ऐसा ग्रह वर्गोत्तम ग्रह होता है.वर्गोत्तम ग्रह लग्नानुसार किसी भी भाव का स्वामी होकर अपने अनुकूल भाव स्वामित्व के अनुसार किसी अनुकूल भाव में वर्गोत्तम होकर बैठा हो तो बहुत ही शुभ फल देता है.वर्गोत्तम ग्रह अपनी जितनी बली राशि जैसे उच्च राशि, मूलत्रिकोण राशि, स्वराशि, मित्रराशि आदि अपनी किसी भी बली राशि में बैठा होगा वह बहुत अच्छे फल देता है वर्गोत्तम ग्रह यदि अशुभ भाव का स्वामी हो तो अशुभ भाव में ही बैठा हो तब अच्छा फल करता है.अशुभ भाव का स्वमज होकर शुभ भाव में बैठने पर अच्छे फल में कमी भी कर सकता है.

दोन

कुंडलियो में लग्न अनुसार यदि योगकारक या शुभ भाव का स्वामी होकर किसी शुभ भाव में बैठा होगा तो ऐसे वर्गोतम ग्रह की महादशा जातक के लिए बहुत ही शुभ फल देने वाली होगी.जैसे लग्न कुंडली मेष लग्न की हो और 5वे भाव त्रिकोण का स्वामी सूर्य वर्गोत्तम होकर त्रिकोण भाव 9वे भाव में हो और नवमांश कुंडली धनु लग्न की हो इसमें सूर्य त्रिकोण 9वे भाव का स्वामी होता है अब सूर्य नवमांश कुंडली में 9वे भाव त्रिकोण का स्वामी होकर 5वे भाव त्रिकोण में हो तो तो लग्न और नवमांश दोनों ही कुंडलियो में वर्गोत्तम सूर्य त्रिकोण का स्वामी होकर त्रिकोण में ही है जिस कारण सूर्य की महादशा में और सूर्य से सम्बंधित फल जातक को बहुत शानदार और बेहद शुभ मिलेगे क्योंकि दोनों ही कुंडलियो में सूर्य शुभ भाव का स्वामी होकर शुभ भाव में है.
अस्त होने पर वर्गोत्तम ग्रह को बल देने के लिए मन्त्र जप, दान ,हवन आदि से या वर्गोत्तम ग्रह योगकारक हो तो उसका रत्न पहनकर वर्गोत्तम ग्रह को बल देना चाहिए साथ ही अस्त या अंशो में मृत वर्गोत्तम ग्रह का साथ ही जप भी करना चाहिए.जिससे वर्गोत्तम ग्रह के शुभ फल देने की ताकत जाग्रत हो सके.इस तरह वर्गोत्तम ग्रह की महादशा या “अन्तर्दशा यदि महादशा” किसी अनुकूल ग्रह की है तो वर्गोत्तम ग्रह की दशा बहुत श्रेष्ठ फल देती है.

वर्गोत्तम ग्रह-

जब कोई लग्न/ग्रह लग्न कुंडली के अतिरिक्त अन्य वर्ग कुंडलियों मे भी एक ही राशि मे हो तो उसे वर्गोत्तम लग्न/ग्रह कहते हैं चर राशि मे पहला नवांश,स्थिर राशि मे दूसरा तथा द्विस्वभाव राशि मे तीसरा नवांश वर्गोत्तम होता हैं.

जब कोई ग्रह अथवा लग्न दो वर्गो मे वर्गोत्तम होता हैं उसे पारिजातांश कहते हैं इसी प्रकार 3 वर्गो मे उत्तमांश,4 वर्गो मे गोपुरांश,5 वर्गो मे सिंहासनांश,6 वर्गो मे पर्वतांश,7 वर्गो मे देवलोकांश,8 वर्गो मे ब्रह्मलोकांश,9 वर्गो मे एरावतांश,तथा 10 वर्गो मे गया ग्रह श्रीधामांश कहलाता हैं| यह दस वर्ग लग्न,होरा,डी3,डी7,डी9,डी10,डी12,डी16,डी20,व डी60 होते हैं.

मेष राशि के अश्विनी नक्षत्र के प्रथम चरण (0-3’20) का ग्रह वर्गोत्तम होता हैं.
वृष राशि के रोहिणी नक्षत्र के दूसरे चरण (13’20-16’40)का ग्रह वर्गोत्तम होता हैं.
मिथुन राशि के पुनर्वसु नक्षत्र के तीसरे चरण (26’40-30’00) का ग्रह वर्गोत्तम होता हैं.
कर्क राशि के पुनर्वसु नक्षत्र के प्रथम चरण (00-3’20) का ग्रह वर्गोत्तम होता हैं.
सिंह राशि के पूर्वफाल्गुनी नक्षत्र के प्रथम चरण (13’20-16’40) का ग्रह वर्गोत्तम होता हैं.
कन्या राशि के चित्रा नक्षत्र के दूसरे चरण (26’40-30’00)का ग्रह वर्गोत्तम होता हैं.
तुला राशि के चित्रा नक्षत्र के तीसरे चरण (00-3’20) का ग्रह वर्गोत्तम होता हैं.
वृश्चिक राशि के अनुराधा नक्षत्र के चतुर्थ चरण (13’20-16’40) का ग्रह वर्गोत्तम होता हैं.
धनु राशि के उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के प्रथम चरण (26’40-30’00) का ग्रह वर्गोत्तम होता हैं.
मकर राशि के उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के दूसरे चरण (00-3’20)का ग्रह वर्गोत्तम होता हैं.
कुम्भ राशि के शतभीषा नक्षत्र के तीसरे चरण (13’20-16’40) का ग्रह वर्गोत्तम होता हैं.
मीन राशि के रेवती नक्षत्र के अंतिम चरण (26’40-30’00) का ग्रह वर्गोत्तम होता हैं.

यहाँ ध्यान दे की नक्षत्र राशि मे गए ग्रह के अंशो के अनुसार लिए गए हैं. मेष व तुला राशि मे 0’0 से 2’00अंश तक गया कोई भी ग्रह 10 मे से 10 वर्गो मे वर्गोत्तम हो जाएगा.
वर्गोत्तम ग्रह:- ग्रहो में वर्गोत्तम ग्रह के बारे में अधिकतर जातक तो जानते ही है कि जब कोई ग्रह लग्न कुंडली और नवमांश कुंडली में एक ही राशि में होता है तो ऐसा ग्रह वर्गोत्तम ग्रह होता है.वर्गोत्तम ग्रह लग्नानुसार किसी भी भाव का स्वामी होकर अपने अनुकूल भाव स्वामित्व के अनुसार किसी अनुकूल भाव में वर्गोत्तम होकर बैठा हो तो बहुत ही शुभ फल देता है.वर्गोत्तम ग्रह अपनी जितनी बली राशि जैसे उच्च राशि, मूलत्रिकोण राशि, स्वराशि, मित्रराशि आदि अपनी किसी भी बली राशि में बैठा होगा वह बहुत अच्छे फल देता है वर्गोत्तम ग्रह यदि अशुभ भाव का स्वामी हो तो अशुभ भाव में ही बैठा हो तब अच्छा फल करता है.अशुभ भाव का स्वमज होकर शुभ भाव में बैठने पर अच्छे फल में कमी भी कर सकता हैवर्गोत्तम ग्रह की दशा में जातक राजा की तरह सुख भोगने वाला, सूरज की तरह चमकने वाला,उन्नति और कामयाबी को हासिल करेगा अन्य ग्रहो की स्थिति भी अनुकूल हुई तब सोने पर सुहागा जैसा फल वर्गोत्तम ग्रह की दशा में होगा.वर्गोत्तम ग्रह मेष, वृश्चिक, सिंह, मकर, कुम्भ राशि में थोड़ी मेहनत करा कर अच्छा फल देता है क्योंकि यह रशिया क्रूर और पाप ग्रहो मंगल सूर्य शनि की राशिया है जिस कारण कुछ मेहनत से शुभ फल देता है.वृष तुला, कर्क, मिथुन कन्या, धनु, मीन राशियों में वर्गोत्तम ग्रह बहुत जल्द शुभ फल गहराई से देता है.वर्गोत्तम ग्रह 0 से 4 या 27से 30 इतने प्रारभिक या आखरी अंशो पर नही होना चाहिए वरना ग्रह के पूर्ण फल मिलेंगे.

Astro nirmal

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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