सूर्य की अपनी गति है और राशियों से घनिष्ठ संबंध. सूर्य लगातार एक राशि से निकलकर दूसरी राशि में गमन करते हैं. जब वो एक से दूसरी राशि में जाते हैं तो उसे संक्रांति कहते हैं. 12 राशियों से साल भर में 12 संक्रांति होती हैं लेकिन उनमें कुछ ही महत्वपूर्ण हैं और मकर संक्रांति सबसे खास.
जब सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में जाता है तो इसे संक्रांति कहा जाता है. साल भार में सूर्य 12 राशियों के साथ ऐसा करता है, जिससे 12 सूर्य संक्रांति होती हैं और इस समय को सौर मास भी कहा जाता है. इन 12 संक्रांतियों में 04 को ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है और उसमें सबसे खास मकर संक्रांति होती है.
मकर के अलावा जब सूर्य मेष, तुला और कर्क राशि में गमन करता है तो ये संक्रांति भी महत्वपूर्ण मानी जाती है. चूंकि हिंदू धर्म में कैलेंडर सूर्य, चांद और नक्षत्रों पर आधारित है लिहाजा सूर्य हमारे लिए बहुत मायने रखते हैं.
जिस तरह चंद्र वर्ष माह के दो पक्ष होते हैं -- शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष, उसी तरह एक सूर्य वर्ष यानि एक वर्ष के भी दो भाग होते हैं- उत्तरायण और दक्षिणायन. सूर्य वर्ष का पहला माह मेष होता है जबकि चंद्रवर्ष का पहला माह चैत्र होता है.
मकर संक्रांति ही सबसे खास क्यों
सूर्य जब मकर राशि में जाता है तो उत्तरायन गति करने लगता है. उस समय धरती का उत्तरी गोलार्ध सूर्य की ओर मुड़ जाता है. तब सूर्य उत्तर ही से निकलने लगता है. वो पूर्व की जगह वह उत्तर से निकलकर गति करता है.
सूर्य जब एक राशि से दूसरी राशि में जाता है तो इस स्थिति को संक्रांति कहते हैं. सालभर में 12 बार ऐसे अवसर आते हैं.
सूर्य 06 महीने उत्तरायन रहता है और 6 माह दक्षिणायन. उत्तरायन को देवताओं का दिवस माना जाता है और दक्षिणायन को पितरों आदि का दिवस. मकर संक्रांति से अच्छे-अच्छे पकवान खाने के दिन शुरू हो जाते हैं.
भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरायन का महत्व बताते हुए गीता में कहा है कि जब सूर्य देव उत्तरायन होते हैं तो इस प्रकाश में शरीर का परित्याग करने से व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होता, ऐसे लोगों को सीधे ब्रह्म की प्राप्ति होती है.
जानिए मेष संक्रांति क्या होती है
सूर्य जब मेष राशि में आता है तो ये मेष संक्रांति होती है. सूर्य मीन राशि से मेष में प्रवेश करता है. इसी दिन पंजाब में बैसाख पर्व मनाया जाता है. बैसाखी के समय आकाश में विशाखा नक्षत्र होता है. ये दिन भी पर्व की तरह मनाया जाता है. इसे खेती का त्योहार भी कहते हैं, क्योंकि रबी की फसल पककर तैयार हो जाती है.
मकर संक्रांति अगर सबसे खास है तो इसके अलावा तुला, मेष और कर्क संक्रांति का भी अपना महत्व है.
कब होती है तुला संक्रांति
सूर्य का तुला राशि में प्रवेश तुला संक्रांति कहलाता है. ये अक्टूबर माह के मध्य में होता है. इसका कर्नाटक में खास महत्व है. इसे ‘तुला संक्रमण’ भी कहा जाता है. इस दिन ‘तीर्थोद्भव’ के नाम से कावेरी के तट पर मेला लगता है. इसी तुला माह में गणेश चतुर्थी की भी शुरुआत होती है. कार्तिक स्नान शुरू हो जाता है.
चौथी महत्वपूर्ण संक्रांति है कर्क
मकर संक्रांति से लेकर कर्क संक्रांति के बीच के 06 महीने का अंतराल होता है. सूर्य इस दिन मिथुन राशि से निकलकर कर्क राशि में प्रवेश करते हैं.
इसके साथ दक्षिणायन की शुरुआत होती है. तीन खास ऋतुएं वर्षा, शरद और हेमंत दक्षिणायन में होती हैं. इस दौरान रातें लंबी होने लगती हैं. कर्क संक्रांति जुलाई के मध्य में होती है.
Astro nirmal
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-शुभ कार्यों के लिए लाभप्रद समय का संदेश दे रही... मकर संक्रांति!
मकर संक्रांति से खरमास समाप्त और शुभ कार्यों का शुभारंभ हो जाएगा
मकर संक्रांति को तिल-गुड़ खाने से शनि और सूर्य देव प्रसन्न होंगे, धन धान्य की कोई कमी नहीं होगी
गूगल सेलिब्रेट कर रहा है शीतकालीन संक्रांति, बनाया एनिमेटेड डूडल
Leave a Reply