उज्जैन एक अत्यंत प्राचीन शहर है.यहां महाकाल के साथ एक मंगलनाथ मंदिर भी स्थित है. सम्पूर्ण विश्व में भारत देश के अंतर्गत मध्यप्रदेश के उज्जैन शहर में एक मात्र मंग्रल ग्रह का मंदिर है, जहां ब्रह्माण्ड से मंगल ग्रह की सीधी किरणें कर्क रेखा पर स्थित स्वयंभू शिवलिंग के ऊपर पड़ती है, जिससे यह शिवलिंग मंगल ग्रह के प्रतीक स्वरूप में जाना जाता है तथा यहाँ पर पूजन, अभिषेक, जाप व दर्शन से मंगल दोष का निवारण होता है.
पुराणों के अनुसार उज्जैन नगरी को मंगल की जननी कहा जाता है. ऐसे व्यक्ति जिनकी कुंडली में मंगल भारी रहता है, वे अपने अनिष्ट ग्रहों की शांति के लिए यहां पूजा-पाठ करवाने आते हैं. यूं तो देश में मंगल भगवान के कई मंदिर हैं, लेकिन उज्जैन इनका जन्मस्थान होने के कारण यहां की पूजा को खास महत्व दिया जाता है.
निर्माण
लोक मान्यता अनुसार यह मंदिर सदियों पुराना है. सिंधिया राजघराने में इसका पुनर्निर्माण करवाया गया था. उज्जैन शहर को भगवान महाकाल की नगरी कहा जाता है, इसलिए यहां मंगलनाथ भगवान की शिवरूपी प्रतिमा का पूजन किया जाता है. हर मंगलवार के दिन इस मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है.
पौराणिक कथा
कहा जाता है कि एक अंधकासुर नामक दैत्य को शिवजी ने वरदान दिया था कि उसके रक्त से सैकड़ों दैत्य जन्म लेंगे. वरदान के बाद इस दैत्य ने अवंतिका में तबाही मचा दी. तब दीन-दुखियों ने शिवजी से प्रार्थना की. भक्तों के संकट दूर करने के लिए स्वयं शंभु ने अंधकासुर से युद्ध किया. दोनों के बीच भीषण युद्ध हुआ. शिवजी का पसीना बहने लगा, उनके पसीने की बूंद की गर्मी से उज्जैन की धरती फटकर दो भागों में विभक्त हो गई और मंगल ग्रह का जन्म हुआ. शिवजी ने दैत्य का संहार किया और उसकी रक्त की बूंदों को नवउत्पन्न मंगल ग्रह ने अपने अंदर समा लिया. स्कंध पुराण के अवंतिका खंड के अनुसार इसलिए ही मंगल की धरती लाल रंग की है.
मान्यता
मंदिर में हर मंगलवार के दिन भक्तों का तांता लगा रहता है. लोगों का मानना है कि इस मंदिर में ग्रह शांति की पूजा-अर्चना करने से कुंडली में उग्ररूप धारण किया हुआ मंगल शांत हो जाता है. ऐसे व्यक्ति जिनकी कुंडली में चतुर्थ, सप्तम, अष्टम, द्वादश भाव में मंगल होता है, वे मंगल शांति के लिए विशेष पूजा अर्चना करवाते हैं. इसी धारणा के चलते हर साल हजारों नवविवाहित जोड़े, जिनकी कुंडली में मंगल दोष होता है, यहां पूजा-पाठ कराने आते हैं.
भात पूजन द्वारा मंगल ग्रह दोष की शांति
मंगल दोष निवारण भात पूजन द्वारा एक मात्र अवंतिका ( उज्जैन ) में ही सम्पन्न कराया जाता है. यहॉ विधिवत भात पूजन कराने से मंगल ग्रह के दुष्प्रभाव में कमी आकर शुभ फलों की वृद्धि होती है. यहां शिवलिंग का भात पूजन कर मंगल शांति की जाती है. यही नहीं भगवान का कुमकुम और गुलाब या लाल पुष्पों से अभिषेक भी किया जाता है. भात पूजन से मंगल दोष का निवारण हो जाता है. व्यक्ति को इस शांति के बाद नौकरी और विवाह के साथ अन्य परेशानियां नहीं आती.
ग्रह पूजा में हर ग्रह की पूजन सामग्री भिन्न होती है. जिसमें मंगल की भात पूजा प्रसिद्ध है. मंगल को भात क्यों चढ़ाया जाता है. यह भोग है या श्रृंगार. दरअसल मंगल लाल ग्रह है, अग्नि का कारक है, इसका एक नाम अंगारक भी है. यह तेज अग्नि से परिपूर्ण है. इसीलिए मंगल से प्रभावित कुण्डली के लोगों के स्वभाव में गुस्सा और चिड़चिड़ापन भी शामिल होता है.
मंगल को आक्रामकता, साहस और आत्मविश्वास के लिए मुख्य ग्रह माना जाता है और यह मुद्रा, संपत्ति, वैवाहिक जीवन, दुर्घटना, सर्जरी, संबंध, ऋण, बाल और हृदय से संबंधित समस्याओं से संबंधित मामलों पर मजबूत प्रभाव देता है
मंगल को भात इसीलिए चढ़ाए जाते हैं, क्योंकि भात यानी चावल की प्रकृति ठंडी होती है. इससे मंगल को शांति मिलती है और वह भात पूजन करने वाले पर कृपा करते हैं. ठंडक मिलने से मंगल के दुष्प्रभाव स्वतः कम होते हैं.मंगल से प्रभावित कुण्डली वाले जातकों को भी अपने खाने में चावल को शामिल करना चाहिए जिससे उनके स्वभाव में भी थोड़ी शांति और ठंडक आती है. क्रोध कम होता है.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-
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