गणगौर पूजन: शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, मंत्र और तीज का महत्व

गणगौर पूजन: शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, मंत्र और तीज का महत्व

प्रेषित समय :20:57:37 PM / Sun, Apr 3rd, 2022

 * 04 अप्रैल 2022 गणगौर पर्व चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस बार यह पर्व 4 अप्रैल 2022 सोमवार को रहेगा. इस दिन शिव गौरी पूजन किया जाता है. इस दिन सभी विवाहित स्त्रियां सौभाग्य का आशीर्वाद लेंगी. आओ जानते हैं. शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, मंत्र और तीज का महत्व. 

 * गण का अर्थ शिव और गौर का अर्थ गौरी. उल्लेखनीय है कि गणगौर मुख्य रूप से राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश और हरियाणा का त्योहार है, जो 18 दिनों तक चलता है. यह त्योहार चैत्र माह के पहले दिन से शुरू होता है और गणगौर तीज के दिन समाप्त होता है. तीज के दिन मुख्‍य त्योहार रहता है. विवाहिताएं ससुराल में भी गणगौर का उद्यापन करती हैं. 
 * तृतीया तिथि : चैत्र शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि प्रारंभ 03 अप्रैल 2022, रविवार दोपहर 12:38 बजे से तिथि समाप्त 04 अप्रैल 2022, सोमवार दोपहर 01:54 बजे. 

शिव-गौरी पूजन के शुभ मुहूर्त : 

 * अमृत काल मुहूर्त : सुबह 09:18 से 11:02 तक.
 * अभिजीत मुहूर्त : सुबह 11:36 से दोपहर 12:26 तक. 
 * विजय मुहूर्त : दोपहर 02:06 से 02:56 तक. 
 * गोधूलि मुहूर्त : शाम 06:03 से 06:27 तक. 
 * सायाह्न संध्या मुहूर्त : शाम 06:16 से 07:25 तक. 
 *_निशिता मुहूर्त : रात्रि 11:38 से 12:24 तक. 

 * तीज का महत्व : इस व्रत को महिलाएं अपनी पति की लम्बी आयु, कुशलता और सुखद वैवाहिक जीवन के लिए रखती हैं. माता गौरी और महादेवजी की पूजा करने से जहां पति की लंबी आयु का वरदान मिलता है वहीं यदि महिला अविवाहित हैं तो उसे सुयोग्य वर मिलने का आशीर्वाद मिलता है. इस त्योहार को मनाने से घर में सुख, शांति, समृद्धि और संपत्ति प्राप्त होती है. 

पूजा विधि 

 * 1. यह पूजाक्रम चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से आरभ होकर चैत्र शुक्ल तृतीया तक रहता है. व्रत धारण से पूर्व रेणुका गौरी की स्थापना करने के लिए घर के किसी कमरे में एक पवित्र स्थान पर 24 अंगुल चौड़ी, 24 अंगुल लम्बी वर्गाकार वेदी बनाकर हल्दी, चंदन, कपूर केसर आदि से उस पर चौक पूरा जाता है. 

* फिर उस पर बालू से गौरी अर्थात पार्वती बनाकर उनकी स्थापना की जाती है और सुहाग की वस्तुएं-कांच की चूड़ियां, महावर, मेहंदी, टीका, बिंदी, सिंदूर, रोली, कंघा, काजल, शीशा आदि अर्पित जाता है. साथ ही अक्षत, चंदन, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से गौरी का विधिपूर्वक पूजन कर सुहाग की इस सामग्री का अर्पण किया जाता है. फिर भोग लगाने के बाद गौरी माता की कथा कही या सुनी जाती है. कथा के बाद गौरी माता पर चढ़ाए हुए सिंदूर से महिलाएं अपनी मांग भरती हैं. गौरीजी का पूजन दोपहर को होता है. इसके बाद एक बार ही भोजन कर व्रत का पारण किया जाता है. 

* 2. इसके साथ ही 16 सुहागिन महिलाओं को भोजन कराकर प्रत्येक को सम्पूर्ण श्रृंगार की वस्तुएं तथा दक्षिणा दी जाती है. व्यावल (ब्याह ) वर्ष यानी विवाह वाले वर्ष की गणगौर को प्रत्येक विवाहिता अपनी छः, आठ, दस अन्य अविवाहिताओं के वरणपूर्वक साथ लेकर ईसरगौर की पूजा करती हैं. उस सौभाग्यवती विवाहिता को मिलाकर कुल लड़कियों की संख्या सात, नौ या ग्यारह तक हो सकती है. 

 * 3. इसके बाद इस दिन प्रातःकाल की पूजा के बाद तालाब, सरोवर, बावड़ी या कुएं पर जाकर मंगलगान सहित गणगौर की प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाता है. ईसर-गणगौर की प्रतिमाओं को जल में विसर्जित किया जाता है.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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