सुप्रीम कोर्ट ने भांजी के साथ बलात्कार कर हत्या करने वाले मामा की फांसी की सजा उम्र कैद में बदली

सुप्रीम कोर्ट ने भांजी के साथ बलात्कार कर हत्या करने वाले मामा की फांसी की सजा उम्र कैद में बदली

प्रेषित समय :09:15:30 AM / Sat, May 14th, 2022

नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने भांजी के साथ बलात्कार कर हत्या करने वाले हत्यारे मामा की फांसी की सजा को उम्र कैद में बदल दिया है. मामला मध्य प्रदेश का है, जहां 2014 में अपनी चचेरी बहन की 8 वर्षीय बेटी के साथ बलात्कार और उसकी हत्या करने वाले एक दोषी की मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया.

सुप्रीम कोर्ट ने ने अपनी टिप्पणी में कहा कि जिस तरह से अपराध किया गया था, वह शैतानी और भीषण था. लेकिन यह दुर्लभ से दुर्लभतम मामलों की श्रेणी में नहीं आता. जस्टिस एएम खानविलकर, दिनेश माहेश्वरी और सीटी रविकुमार की बेंच ने दोषी की मौत की सजा को उम्रकैद में बदलते हुए कहा कि 30 साल जेल में बिताने से पहले उसे छूट नहीं दी जाएगी.

सुप्रीम कोर्ट की 3 जजों की बेंच ने कहा कि इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि मामले में 8 साल की एक बेबस बच्ची, जो कोई और नहीं बल्कि अपीलकर्ता की चचेरी बहन की बेटी थी. उसके साथ बलात्कार के बाद हत्या कर दी गई. रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों से यह घटना बेहद क्रूर मालूम पड़ती है. हमारा सुविचारित मत है कि स्वामी श्रद्धानन्द के मामले में निर्णय में अपनाई गई और श्रीहरन के मामले में दोहराई गई प्रक्रिया को इस मामले में अपनाया जाना चाहिए. दूसरे शब्दों में, मृत्युदंड को कम करते हुए भी, अपीलकर्ता को पर्याप्त अवधि के लिए समय से पहले रिहाई या छूट के प्रावधानों को लागू किए बिना आजीवन कारावास की सजा दी जानी चाहिए.

इस प्रकार सुप्रीम कोर्ट ने दोषी को आईपीसी की धारा 302 के तहत दंडनीय अपराध के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई. शीर्ष अदालत ने दोषी को 30 (तीस) साल की अवधि के लिए वास्तविक कारावास की सजा दी और कहा कि इससे पहले रिहाई व छूट के प्रावधान लागू नहीं होंगे. अदालत ने कहा कि तथ्य यह है कि दोषी का कोई आपराधिक इतिहास नहीं था और वह एक खराब सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि से था. जेल के अंदर उसका बेदाग आचरण भी सजा सुनाते समय ध्यान में रखा गया.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह भी एक तथ्य है कि अपराध करने के समय दोषी की आयु 25 वर्ष थी. इसलिए, उपरोक्त पहलुओं को ध्यान में रखते हुए हमें अपीलकर्ता के सुधार और पुनर्वास की संभावना से इनकार करने का कोई कारण नहीं मिलता है. चर्चा की लंबी और छोटी बात यह है कि वतज़्मान मामले को दुर्लभ से दुर्लभतम मामलों की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है, जिसमें मौत की सजा देने के अलावा कोई विकल्प न हो. आपको बता दें कि स्थानीय कोर्ट ने दोषी को इस मामले में मौत की सजा सुनाई थी, जिसके खिलाफ उसने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी.
 

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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