हम सभी 2 नवरात्रों के बारे में जानते है एक शारदीय नवरात्रि और एक चैत्र नवरात्रि, लेकिन 2 और नवरात्रि होती है जिसे हमारे शास्त्रों में गुप्त नवरात्रि कहा जाता है.
गुप्त नवरात्रि का बड़ा महत्व है, गुप्त नवरात्रि में मुख्य रूप से दसमहाविद्याओ की पूजन अर्चना की जाती है और मां भगवती बगलामुखी का महत्व समस्त देवियों में सबसे विशिष्ट है, गुप्त नवरात्रि में बगलामुखी महाविद्या की साधना पूजन करने से जातक के समस्त अभीष्ट सिद्ध होते है.
आषाढ़ गुप्त नवरात्रि घटस्थापना ,(गुरुवार) बृहस्पतिवार, 30,जून, 2022 को
घटस्थापना मुहूर्त - प्रातः 05:35 से प्रातः 06:50 - अवधि - 01 घण्टा 15 मिनट्स
घटस्थापना अभिजित मुहूर्त - 11:51 से 12:44 - अवधि - 00 घण्टे 54 मिनट्स
प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ - 29,जून , 2022 को प्रातः 08:21
प्रतिपदा तिथि समाप्त - 30,जून , 2022 को प्रातः 10:49
1. घटस्थापना, शैलपुत्री पूजा: 30 जून, दिन गुरुवार माँ काली और माँ शैलपुत्री पूजा घटस्थापना.
2. मां ब्रह्मचारिणी पूजा: 01 जुलाई, दिन शुक्रवार चंद्रदर्शन, माँ तारा और माँ ब्रह्मचारिणी पूजन, श्री जगन्नाथ यात्रा पुरी.
3. मां चन्द्रघन्टा पूजा: 02 जुलाई, दिन शनिवार
4. मां कुष्माण्डा पूजा: 03, जुलाई, दिन रविवार
5. स्कन्दमाता की पूजा: 04 जुलाई, दिन सोमवार
6. मां कात्यायनी पूजा: 05 जुलाई, दिन मंगलवार
7. मां कालरात्रि पूजा: 06 जुलाई, दिन बुधवार
8. दुर्गा अष्टमी, महागौरी पूजा, सन्धि पूजा: 07 जुलाई, दिन गुरुवार
9. मां सिद्धिदात्री पूजा, नवरात्रि पारण: 08 जुलाई, दिन शुक्रवार
नवरात्र शब्द से नव अहोरात्रों (विशेष रात्रियां) का बोध होता है. इस समय शक्ति के नव रूपों की उपासना की जाती है. 'रात्रि' शब्द सिद्धि का प्रतीक है. भारत के प्राचीन ऋषियों-मुनियों ने रात्रि को दिन की अपेक्षा अधिक महत्व दिया है, इसलिए दीपावली, होलिका, शिवरात्रि और नवरात्र आदि उत्सवों को रात में ही मनाने की परंपरा है. यदि रात्रि का कोई विशेष रहस्य न होता तो ऐसे उत्सवों को रात्रि न कह कर दिन ही कहा जाता. नवरात्र के दिन, नवदिन नहीं कहे जाते हैं.
भारतीय मनीषियों ने वर्ष में दो बार नवरात्रों का विधान बनाया है. विक्रम संवत के पहले दिन अर्थात चैत्र मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (प्रथम तिथि) से नौ दिन अर्थात नवमी तक. और इसी प्रकार ठीक छह मास बाद आश्विन मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से महानवमी अर्थात विजयादशमी के एक दिन पूर्व तक. परंतु सिद्धि और साधना की दृष्टि से शारदीय नवरात्रों को ज्यादा महत्वपूर्ण माना गया है. इन नवरात्रों में लोग अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति संचय करने के लिए अनेक प्रकार के व्रत, संयम, नियम, यज्ञ, भजन, पूजन, योग साधना आदि कर विशेष सिद्धियां प्राप्त करने का प्रयास करते हैं.
आजकल अधिकांश उपासक शक्ति पूजा रात्रि में नहीं बल्कि पुरोहित को दिन में ही बुलाकर संपन्न करा देते हैं. सामान्य भक्त ही नहीं बड़े-बड़े धर्मधुरंधर पंडित और साधु- महात्मा भी अब नवरात्रों में पूरी रात जागकर साधना करना नहीं चाहते हैं. न तो कोई आलस्य को त्यागना चाहता है ओर ना ही विधिवत कर्म ही करना चाहता है. अपने आप को आस्तिक दिखाने का दिखावा (एक प्रकार का मनोरंजन के जैसे) करते हैं बस. बहुत कम उपासक आलस्य को त्याग कर आत्मशक्ति, मानसिक शक्ति और यौगिक शक्ति की प्राप्ति के लिए रात्रि के समय का उपयोग करते देखे जाते हैं उनको भी कुछ लोग तान्त्रिक या अन्य निम्नतर की संज्ञा देकर अपमानित करने की नीयत के धनी बैठे हैं. भारतीय मनीषियों ने रात्रि के महत्व को अत्यंत सूक्ष्मता के साथ वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में समझने और समझाने का प्रयत्न किया है. रात्रि में प्रकृति के बहुत सारे अवरोध खत्म हो जाते हैं. आधुनिक विज्ञान भी इस बात से सहमत है.
हमारे ऋषि – मुनि आज से कितने ही हजारों वर्ष पूर्व ही प्रकृति के इन वैज्ञानिक रहस्यों को जान चुके थे. दिन में आवाज दी जाए तो वह दूर तक नहीं जाएगी , किंतु रात्रि को आवाज दी जाए तो वह बहुत दूर तक जाती है. यह रात्रि का वैज्ञानिक रहस्य है. जो इस वैज्ञानिक तथ्य को ध्यान में रखते हुए रात्रियों में संकल्प और उच्च अवधारणा के साथ साधना करते हुए अपने शक्तिशाली विचार तरंगों को वायुमंडल में भेजते हैं , उनकी कार्यसिद्धि अर्थात मनोकामना सिद्धि , उनके शुभ संकल्प के अनुसार उचित समय और ठीक विधि के अनुसार करने पर अवश्य ही होती है.
नवरात्र या नवरात्रि ? संस्कृत व्याकरण के अनुसार नवरात्रि कहना त्रुटिपूर्ण हैं. नौ रात्रियों का समाहार, समूह होने के कारण से द्वन्द समास होने के कारण यह शब्द पुलिंग रूप 'नवरात्र' में ही शुध्द है. नवरात्र क्या है ? पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा के काल में एक साल की चार संधियाँ हैं. उनमें मार्च व सितंबर माह में पड़ने वाली गोल संधियों में साल के दो मुख्य नवरात्र पड़ते हैं. इस समय रोगाणु आक्रमण की सर्वाधिक संभावना होती है. ऋतु संधियों में अक्सर शारीरिक बीमारियाँ बढ़ती हैं, अत: उस समय स्वस्थ रहने के लिए, शरीर को शुध्द रखने के लिए और तनमन को निर्मल और पूर्णत: स्वस्थ रखने के लिए की जाने वाली प्रक्रिया का नाम 'नवरात्र' है.
नवरात्रि मै करे नवराण मंत्र की साधना
शास्त्रों मै 4 नवरात्रि का वर्णन है 2 गुप्त नवरात्रि है ओर 2 दृष्टया नवरात्रि है इस बार चेत्र शुक्ल प्रतिपदा से नवरात्रि पारम्ब हो रही है.नवरात्रि एक ऐसी पल है जहाँ हम भगवती से जुड़कर उनका साणेध्य प्राप्त कर सकते है उनकी कृपा प्राप्त कर सकते है.जिस तरह से एक बालक गर्भ मै 9 महीने रहता है उसके बाद ही वो गर्भ से निकलकर जीवन मै पूर्ण उत्साह ,पूर्ण निरोगता ,ओर पूर्ण उमंग से जीवन जीता है ये ऊर्जा उसे माँ की गर्भ मै ही मिलती है उसी तरह से ये 9 रात्रि मै माँ की ऊर्जा माँ की सणेध्ये प्राप्त करने की है जीसेय हम भी अपना जीवन पूर्णता के साथ पूर्ण ऊर्जा से जी सके
नवराण मंत्र सभी मँत्रों मै ऊतम मंत्र है की ये स्वयमभूथ मंत्र है जिस तरह से प्रणव ॐ मंत्र स्वयमभूथ है उसी तरह ये भी स्वयमभूथ मंत्र है. बहौत से लौग पूछते है किस तरह से इस नवराण मंत्र का उचारण करना चाहये तो सबसे पहेले मै सभी कॊ बता दूँ की इस मंत्र मै आगेय मै ॐ नही लगेँगा की जैसा बोला की ये स्वय्म्भुत है वही 3 बीज मंत्र मै आखिरी मै लगेँगा ना की.
नवराण मंत्र की साधना सभी ने की है वो कोई सिद्ध हो या कोई भगवान का अवतार नवराण मंत्र की साधना सभी ने की है की ये साधना सभी द्रुश्टी से पूर्णता देती है इसके कई लाभ बताये गये है शस्त्रों मै जो निम्लिक्थ है 1 - अगर आपके शादी सुधा जीवन मै उमंग नही है ,आप संतान हीन है तो एक बार साधना ज़रूर करे
2 - जीवन मै सभी शत्रुऔ के नाश हेतु ये शेर्स्त साधना है चाइय वो शत्रु गुप्त हो ये प्रतेक्स शत्रु ,आप प्रत्यक्ष शत्रुऔ कॊ देख सकते लीकीन उनका क्या जो आपसे मित्रता का दिखावा करके मन मै शत्रु भाव रखे हुवे है
3 -वही ये साधना पूर्ण चेतना जागरण की करती है
4 -ये साधना के प्रताप से आपके जीवन मै आने वाली सभी धन के अभाव का नाश करके आपके धन के नये नये रास्ते खोल देती है
विनियोग : ॐ अस्ये श्री नवराण मंत्रअसस्य ब्रम्हा विष्णु रुद्र ऋषिय गायत्रीविष्णुअनुषपछनदाशी ,श्री महाकाली महालक्ष्मी महसरस्वती देवता ,ऐम बीजम ह्रीम शक्ति ,क्लीम कील्कम ,श्री महाकाली महालक्ष्मी महसरस्वती प्रीतिअर्थे जापे विनियोग :
वही विनियोग के बाद ऋषिन्यास , करनयश ,हृदय न्यास ,ओर मंत्र ध्यान रहता है
नवराण मंत्र की साधना इसकी पूर्ण अनुष्ठान 9 दिन मै करना है जो बहौत आसानी से हो जाता है ,वही इस साधना मै "शक्ति यंत्र " वो भी अभिमंत्रित होना बहौत ज़रूरी है की यंत्र मै ही देवता का वास होता है ओर बिना यंत्र के ये साधना मतलब अधूरी मानी जाती है
साधक को नवरात्र में क्या करना चाहिए ?
यदि किसी कारण विशेष के लिए पूजा कर रहे हो तो स्वयं को श्रृंगार, मौजमजा, काम से दूर करें रखें. निश्चित समय में पूजा पाठ करें तथा निश्चित संख्या में जप करें.
जप अवश्य करें. जप के समय मुंह पूर्व या दक्षिण दिशा में हो.
पूजा के लिए लाल फूल, रोली, चंदन, फल दूर्वा, तुलसीदल व कोई प्रसाद अवश्य लें.
नवरात्र के प्रथम दिन देवी का आवाह्न करें और नियमित पूजा करें.
दुर्गा सप्तशती का पाठ प्रतिदिन करें और इसका नियम समझ कर करें.
क्या कुछ ऐसी बाते भी हैं, जो हम इन दिनों में न करें ?
आवश्यकता से अधिक भोजन न करें.
मां को भोग लगाये बना भोजन नहीं करें. प्रतिदिन गाय, मंदिर, अर्चकों तथा आठ वर्ष से छोटी बच्चियों के लिए भोजन अवश्य निकालें.
तामसिक भोजन का प्रयोग बिल्कुल नहीं करें.
खट्टे भोजन का प्रयोग बिल्कुल नहीं करें.
चमड़े की चीजों का प्रयोग न करें.
संध्या पूजन अवश्य करें और पूजा के उपरांत भूखा नहीं रहना चाहिए.
विशिष्ठ गृहस्थ कर्म नहीं करना चाहिए.
झूठ नहीं बोलना चाहिए.
दुर्गा सप्तशती का गलत पाठ नहीं करें.
माता की ज्योति को पीठ नहीं दिखाएं.
कलश स्थापना के उपरांत पूरे नौ दिन घर को अकेला न छोड़े.
बाहर के जूते-चप्पल उस स्थान से दूर रखें जहां माता तथा कलश स्थापना की हुई है.
तामसिक भोजन न करने वाले लोगों को घर में न आने दें.
माता की पूजा में आडम्बर न करें.
नवरात्र में व्रत व साधना हमें शक्ति, भक्ति, संपन्नता और ज्ञान से परिपूर्ण करती है. लेकिन आम लोग इतनी बड़ी बातें नहीं समझते कि उनकी रोजमर्रा जिंदगी में नवरात्र क्या बदलाव लाते हैं.
मानसिक बल प्राप्त करने के लिए ये 9 दिन बहुत उत्तम होते हैं. जिन लगों को शनि व राहु के कारण समस्याएं हो रही हैं, व भी अपनी पीड़ा ले मुक्ति पा सकते हैं बशर्ते आप सही उपासना रते हैं और कलश स्थापना करते हैं. झूठे मुकदमे में फंस गये हैं तो मुक्ति मिलेगी. यदि आपको महसूस होता है कि आप या आपका परिवार तंत्र से प्रभावित है तो भी सही तरीके से की गई पूजा आपको निजात दिला सकती है.
संतान वह भी उच्च कोटि की संतान प्राप्ति के लिए भी इन दिनों में की गई साधना रंग लाती है.
नवरात्रि में अखंड ज्योति जलाएं मगर पहले ध्यान रखें ये 4 बातें
नवरात्रि में माता दुर्गा के समक्ष नौ दिन तक अखंड ज्योत जलाई जाती है. यह अखंड ज्योत माता के प्रति आपकी अखंड आस्था का प्रतीक स्वरूप होती है. मान्यता के अनुसार माता के सामने एक-एक तेल व एक शुद्ध घी का दीपक जलाना चाहिए.
मान्यता के अनुसार मंत्र महोदधि (मंत्रों की शास्त्र पुस्तिका) के अनुसार दीपक या अग्नि के समक्ष किए गए जप का साधक को हजार गुना फल प्राप्त हो है. कहा जाता है
दीपम घृत युतम दक्षे, तेल युत: च वामत:.
अर्थात - घी युक्त दीपक देवी के दाहिनी ओर तथा तेल वाला दीपक देवी के बाई ओर रखनी चाहिए.
अखंड ज्योत पूरे नौ दिनों तक अखंड रहनी चाहिए. इसके लिए एक छोटे दीपक का प्रयोग करें. जब अखंड ज्योत में घी डालना हो, बत्ती ठीक करनी हो तो या गुल झाडऩा हो तो छोटा दीपक अखंड दीपक की लौ से जलाकर अलग रख लें.
जिस प्रकार मकर और कर्क वृ्त से अयन(मार्ग) परिवर्तन होता है, उसी प्रकार मेष और तुला राशियों से उत्तर गोल तथा दक्षिण गोल का परिवर्तन होता है. एक वर्ष में दो अयन परिवर्तन की संधि और दो गोल परिवर्तन की संधियाँ होती है. कुल मिलाकर एक वर्ष में चार संधियाँ होती हैं. इनको ही नवरात्री के पर्व के रूप में मनाया जाता है.
1. प्रात:काल (गोल संधि) चैत्री नवरात्र
2. मध्यान्ह काल (अयन संधि) आषाढी नवरात्र
3. सांयकाल (गोल संधि) आश्विन नवरात्र
4. मध्यरात्रि (अयन संधि) पौषी नवरात्र
उपरोक्त इन चार नवरात्रियों में गोल संधि की नवरात्रियाँ चैत्र और आश्विन मास की हैं, जो कि दिव्य अहोरात्र के प्रात:काल और सांयकाल की संधि में आती हैं
इन्हे ही विशेष रूप से मनाया जाता है. हालाँकि बहुत से लोग हैं, जिनके द्वारा अयन संधिगत (आषाढ और पौष) मास की नवारत्रियाँ भी मनाई जाती हैं, लेकिन विशेषतय: यह समय तान्त्रिक कार्यों के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है
गृ्हस्थों के लिए गोल संधिगत नवरात्रियों का कोई विशेष महत्व नहीं है.
जिन चान्द्रमासों में नवरात्रि पर्व का विधान है, उनके क्रमश: चित्रा, पूर्वाषाढा, अश्विनी और पुष्य नक्षत्रों पर आधारित हैं. वैदिक ज्योतिष में नाक्षत्रीय गुणधर्म के प्रतीक प्रत्येक नक्षत्र का एक देवता कल्पित किया हुआ है. इस कल्पना के गर्भ में विशेष महत्व समाया हुआ है, जो कि विचार करने योग्य है.
अपनी राशि अनुसार पूजा चुने
मान्यतानुसार गुप्त नवरात्र के दौरान अन्य नवरात्रों की तरह ही पूजा करनी चाहिए. नौ दिनों के उपवास का संकल्प लेते हुए प्रतिप्रदा यानि पहले दिन घटस्थापना करनी चाहिए. घटस्थापना के बाद प्रतिदिन सुबह और शाम के समय मां दुर्गा की पूजा करनी चाहिए. अष्टमी या नवमी के दिन कन्या पूजन के साथ नवरात्र व्रत का उद्यापन करना चाहिए.
मेष मेष राशि के जातक शक्ति उपासना के लिए द्वितीय महाविद्या तारा की साधना करें. ज्योतिष के अनुसार इस महाविद्या का स्वभाव मंगल की तरह उग्र है. मेष राशि वाले महाविद्या की
Koti Devi Devta
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-हरे कृष्ण हरे राम महामन्त्र लेखन पुस्तिका का पूजन, जाप से पाप क्लेश समापन: स्वामी नरसिंह दास
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