श्री महाकाली एकाक्षरी मन्त्र साधना से हर प्रकार की बाधाएँ समाप्त

श्री महाकाली एकाक्षरी मन्त्र साधना से हर प्रकार की बाधाएँ समाप्त

प्रेषित समय :21:06:00 PM / Fri, Jul 1st, 2022

मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों में से मां काली भी एक स्वरूप है. महाकाली के रूप को देवी के सभी रूपों में से सबसे शक्तिशाली माना जाता है. काली शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के ‘काल’ शब्द से हुई है. हिन्दू शास्त्रों में मां काली को अभिमानी राक्षसों के संहार के लिए जाना जाता है. आमतौर पर मां काली की साधना सन्यासी और तांत्रिक करते हैं. यह भी मान्यता है कि मां काली काल का संहार कर मोक्ष प्रदान करती हैं. वह अपने उपासक हर इच्छा पूरी करती हैं. मां काली के कुछ ऐसे मंत्र हैं जिनका जप कोई भी व्यक्ति रोजमर्रा के जीवन में संकट दूर करने के लिए कर सकता है. इस लेख में आगे हम आपको मां काली, उनके मंत्र और जप से होने वाले फायदों के बारे में विस्तार से बताएंगे.
महाकाली की पूजा के लाभ
काली शब्द काले रंग का प्रतीक है. साधक काली की उपासना को सबसे प्रभावशाली मानते हैं. काली किसी भी काम का तुरंत परिणाम देती हैं. काली की साधना के बहुत से लाभ होते हैं. जो साधक को साधना पूरी करने के बाद ही पता चल पाते हैं. यदि मां काली आपकी उपासना से प्रसन्न हो जाती हैं तो उनके आशीर्वाद से आपका जीवन बेहद सुखद हो जाता है.
एकाक्षर मंत्र : क्रीं
मां काली का एकाक्षरी मंत्र ‘क्रीं है. इसका जप मां के सभी रूपों की आराधना, उपासना और साधना में किया जा सकता है. वैसे इसे चिंतामणि काली का विशेष मंत्र भी कहा जाता है.
द्विअक्षर मंत्र : क्रीं क्रीं
इस मंत्र का भी स्वतंत्र रूप से जप किया जाता है. तांत्रिक साधनाएं और मंत्र सिद्धि हेतु हेतु बड़ी संख्या में किसी भी मंत्र का जप करने के पहले और बाद में सात-सात बार इन दोनों बीजाक्षरों के जप का विशिष्ट विधान है.
त्रिअक्षरी मंत्र : क्रीं क्रीं क्रीं
त्रिअक्षरी मंत्र ‘क्रीं क्रीं क्रीं’ काली की साधनाओं और उनके प्रचंड रूपों की आराधनाओं का विशिष्ट मंत्र है. द्विअक्षर मंत्र की तरह इसे भी तांत्रिक साधना मंत्र के पहले और बाद में किया जा सकता है.
ज्ञान प्रदाता मन्त्र : ह्रीं
यह भी एकाक्षर मंत्र है. काली की के बाद इस मंत्र के नियमित जप से साधक को सम्पूर्ण शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त हो जाता है. इसे विशेष रूप से दक्षिण काली का मंत्र कहा जाता है.
क्रीं क्रीं क्रीं स्वाहा
पांच अक्षर के इस मंत्र के प्रणेता स्वयं जगतपिता ब्रह्मा जी हैं. इस मंत्र का प्रतिदिन सुबह के समय 108 बार जप करने से सभी दुखों का निवारण करके घन-धान्य की वृद्धि होती है. इसके जप से पारिवारिक शांति भी बनी रहती है.
क्रीं क्रीं फट स्वाहा
छह अक्षरों का यह मंत्र तीनों लोकों को मोहित करने वाला है. सम्मोहन आदि तांत्रिक सिद्धियों के लिए इस मंत्र का विशेष रूप से जप किया जाता है.
क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं स्वाहा
धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष जीवन के चारों ध्येयों की आपूर्ति करने में यह मंत्र समर्थ है. आठ अक्षरों से निर्मित इस मंत्र उपासना को उपासना के अंत में जप करने पर सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं.
नवार्ण मंत्र
‘ओम ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै:’ दुर्गासप्तशती के अनुसार नौ अक्षरों से बना यह मंत्र मां के नौ स्वरूपों को समर्पित है. इसका प्रत्येक अक्षर एक ग्रह को नियंत्रित करता है. इस मंत्र का जप नवरात्रों में विशेष फलदायी होता है.
उपासना विधि 
मां काली की उपासना के लिए मां की तस्वीर या प्रतिमा को स्वच्छ आसान पर स्थापित करें. प्रतिमा के तिलक लगाएं और पुष्प आदि अर्पित करें. एक आसन पर बैठकर प्रतिदिन किसी भी मंत्र का 108 बार जप करें. जप के बाद अपनी सामथ्र्य के अनुसार भोग मां काली को अर्पण करें. अपनी इच्छा पूरी होने तक इस प्रयोग को जारी रखें. यदि आप विशेष उपासना करना चाहते हैं तो सवा लाख, ढाई लाख, पांच लाख मंत्र का जप अपनी सुविधा अनुसार कर सकते हैं.
(1) आचमन, पवित्रीकरण, आसन शुद्धि करे. जिसका गुरु हो वो गुरु पूजन करे. जिसका गुरु नहीं हो वह अपने सामने रखे शिवलिंग या शिव मूर्ति/चित्र को श्रीदक्षिणामूर्ति शिवजी जानकर और अपना गुरु मानकर पूजा करे.
नारायण उवाच
श्रृणु वक्ष्यामि विप्रेन्द्र कवचं परमाद्भुतम् . नारायणेन यद् दत्तं कृपया शूलिने पुरा ॥ त्रिपुरस्य वधे घोरे शिवस्य विजयाय च . तदेव शूलिना दत्तं पुरा दुर्वाससे मुने ॥ दुर्वाससा च यद् दत्तं सुचन्द्राय महात्मने . अतिगुह्यतरं तत्त्वं सर्वमन्त्रौघविग्रहम्॥ ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं कालिकायै स्वाहा मे पातु मस्तकम्. मे क्लीं कपालं सदा पातु ह्रीं ह्रीं ह्रीमिति लोचने ॥ ॐ ह्रीं त्रिलोचने स्वाहा नासिकां मे सदावतु. क्लीं कालिके रक्ष रक्ष स्वाहा दन्तान् सदावतु ॥ ह्रीं भद्रकालिके स्वाहा पातुमेऽधरयुग्मकम् . ॐ ह्रीं ह्रीं क्लीं कालिकायै स्वाहा कण्ठं सदावतु ॥ ॐ ह्रीं कालिकायै स्वाहा कर्णयुग्मं सदावतु. ॐ क्रीं क्रीं क्लीं काल्यै स्वाहा स्कन्धं पातुसदा मम ॥ ॐ क्रीं भद्रकाल्यै स्वाहा मम वक्षः सदावतु. ॐ क्रीं कालिकायै स्वाहा मम नाभिं सदावतु ॥ ॐ ह्रीं कालिकायै स्वाहा मम पृष्ठं सदावतु. रक्तबीजविनाशिन्यै स्वाहा हस्तौ सदावतु ॥ ॐ ह्रीं क्लीं मुण्डमालिन्यै स्वाहा पादौ सदावतु. ॐ ह्रीं चामुण्डायै स्वाहा सर्वाङ्गं मे सदावतु ॥ प्राच्यां पातु महाकाली चाग्नेय्यां रक्तदन्तिका. दक्षिणे पातु चामुण्डा नैर्ऋत्यां पातु कालिका ॥ श्यामा च वारुणे पातु वायव्यां पातु चण्डिका उत्तरे विकटास्या चा-प्यैशान्यां साट्टहासिनी ॥ पातूर्ध्वं लोलजिह्वा मायाऽऽद्या पात्वधः सदा . जले स्थले चान्तरिक्षे पातु विश्वप्रसूः सदा ॥ इति ते कथितं वत्स- सर्वमन्त्रौघ-विग्रहम् . सर्वेषां कवचानां च सारभूतं परात्परम् ॥ सप्तद्वीपेश्वरो राजा सुचन्द्रोऽस्य प्रसादतः.
कवचस्य प्रसादेन मान्धाता पृथिवीपतिः ॥ प्रचेता लोमेशश्चैव यतः सिद्धो बभूव हि . यतो हि योगिनां श्रेष्ठ: सौभरि: पिप्पलायन: ॥ यदि स्यात् सिद्धकवच: सर्वसिद्धीश्वरो भवेत्. महादानानि सर्वाणि तपांसि च व्रतानि च ॥ निश्चितं कवचस्यास्य कलां नार्हन्ति षोडशीम् ॥ इदं कवचमज्ञात्वा भजेत् कालीं जगत्प्रसूम्. शतलक्षंप्रजप्तोऽपि न मन्त्रः सिद्धिदायकः ॥ श्रीब्रह्मवैवर्ते महापुराणे तृतीये गणपतिखण्डे नारद नारायण-संवादे भद्रकालीकवचम् ॐ तत्सत् ॥
यह मन्त्र एक लाख बार जप करने से सिद्ध होता है अर्थात कुल 1000 मालाएं जप करनी हैं
सुझाव 40 माला हर दिन जपे यानि 20 माला दिन में और 20 माला रात को जपे. 20 माला में 36 मिनट लग सकते हैं. इस तरह 4000 बार जप प्रतिदिन हो जाएगा. ऐसा 25 दिनों तक करना है तो ( 25 दिन * 40 माला = 1000 माला) एक लाख जप पूरा हो जाएगा.
(30) पुन: कुल्लुका, सेतु, महासेतु, आशौचभंग का जप : ॐ महासेतु= "क्रीं" मन्त्र को कंठ में 10 बार जपे
ॐ सेतु = "ॐ" मन्त्र को ह्रदय में 10 बार जपे ॐ अशौचभंग = "ॐ क्रीं ॐ”
7 बार हृदय में जपे ॐ क्रीं से प्राणायाम करे = मन में 4 बार क्रीं जपकर नाक से श्वास अंदर को ले, अब 16 बार मन्त्र जपने तक श्वास को भीतर रोके रखे इसके बाद 8 बार जपते हुए श्वास बाहर निकाले .
(31) जपसमर्पण
एक आचमनी जल लेकर निम्न मंत्र पढ़कर सारा मन्त्र जपकर्म देवी के बायें हाथ में अर्पित कर
दें ॐ गुह्यातिगुह्यगोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम् . सिद्धिर्भवतु मे देवि त्वत्प्रसादात्सुरेश्वरि ॥ श्री
(32) क्षमायाचना
अपराधसहस्राणि क्रियंतेऽहर्निशं मया . दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि ॥1॥ आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम् . पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरि ॥2॥ मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि . यत्पूजितं मया देवि परिपूर्ण तदस्तु मे ॥3॥
शक्राय नमः शक्राय नमः शक्राय नमः - बोलकर आसन के नीचे जल छिड़के और माथे पर लगाए फिर बोले श्री विष्णवे नमः विष्णवे नमः विष्णवे नमः . -
(33) पुरश्चर्या के अन्य अंग:
जप तो उपरोक्त प्रकार से कर ले| जिस दिन सारा जप पूर्ण हो जाए "क्रीं कालीं नारिकेल बलिं समर्पयामि नमः" बोलकर काली माँ को नारियल तोड़कर सात्विक बलि के रूप में दे. हवन, तर्पण, मार्जन, ब्राह्मण भोजन भी करे 
सुझाव: हवन: "क्रीं स्वाहा" मन्त्र से अग्नि में कुल दस हजार बार हवन घी द्वारा करने को कहा गया है. यानि 25 दिनों तक हर दिन 400 बार आहुति दे.
तर्पण: "क्रीं नमः कालिकां तर्पयामि स्वाहा " बोलकर रोली, चन्दन, दूध, चीनी, फूल, तिल मिश्रित पानी ( सम्भव हो तो गंगाजल) से कुल एक हजार बार कालिका देवी का तर्पण (अर्घ्य द्वारा या आचमनी से जल अर्पण) करें. यानि 25 दिनों तक हर दिन 40 बार तर्पण करें.
मार्जन
"क्रीं कालिका देवीं अभिषिंचामि नमः" बोलकर दूर्वा या कुश द्वारा कुल 100 बार मार्जन (अपने मस्तक पर जल छिड़कना) करना है.
ब्राह्मण भोजन
 10 व्यक्तियों को भोजन कराए ये ब्राह्मण या सुहागिन औरतें भी हो सकती हैं. छोटी कन्याओं को तो अवश्य खिलाए. दक्षिणा भी दे
यदि पुरश्चर्या के किसी अंग (जैसे हवन) को करना सम्भव न हो तो उस अंग का दोगुना जप करे यदि अधिक सामर्थ्य है तो साधक उस अंग की पूर्ति के लिए उस अंग की संख्या का तीन गुना या चार गुना जप भी कर सकता है.. जैसे 10,000 (दस हजार = अयुत) बार होम करने में असमर्थ होने पर उसके स्थान पर दोगुना यानि 20,000(विंशत्यधिक सहस्र) बार एकाक्षरी मन्त्र का जप करना होगा, इसमें संकल्प इस प्रकार रहेगा -
विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः ॐ तत्सत् श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य श्रीब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे, कलिप्रथम चरणे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे भूप्रेदेशे प्रदेशे मासे पक्षे, तिथौ, -वासरे -गोत्रोत्पन्न - (नाम) अहं अद्य दिवसात प्रारभ्य श्रीकालिका देवी प्रीतये श्री काली एकाक्षरी मन्त्रस्य पुरश्चरणस्य (या जितना जप किया है उसका उच्चारण  करें) सांगता सिद्धयर्थे काली एकाक्षरी मन्त्रस्य अयुत संख्यक होमाभावे काली एकाक्षरी मन्त्रस्य विंशत्यधिक सहस्र संख्यक जपमहं करिष्ये 
10,000 हवन की जगह 20,000 जप करने वाले को सुझाव है कि 25 दिन तक हर दिन 800 (8 माला) जप करे.
यह पूजा तथा मन्त्र जप को किसी के सामने प्रकट नहीं करे अर्थात गोपनीय रखे. पुरश्चरण काल में ब्रह्मचर्य रखे, किसी भी स्त्री के लिए बुरा व्यवहार न करे इस बात का ध्यान रहे. कुछ ग्रंथों में इसका 2 लाख व 3 लाख बार जप करने को भी कहा गया है. इसलिए एक बार पुरश्चरण हो जाने पर यदि अच्छे स्वप्न आदि शुभ संकेत मिले तो सिद्धि मिलने तक साधक फिर से पुरश्चरण करता जाय. पुरश्चरण के बाद भी इस मन्त्र को हर दिन एक-दो माला जपे तो अच्छा है.
देवी महाकाली भूत-प्रेत, जादू-टोना, ग्रहों आदि के कारण उपजी हर प्रकार की बाधाएँ हर लेती हैं. अतः शिशु जैसा बनकर भक्ति भाव एवं सच्चे हृदय से काली माँ का ध्यान करते हुए माँ के मंत्रों का मानसिक जप करते रहना चाहिये. काली सहस्रनाम का सावधानीपूर्वक सच्चे हृदय से किया गया पाठ तुरन्त फल देने वाला होता है. इसके अलावा माँ काली के अष्टोत्तरशतनाम, अष्टक, कवच, हृदय आदि बहुत से सुंदर स्तोत्र हैं जिनका महाकाली की प्रीति हेतु पाठ किया जाना उत्तम है.

Koti Devi Devta

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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