देवी-देवताओं की सवारी क्यों होते हैं पशुपक्षी

देवी-देवताओं की सवारी क्यों होते हैं पशुपक्षी

प्रेषित समय :21:03:10 PM / Thu, Jul 7th, 2022

हर देवी और देवता का एक वाहन होता है. खास बात ये है कि इनके वाहन के लिए पशु-पक्षियों को चुना गया है. क्या आप जानते हैं इसके पीछे क्या कहानी है क्यों देवी-देवता की सवारी के लिए पशु-पक्षियों को ही चुना गया.
अध्यात्मिक, वैज्ञानिक और व्यवहारिक कारणों से भारतीय मनीषियों ने देवताओं के वाहनों के रूप में पशु-पक्षियों को जोड़ा. माना जाता है कि देवताओं के साथ पशुओं को उनके व्यवहार के अनुरूप जोड़ा गया है.
अगर पशुओं को भगवान के साथ नहीं जोड़ा जाता तो शायद पशु के प्रति हिंसा का व्यवहार और ज्यादा होता. भारतीय मनीषियों ने प्रकृति और उसमें रहने वाले जीवों की रक्षा का एक संदेश दिया है. हर पशु किसी न किसी भगवान का प्रतिनिधि है, उनका वाहन है, इसलिए इनकी हिंसा नहीं करनी चाहिए.
ज्ञान की देवी मां सरस्वती के लिए का वाहन हंस माना जाता है. हंस पवित्र, जिज्ञासु और समझदार पक्षी होता है. हंस अपने चुने हुए स्थानों पर ही रहता है. तीसरी इसकी खासियत हैं कि यह अन्य पक्षियों की अपेक्षा सबसे ऊंचाई पर उड़ान भरता है और लंबी दूरी तय करने में सक्षम होता है.
भगवान शिव का वाहन माना जाता है नंदी. विश्‍व की लगभग सभी प्राचीन सभ्यताओं में बैल को महत्व दिया गया है. सुमेरियन, बेबीलोनिया, असीरिया और सिंधु घाटी की खुदाई में भी बैल की मूर्ति पाई गई है. इससे प्राचीनकल से ही बैल को महत्व दिया जाता रहा है. भारत में बैल खेती के लिए हल में जोते जाने वाला एक महत्वपूर्ण पशु रहा है.
देवी-देवताओं ने अपनी सवारी बहुत सोच समझकर चुनी. उनके वाहन उनकी चारित्रिक विशेषताओं को भी बताते हैं. शिवपुत्र गणेशजी का वाहन है मूषक. मूषक शब्द संस्कृत के मूष से बना है जिसका अर्थ है लूटना या चुराना.
सांकेतिक रूप से मनुष्य का दिमाग मूषक, चुराने वाले यानी चूहे जैसा ही होता है. यह स्वार्थ भाव से गिरा होता है. गणेशजी का चूहे पर बैठना इस बात का संकेत है कि उन्होंने स्वार्थ पर विजय पाई है और जनकल्याण के भाव को अपने भीतर जागृत किया है.
प्रमुख देवी देवता ओर उनके वाहन?
विष्णु का वाहन गरूड़:- लुप्त हो रहा है गरूड़. माना जाता है कि गिद्धों (गरूड़) की एक ऐसी प्रजाति थी, जो बुद्धिमान मानी जाती थी और उसका काम संदेश को इधर से उधर ले जाना होता था, जैसे कि प्राचीनकाल से कबूतर भी यह कार्य करते आए हैं. भगवान विष्णु का वाहन है गरूड़.
प्रजापति कश्यप की पत्नी विनता के 2 पुत्र हुए- गरूड़ और अरुण. गरूड़जी विष्णु की शरण में चले गए और अरुणजी सूर्य के सारथी हुए. सम्पाती और जटायु इन्हीं अरुण के पुत्र थे.
राम के काल में सम्पाती और जटायु की बहुत ही चर्चा होती है. ये दोनों भी दंडकारण्य क्षेत्र में रहते थे, खासकर मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ में इनकी जाति के पक्षियों की संख्या अधिक थी. छत्तीसगढ़ के दंडकारण्य में गिद्धराज जटायु का मंदिर है. स्थानीय मान्यता के मुताबिक दंडकारण्य के आकाश में ही रावण और जटायु का युद्ध हुआ था और जटायु के कुछ अंग दंडकारण्य में आ गिरे थे इसीलिए यहां एक मंदिर है.
दूसरी ओर मध्यप्रदेश के देवास जिले की तहसील बागली में ‘जटाशंकर’ नाम का एक स्थान है जिसके बारे में कहा जाता है कि गिद्धराज जटायु वहां तपस्या करते थे. जटायु पहला ऐसा पक्षी था, जो राम के लिए शहीद हो गया था. जटायु का जन्म कहां हुआ, यह पता नहीं, लेकिन उनकी मृत्यु दंडकारण्य में हुई.
उल्लू को भारतीय संस्कृति में शुभता और धन संपत्ति का प्रतीक माना जाता है. हालांकि अधिकतर लोग इससे डरते हैं. इस डर के कारण ही इसे अशुभ भी माना जाता है. अधिकतर यह माना जाता है कि यह तांत्रिक विद्या के लिए कार्य करता है. उल्लू के बारे में देश-विदेश में कई तरह की विचित्र धारणाएं फैली हुई है.
अधिक संपन्न होने के चक्कर में लोग दुर्लभ प्रजाति के उल्लुओं के नाखून, पंख आदि को लेकर तांत्रिथक कार करने हैं. कुछ लोग तो इसकी दीपावली की रात को बलि भी चढ़ाते हैं जिसके कारण इस पक्षी पर संकट गहरा गया है. हालांकि ऐसे करने से रही सही लक्ष्मी भी चली जाती है और आदमी पहले से अधिक गहरे संकट में फंस जाता है.
रहस्यमी प्राणी उल्लू : जब पूरी ‍दुनिया सो रही होती है तब यह जागता है. यह रात्री में उड़ते समय पंख की आवाज नहीं निकालता है और इसकी आंखें कभी नहीं झपकती है. उल्लू का हू हू हू उच्चारण एक मंत्र है.
उल्लू में पांच प्रमुख गुण होते हैं : उल्लू की दृष्टि तेज होती है. दूसरा गुण उसकी नीरव’ उड़ान. तीसरा गुण शीतऋतु में भी उड़ने की क्षमता. चौथी उसकी योग्यता है उसकी विशिष्ट श्रवण-शक्ति. पांचवीं योग्यता अति धीमे उड़ने की भी योग्यता. उल्लू के ऐसे ऐसे गुण हैं जो अन्य किसी पक्षियों में नहीं है. उसकी इसकी योग्यता को देखकर अब वैज्ञानिक इसी तरह के विमान बनाने में लगे हैं.
उल्लू एक ऐसा पक्षी है जो किसानों के लिए अच्छा साबित हो सकता है. इसके होने के कारण खेत में चूहे, सांप, बिच्छी आदी नहीं आ सकते. इसके आलाव छोटे मोटे किड़े के लिए उल्लू एक दमनकारी पक्षी है. भारत में लगभग साठ जातियों या उपजातियों के उल्लू पाए जाते हैं.
उल्लू कैसे बना लक्ष्मी का वाहन :- प्राणी जगत की संरचाना करने के बाद एक रोज सभी देवी-देवता धरती पर विचरण के लिए आए. जब पशु-पक्षियों ने उन्हें पृथ्वी पर घुमते हुए देखा तो उन्हें अच्छा नहीं लगा और वह सभी एकत्रित होकर उनके पास गए और बोले आपके द्वारा उत्पन्न होने पर हम धन्य हुए हैं. हम आपको धरती पर जहां चाहेंगे वहां ले चलेंगे. कृपया आप हमें वाहन के रूप में चुनें और हमें कृतार्थ करें.
देवी-देवताओं ने उनकी बात मानकर उन्हें अपने वाहन के रूप में चुनना आरंभ कर दिया. जब लक्ष्मीजी की बारी आई तब वह असमंजस में पड़ गई किस पशु-पक्षी को अपना वाहन चुनें. इस बीच पशु-पक्षियों में भी होड़ लग गई की वह लक्ष्मीजी के वाहन बनें. इधर लक्ष्मीजी सोच विचार कर ही रही थी तब तक पशु पक्षियों में लड़ाई होने लगी गई.
इस पर लक्ष्मीजी ने उन्हें चुप कराया और कहा कि प्रत्येक वर्ष कार्तिक अमावस्या के दिन मैं पृथ्वी पर विचरण करने आती हूं. उस दिन मैं आपमें से किसी एक को अपना वाहन बनाऊंगी. कार्तिक अमावस्या के रोज सभी पशु-पक्षी आंखें बिछाए लक्ष्मीजी की राह निहारने लगे. रात्रि के समय जैसे ही लक्ष्मीजी धरती पर पधारी उल्लू ने अंधेरे में अपनी तेज नजरों से उन्हें देखा और तीव्र गति से उनके समीप पंहुच गया और उनसे प्रार्थना करने लगा की आप मुझे अपना वाहन स्वीकारें.
लक्ष्मीजी ने चारों ओर देखा उन्हें कोई भी पशु या पक्षी वहां नजर नहीं आया. तो उन्होंने उल्लू को अपना वाहन स्वीकार कर लिया. तभी से उन्हें उलूक वाहिनी कहा जाता है.
मां सरस्वती का वाहन हंस :- हंस पवित्र, जिज्ञासु और समझदार पक्षी होता है. यह जीवनपर्यन्त एक हंसनी के ही साथ रहता है. परिवार में प्रेम और एकता का यह सबसे श्रेष्ठ उदाहरण है. इसके अलावा हंस अपने चुने हुए स्थानों पर ही रहता है. तीसरी इसकी खासियत हैं कि यह अन्य पक्षियों की अपेक्षा सबसे ऊंचाई पर उड़ान भरता है और लंबी दूरी तय करने में सक्षम होता है. 
मां पार्वती का वाहन बाघ :- माता पार्वती का वानह बाघ है तो मां दुर्गा का वहन शेर. मांता दुर्गा को शेरावाली कहा जाता है. बाघ तो माता पार्वती का वाहन है. बाघ अदम्य साहस, क्रूरता, आक्रामकता और शौर्यता का प्रतीक है. यह तीनों विशेषताएं मां पार्वती के आचरण में भी देखने को मिलती है. बाघ की दहाड़ के आगे संसार की बाकी सभी आवाजें कमजोर लगती हैं.
मां पार्वती का हृदय बहुत ही कोमल है. मां की पूजा यदि सच्चे मन और श्रृद्धा के साथ की जाएं तो हर बिगड़े कार्य बन जाते हैं, लेकिन यदि माता का किसी भी रूप में अपमान हो या उनसे वाद खिलाफी की गई हो तो फिर उनका क्रोध देखने लायक होगा. कई लोग मन्नत को कर लेते हैं लेकिन काम होने के बाद उसे पूरी नहीं करते हैं तब मां उनको याद दिलाने के लिए भक्त को घनचक्कर बना देती है.
माता के प्रभाव के चलते वह बाघ भी तपस्या कर रही मां के साथ वहीं सालों चुपचाप बैठा रहा. मां ने हठ कर ली थी कि जब तक वह गौरी नहीं हो जाएगी तब तक वह यहीं तपस्या करेगी. तब शिवजी वहां प्रकट हुए और देवी को गौरा होने का वरदान देकर चले गए. फिर माता ने पास की ही नदी में स्नान किया और बाद में देखा की एक बाघ वहां चुपचाप बैठा माता को ध्यान से देख रहा है. माता पार्वती को जब यह पता चला कि यह शेर उनके साथ ही तपस्या में यहां सालों से बैठा रहा है तो माता ने प्रसंन्न होकर उसे वरदान स्वरूप अपना वाहन बना लिया. तब से मां पार्वती का वाहन बाघ हो गया.
यमराज का वाहन भैंसा :- यम नामम एक वायु होती है. मरने के बाद व्यक्ति उक्त वाय में जाकर स्थिर हो जाता है और फिर प्राकृतिक चक्र अनुसार पुन: धरती पर जन्म ले लेता है.
यम नामक एक देवता हैं ‍जिनको मृत्यु का देवता कहते हैं. ये दक्षिण दिशा के दिक् पाल कहे जाते हैं. यमराज को भैंसे पर सवार बताया गया है. भैंसा एक सामाजिक प्राणी होता है. सभी भैंसे मिलकर एक दूसरे की रक्षा करते हैं. यह एकता का प्रतीक है. भैंसा अपनी शक्ति और फुर्ती के लिए भी जाना जाता है. भैंसा अपनी शक्ति का कभी दुरुपयोग नहीं करता. भैंसा अपनी आत्मरक्षा में ही किसी पर हमला करता है. भैंसे का रूप जिस तरह से भयानक होता है उसी तरह यमराज का रूप भी भयानक है. अत: यमराज उसको अपने वाहन के तौर पर प्रयोग करते हैं.
व्यक्ति मरता है तो सबसे पहले यमदूतों के पल्ले पड़ता है, जो उसे 'यमराज' के समक्ष उपस्थित कर देते हैं. यमराज को दंड देने का अधिकार प्रदान है. वही आत्माओं को उनके कर्म अनुसार नरक, स्वर्ग, पितृलोक आदि लोकों में भेज देते हैं. उनमें से कुछ को पुन: धरती पर फेंक दिया जाता है.
कौआ एक बुद्धिमान प्राणी है. कौए को अतिथि-आगमन का सूचक और पितरों का आश्रम स्थल माना जाता है. पुराणों की एक कथा के अनुसार इस पक्षी ने अमृत का स्वाद चख लिया था इसलिए मान्यता के अनुसार इस पक्षी की कभी स्वाभाविक मृत्यु नहीं होती. कोई बीमारी एवं वृद्धावस्था से भी इसकी मौत नहीं होती है. इसकी मृत्यु आकस्मिक रूप से ही होती है.
जिस दिन किसी कौए की मृत्यु हो जाती है उस दिन उसका कोई साथी भोजन नहीं करता है. कौआ अकेले में भी भोजन कभी नहीं खाता, वह किसी साथी के साथ ही मिल-बांटकर भोजन ग्रहण करता है.
भगवान भैरव का वाहन कुत्ता :- कुत्ता एक रहस्यमयी प्राणी है. कुछ धर्मों में इसे शैतानी माना गया है तो ‍हिन्दू धर्म में इसे कुशाग्र बुद्धि और रहस्यों को जानने वाला प्राणी माना गया है. कई मामलों में यह मनुष्यों की रक्षा करता है. भगवान भैरव ने इसे अपना वाहन तो नहीं बनाया लेकिन वे हमेशा इसे अपने साथ रखते हैं.
हिन्दू धर्म के पुराणों में कुत्ते को यम का दूत कहा गया है. ऋग्वेद में एक स्थान पर जघन्य शब्द करने वाले श्वानों का उल्लेख मिलता है, जो विनाश के लिए आते हैं.
भैरव महाराज का सेवक :- कुत्ते को हिन्दू देवता भैरव महाराज का सेवक माना जाता है. कुत्ते को भोजन देने से भैरव महाराज प्रसन्न होते हैं और हर तरह के आकस्मिक संकटों से वे भक्त की रक्षा करते हैं. मान्यता है कि कुत्ते को प्रसन्न रखने से वह आपके आसपास यमदूत को भी नहीं फटकने देता है. कुत्ते को देखकर हर तरह की आत्माएं दूर भागने लगती हैं.
कुत्ते की योग्यता : दरअसल कुत्ता एक ऐसा प्राणी है, जो भविष्‍य में होने वाली घटनाओं और ईथर माध्यम (सूक्ष्म जगत) की आत्माओं को देखने की क्षमता रखता है. कुत्ता कई किलोमीटर तक की गंध सूंघ सकता है. कुत्ते को हिन्दू धर्म में एक रहस्यमय प्राणी माना गया है, लेकिन इसको भोजन कराने से हर तरह के संकटों से बचा जा सकता है.
इसके अलावा आदित्य का वाहन सात घोड़े, वरुण का वाहन सात हंस, ब्रह्मा सात हंस, महेश्वरी का बैल, दुर्गा का सिंह और अग्नि का मेष. 
Koti Devi Devta

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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