गौरी व्रत महत्वपूर्ण उपवास अवधि है, जो देवी पार्वती को समर्पित है. यह गौरी व्रत मुख्य रूप से गुजरात में मनाया जाता है. गौरी पूजा का व्रत मुख्य रूप से अविवाहित लड़कियां अच्छे पति की इच्छा में रखती हैं. गौरी व्रत आषाढ़ महीने में 5 दिनों तक मनाया जाता है. यह शुक्ल पक्ष की एकादशी से शुरू होती है और पांच दिनों के बाद पूर्णिमा के दिन, गुरु पूर्णिमा के दिन समाप्त होता है. गौरी व्रत को मोरकत व्रत के नाम से भी जाना जाता है.
गौरी व्रत शनिवार, 9,जुलाई 2022 को
गौरी व्रत बुधवार, 13,जुलाई 2022 को समाप्त
जया पार्वती व्रत मंगलवार, 12,जुलाई 12, 2022 को
एकादशी तिथि प्रारम्भ - 09,जुलाई 09, 2022 को 16:39
एकादशी तिथि समाप्त - 10, जुलाई 10, 2022 को 14:13
गौरी व्रत का महत्व
इस व्रत में कुंवारी कन्याएं या महिलाएं पांच दिनों तक फलहार खाकर और भगवान शिव की पूजा करने के बाद व्रत के अंतिम दिन युवतियां पूरी रात जागती हैं और सुबह जल्दी उठकर ब्राह्मण या साधु के घर भोजन सामग्री के साथ दान देकर व्रत पूरा करती हैं. हिन्दू धर्म के अनुसार बचपन से ही तरह-तरह के व्रत करने के संस्कार मिलते हैं. जया पार्वती का पहला व्रत माता पार्वती ने शिवाजी को पति के रूप में पाने के लिए किया था. माता पार्वती द्वारा किए गए व्रतों को महिलाएं और लड़कियां करती हैं. आषाढ़ शुक्ल एकादशी से आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा तक लड़कियों द्वारा किया जाने वाला व्रत गौरी व्रत या गोरियो कहलाता है, जबकि सौभाग्यशाली महिलाओं और वृद्ध महिलाओं द्वारा किए गए इस व्रत को जया पार्वती व्रत कहा जाता है.
इस व्रत को करने से पति के स्वास्थ्य में सुधार होता है. बच्चों के स्वास्थ्य में वृद्धि होती है. यह व्रत आषाढ़ सूद तेरस से आषाढ़ सूद बीज तक पांच दिनों तक चलता है. इस दिन युवतियां और महिलाएं जल्दी उठकर नहा कर शिलालय में जाकर शिव-पार्वती की पूजा करती हैं. इन पांच दिनों में स्त्रियां सूखे मेवे या दूध के साथ बिना नामक का भोजन करती हैं. शास्त्रों के अनुसार यह व्रत 30 वर्ष तक करना होता है. व्रत पूरा करने के लिए लोक कथाओं के अनुसार जागना होता है. व्रत करने वाले व्यक्ति को व्रत समाप्त होने के बाद ब्राह्मण दंपत्ति का व्रत करना चाहिए. हो सके तो जोड़े को कपड़े पहनाएं. साथ ही सौभाग्य की अखंडता के लिए कंकू और काजल का दान करें. जिस घर में लड़कियां और महिलाएं यह व्रत करती हैं, वह घर खुशियों से भर जाता है. इस व्रत के अंतिम दिन कुंवारी लड़कियां और महिलाएं जागती हैं.
अत्यंत संस्कारी और अच्छे पति की चाहत रखने वाली कन्या या कुंवारी युवतियां, यदि इस व्रत को शास्त्रों के अनुसार बड़ी श्रद्धा से करती है, तो उसके मन की मनोकामना पूर्ण होती है. मां पार्वती हमेशा उन पर अपना अशीर्ववाद बनाए रखती हैं.
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एक समय में कौदिन्य नामक नगर में वामन नाम का एक ब्राह्मण रहता था. उनकी पत्नी का नाम सत्या था. उसके घर में कोई नुकसान नहीं हुआ था, लेकिन वह बहुत दुखी था, क्योंकि वहां उसके बच्चे नहीं थे. एक दिन नारदजी उनके पास आए. उन्होंने नारदजी की सेवा की और उनकी समस्या का समाधान मांगा. तब नारदजी ने कहा कि जंगल के दक्षिणी भाग में बिली वृक्ष के नीचे, भगवान शंकर माता पार्वती के साथ लिंगरूप में विराजमान हैं. उनकी पूजा करने से निश्चित ही आपकी मनोकामना पूर्ण होगी.
तब ब्राह्मण दंपत्ति ने शिवलिंग को पाया और पूरे विधि-विधान से उसकी पूजा की. इस प्रकार पूजा का क्रम चलता रहा और पांच वर्ष बीत गए. एक दिन जब वह ब्राह्मण पूजा के लिए फूल चुन रहे थे, उन्हें एक सांप ने काट लिया और जंगल में गिर गए. ब्राह्मण नहीं लौटा, तो उसकी पत्नी उसे खोजने निकल पड़ी. अपने पति को बेहोश देखकर वह विलाप करने लगी और पार्वती को याद करने लगी.
ब्राह्मणी की दयनीय पुकार सुनकर, माता पार्वती वहां पहुंच गई और ब्राह्मण के मुंह में अमृत डाल दिया, जिससे ब्राह्मण उठ गया. तब ब्राह्मण दंपत्ति ने माता पार्वती की पूजा की. माता पार्वती ने उनसे आशीर्वाद मांगने को कहा. फिर दोनों ने संतान की मांग की. तब माता पार्वती ने उनसे जया पार्वती का व्रत करने को कहा. ब्राह्मण दंपति ने यह अनुष्ठान किया और परिणामस्वरूप उन्होंने एक पुत्र रत्न को जन्म दिया.
कैसे मनाया जाता है गौरी व्रत
गौरी व्रत में बोए जाते हैं सात प्रकार के अनाज
यह व्रत जिसमें सात अलग-अलग प्रकार के अनाज के बीज घर पर बोए जाते हैं, इन बोए गए बीजों को चार दिनों तक सुरक्षित रखा जाता है. चौथे दिन जागने के बाद पांचवें दिन इसे नदी, वाव (बावड़ी) या सरोवर में बहा दिया जाता है. इन दिनों व्रत करने वाला रोज सुबह भगवान शंकर और माता पार्वती की पूजा करता है और बिना नमक वाली चीजें ही खाता है.
गौरी व्रत के नियम
5 दिनों की अवधि में इस व्रत को करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण नियमों का पालन करना बहुत जरूरी होता है. इस व्रत के दौरान –
गेहूं या गेहूं से बनी हुई किसी भी चीज का सेवन नहीं करना चाहिए.
मसाले, सादा नमक और कुछ सब्जियां जैसे टमाटर का भी सेवन 5 दिन की अवधि के दौरान नहीं करना चाहिए.
पांच दिन का उत्सव
पहले दिन- गेहूं के बीजों को मिट्टी के बर्तन में लगाया जाता है, जिसे सिंदूर से सजाया जाता है, ‘नगला’ (रूई से बना एक हार जैसी माला) पहनाया जाता है. भक्त 5 दिनों तक इस बर्तन की पूजा करते हैं.
दूसरे से चौथे दिन- महिलायें शिवालय जाती हैं और शिव पार्वती की पूजा करती हैं.
पांचवें दिन- महिलाएं पूरी रात जागती रहती हैं और जया पार्वती जागरण (भजन, भजन, आरती करना) करती हैं.
छठे दिन- गेहूं से भरा हुआ घड़ा किसी भी जलाशय या पवित्र नदी में प्रवाहित किया जाता है.
मां गौरी की आरती
जय आद्य शक्ति माँ जय आद्य शक्ति
अखंड ब्रहमाण्ड दिपाव्या
पनावे प्रगत्य माँ
द्वितीया में स्वरूप शिवशक्ति जणु
माँ शिवशक्ति जणु
ब्रह्मा गणपती गाये
ब्रह्मा गणपती गाये
हर्दाई हर माँ
तृतीया त्रण स्वरूप त्रिभुवन माँ बैठा
माँ त्रिभुवन माँ बैठा
दया थकी कर्वेली
दया थकी कर्वेली
उतरवेनी माँ
चौथे चतुरा महालक्ष्मी माँ
सचराचल व्याप्य
जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता ब्रह्मा सनातन देवी शुभ फल कदा दाता.
जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता..
अरिकुल पद्मा विनासनी जय सेवक त्राता जग जीवन जगदम्बा हरिहर गुण गाता.
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सिंह को वाहन साजे कुंडल है, साथा देव वधु जहं गावत नृत्य करता था.
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सतयुग शील सुसुन्दर नाम सटी कहलाता हेमांचल घर जन्मी सखियन रंगराता.
जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता..
शुम्भ निशुम्भ विदारे हेमांचल स्याता सहस भुजा तनु धरिके चक्र लियो हाता.
जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता..
सृष्टी रूप तुही जननी शिव संग रंगराता नंदी भृंगी बीन लाही सारा मद माता.
जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता..
देवन अरज करत हम चित को लाता गावत दे दे ताली मन में रंगराता.
जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता..
मंगला गौरी माता की आरती जो कोई गाता सदा सुख संपति पाता.
जय मंगला गौरी माता, जय मंगला गौरी माता..
Koti Devi Devta
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-एमपी: निकाय चुनाव के बीच भाजपा प्रत्याशी ईसाई धर्म छोड़कर बने हिंदू, कहा- मेरे पूर्वज भी हिंदू थे
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