पल-पल इंडिया का 2016 में सवाल था.... क्या सारे कायदे-कानून प्रेस के लिए ही हैं?

पल-पल इंडिया का 2016 में सवाल था.... क्या सारे कायदे-कानून प्रेस के लिए ही हैं?

प्रेषित समय :08:09:51 AM / Mon, Jul 11th, 2022

प्रदीप द्विवेदी. अनियंत्रित मीडिया को नजरअंदाज करने के कुपरिणाम अब तेजी से सामने आ रहे हैं?

इन्हीं आशंकाओं के मद्देनजर पल-पल इंडिया का 5 दिसंबर 2016 को सवाल था कि..... क्या सारे कायदे-कानून प्रेस के लिए ही हैं?

तब इस पर इसलिए ध्यान नहीं दिया गया, क्योंकि तब इसी अनियंत्रित मीडिया के दम पर सत्ता मिली थी, लेकिन अब सियासी हालात तेजी से बदलते जा रहे हैं, लिहाज अनियंत्रित कट्टर समर्थकों को भी बचाना मुश्किल होता जा रहा है?

इतना ही नहीं, कई मुद्दे देश की सीमा के बाहर भी चले गए हैं?

इसमें तब (5 दिसंबर 2016) लिखा था....

क्या सारे कायदे-कानून प्रेस के लिए ही हैं?

सारी दुनिया को हक दिलाने में सबसे आगे रहनेवाली प्रेस... प्रिंट मीडिया, शुरुआत से लेकर अब तक, इसके लिए तब से बने कानून-कायदों के दायरे में ही चल रही है और अपने हक के लिए कुछ नहीं कर पा रही है!

आजादी के दौर में अंग्रेजों को सबसे बड़ा खतरा प्रिंट मीडिया से ही था क्योंकि तब अकेली प्रेस ही थी जो काफी संख्या में कागज छाप कर अपनी बात का प्रचार-प्रसार कर सकती थी और इसीलिए प्रिंटिंग प्रेस तथा अखबार के लिए घोषणा पत्र देना होता था.

अखबार छापने के लिए प्रेस रजिस्ट्रार से स्वीकृति लेनी होती थी, जो व्यवस्था अब तक जारी है! 

आजादी के पहले तो ऐसा भी समय था जब अखबार पढ़ने के जुर्म में, बांसवाड़ा के पहले प्रधानमंत्री और मुंबई, उदयपुर एवं बांसवाड़ा से अखबार प्रकाशित करनेवाले, स्वतंत्रता सेनानी भूपेन्द्रनाथ त्रिवेदी को सजा मिली थी! 

सातवें दशक तक मीडिया के नाम पर प्रिंट मीडिया... अखबार था और सरकारी नियंत्रणवाली आकाशवाणी थी.

बाद में प्रिंटिंग के नए-नए तरीके आते गए लेकिन उन पर कोई कानून नहीं लगा. साइक्लोस्टाइल, स्क्रीन प्रिंटिंग, कंप्यूटर प्रिंटिंग से लेकर फोटोकॉपी तक में हजारों की संख्या में कागज छापने की क्षमता होने के बावजूद प्रेस के कानून-कायदों से मुक्त रहे!

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया आने के बाद कुछ भी दिखाने की आजादी टीवी को मिल गई लेकिन प्रिंट मीडिया अपने कानून-कायदे के घेरे में ही खड़ा रहा! व्हॉट्सएप, फेसबुक जैसे प्लेटफार्म ने तो सार्वजनिक तौर पर अपनी बात कहने की सारी मर्यादाएं ही खत्म कर दी हैं!

यहां कुछ भी कहने की आजादी है, न कोई कानून और न कोई स्वीकृति चाहिए?

बगैर सबूत के किसी के भी खिलाफ जो मर्जी आए प्रकाशित कर सकते हैं?

यही वजह है कि  व्हॉट्सएप, फेसबुक जैसे सोशल मीडिया के आने के बाद अफवाहों और समाचारों का फर्क ही खत्म होता जा रहा है!

हजारों लोगों तक पहुंचने वाले अखबार को छापने के लिए घोषणा पत्र भरना पड़ता है लेकिन लाखों लोगों तक पहुंचने वाली व्हॉट्सएप, फेसबुक आदि पर जानकारी के लिए किसी की स्वीकृति नहीं चाहिए, क्यों?

अब समय आ गया है प्रेस के लिए बने कानून-कायदों और व्यवस्थाओं की समीक्षा का... या तो सारे मीडिया के लिए एकजैसे कानून बनें या सब को एकजैसी आजादी मिले... वरना पुराने कानून-कायदों और व्यवस्थाओं में कैद प्रिंट मीडिया अपना वजूद खो देगा!

Giriraj Agrawal @girirajagl
भाजपा आखिर कितने लोगों को निकालेगी?

BJP ने हरियाणा IT सेल इंचार्ज को निकाला; पैगंबर के खिलाफ 2017 में किया था ट्वीट, सोशल मीडिया पर गिरफ्तारी की हो रही मांग!
 

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

जो फर्जी खबर चलाएगा, बख्शा नहीं जायेगा? पहली बार कांग्रेस ने मीडिया हाउस के खिलाफ खोला मोर्चा, विरोध-प्रदर्शन!

पीएम मोदी के खिलाफ सोशल मीडिया पर अभद्र टिप्पणी करने वाला यूपी के बदायूं से गिरफ्तार

IPL मीडिया राइट्स के लिए 40 हजार करोड़ के पार पहुंची बोली, वायकॉम-18, सोनी, जी समेत 7 कंपनियां ऑक्शन में शामिल

सोनू सूद ने लॉन्च किया सोशल मीडिया ऐप "एक्सप्लर्जर"

कर्नाटक की सिनी शेट्टी बनीं फेमिना मिस इंडिया, राजस्थान की रूबल शेखावत रहीं फर्स्ट रनरअप

Leave a Reply