1. केतु ग्रह की कोई निश्चित राशि नहीं है. ऐसे में केतु जिस राशि में गोचर करता है वह उसी के अनुरूप फल देता है. इसलिए केतु का प्रथम भाव अथवा लग्न में फल को वहां स्थित राशि प्रभावित करती है. इसके प्रभाव से जातक अकेले रहना पसंद करता है लेकिन यदि लग्न भाव में वृश्चिक राशि हो तो जातक को इसके सकारात्मक परिणाम देखने को मिलते हैं.
2. अगर किसी जातक की कुंडली में केतु तृतीय, पंचम, षष्टम, नवम एवं द्वादश भाव में हो तो जातक को इसके बहुत हद तक अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं.
3. अगर केतु गुरु ग्रह के साथ युति बनाता है तो व्यक्ति की कुंडली में इसके प्रभाव से राजयोग का निर्माण होता है.
4. अगर जातक की कुंडली में केतु बली हो तो यह जातक के पैरों को मजबूत बनाता है. जातक को पैरों से संबंधित कोई रोग नहीं होता है. शुभ मंगल के साथ केतु की युति जातक को साहस प्रदान करती है.
5. कुंडली में केतु के नीच का होने से जातक को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. व्यक्ति के सामने अचानक कोई न कोई बाधा आ जाती है.
6. अगर व्यक्ति किसी कार्य के लिए जो निर्णय लेता है तो उसमें उसे असफलता का सामना करना पड़ता है. केतु के कमजोर होने पर जातकों के पैरों में कमजोरी आती है.
7. पीड़ित केतु के कारण जातक को नाना और मामा जी का प्यार नहीं मिल पाता है. राहु-केतु की स्थिति कुंडली में कालसर्प दोष बनाती है.
Khushi Soni Verma
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-आपकी कुंडली में कौन-सा ग्रह है बलवान?
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