श्रावण पुत्रदा एकादशी 08 सोमवार, अगस्त 2022 को...
9, अगस्त को, पारण (व्रत तोड़ने का) समय - 05:50 से 08:26
द्वादशी समाप्त होने का समय - 17:45
एकादशी तिथि प्रारम्भ -07 अगस्त 2022 को 23:50 बजे
एकादशी तिथि समाप्त - 08 अगस्त 2022 को 21:00 बजे
पुत्रदा एकादशी श्रावण मास शुक्लपक्ष की युधिष्ठिर ने पूछा : मधुसूदन श्रावण के शुक्लपक्ष में किस नाम की एकादशी होती है कृपया मेरे सामने उसका वर्णन कीजिये भगवान श्रीकृष्ण बोले : राजन् प्राचीन काल की बात है. द्वापर युग के प्रारम्भ का समय था. माहिष्मतीपुर में राजा महीजित अपने राज्य का पालन करते थे किन्तु उन्हें कोई पुत्र नहीं था, इसलिए वह राज्य उन्हें सुखदायक नहीं प्रतीत होता था. अपनी अवस्था अधिक देख राजा को बड़ी चिन्ता हुई. उन्होंने प्रजावर्ग में बैठकर इस प्रकार कहा: ‘प्रजाजनो ! इस जन्म में मुझसे कोई पातक नहीं हुआ है. मैंने अपने खजाने में अन्याय से कमाया हुआ धन नहीं जमा किया है. ब्राह्मणों और देवताओं का धन भी मैंने कभी नहीं लिया है. पुत्रवत् प्रजा का पालन किया है. धर्म से पृथ्वी पर अधिकार जमाया है. दुष्टों को, चाहे वे बन्धु और पुत्रों के समान ही क्यों न रहे हों, दण्ड दिया है. शिष्ट पुरुषों का सदा सम्मान किया है और किसीको द्वेष का पात्र नहीं समझा है. फिर क्या कारण है, जो मेरे घर में आज तक पुत्र उत्पन्न नहीं हुआ? आप लोग इसका विचार करें. ’
राजा के ये वचन सुनकर प्रजा और पुरोहितों के साथ ब्राह्मणों ने उनके हित का विचार करके गहन वन में प्रवेश किया. राजा का कल्याण चाहनेवाले वे सभी लोग इधर उधर घूमकर ॠषिसेवित आश्रमों की तलाश करने लगे. इतने में उन्हें मुनिश्रेष्ठ लोमशजी के दर्शन हुए.
लोमशजी धर्म के त्तत्त्वज्ञ, सम्पूर्ण शास्त्रों के विशिष्ट विद्वान, दीर्घायु और महात्मा हैं. उनका शरीर लोम से भरा हुआ है. वे ब्रह्माजी के समान तेजस्वी हैं. एक एक कल्प बीतने पर उनके शरीर का एक एक लोम विशीर्ण होता है, टूटकर गिरता है, इसीलिए उनका नाम लोमश हुआ है. वे महामुनि तीनों कालों की बातें जानते हैं.
उन्हें देखकर सब लोगों को बड़ा हर्ष हुआ. लोगों को अपने निकट आया देख लोमशजी ने पूछा : ‘तुम सब लोग किसलिए यहाँ आये हो? अपने आगमन का कारण बताओ. तुम लोगों के लिए जो हितकर कार्य होगा, उसे मैं अवश्य करुँगा प्रजाजनों ने कहा : ब्रह्मन् इस समय महीजित नामवाले जो राजा हैं, उन्हें कोई पुत्र नहीं है. हम लोग उन्हींकी प्रजा हैं, जिनका उन्होंने पुत्र की भाँति पालन किया है. उन्हें पुत्रहीन देख, उनके दु:ख से दु:खित हो हम तपस्या करने का दृढ़ निश्चय करके यहाँ आये है. द्विजोत्तम राजा के भाग्य से इस समय हमें आपका दर्शन मिल गया है. महापुरुषों के दर्शन से ही मनुष्यों के सब कार्य सिद्ध हो जाते हैं. मुने ! अब हमें उस उपाय का उपदेश कीजिये, जिससे राजा को पुत्र की प्राप्ति हो.
उनकी बात सुनकर महर्षि लोमश दो घड़ी के लिए ध्यानमग्न हो गये. तत्पश्चात् राजा के प्राचीन जन्म का वृत्तान्त जानकर उन्होंने कहा : ‘प्रजावृन्द ! सुनो. राजा महीजित पूर्वजन्म में मनुष्यों को चूसनेवाला धनहीन वैश्य था. वह वैश्य गाँव-गाँव घूमकर व्यापार किया करता था. एक दिन ज्येष्ठ के शुक्लपक्ष में दशमी तिथि को, जब दोपहर का सूर्य तप रहा था, वह किसी गाँव की सीमा में एक जलाशय पर पहुँचा. पानी से भरी हुई बावली देखकर वैश्य ने वहाँ जल पीने का विचार किया. इतने में वहाँ अपने बछड़े के साथ एक गौ भी आ पहुँची. वह प्यास से व्याकुल और ताप से पीड़ित थी, अत: बावली में जाकर जल पीने लगी. वैश्य ने पानी पीती हुई गाय को हाँककर दूर हटा दिया और स्वयं पानी पीने लगा. उसी पापकर्म के कारण राजा इस समय पुत्रहीन हुए हैं. किसी जन्म के पुण्य से इन्हें निष्कण्टक राज्य की प्राप्ति हुई है.
प्रजाजनों ने कहा : मुने पुराणों में उल्लेख है कि प्रायश्चितरुप पुण्य से पाप नष्ट होते हैं, अत: ऐसे पुण्यकर्म का उपदेश कीजिये, जिससे उस पाप का नाश हो जाय लोमशजी बोले : प्रजाजनो. श्रावण मास के शुक्लपक्ष में जो एकादशी होती है, वह ‘पुत्रदा’ के नाम से विख्यात है. वह मनोवांछित फल प्रदान करनेवाली है. तुम लोग उसीका व्रत करो.
यह सुनकर प्रजाजनों ने मुनि को नमस्कार किया और नगर में आकर विधिपूर्वक ‘पुत्रदा एकादशी’ के व्रत का अनुष्ठान किया. उन्होंने विधिपूर्वक जागरण भी किया और उसका निर्मल पुण्य राजा को अर्पण कर दिया. तत्पश्चात् रानी ने गर्भधारण किया और प्रसव का समय आने पर बलवान पुत्र को जन्म दिया.
इसका माहात्म्य सुनकर मनुष्य पापों से मुक्त हो जाता है तथा इहलोक में सुख पाकर परलोक में स्वर्गीय गति को प्राप्त होता है.
मम समस्तदुरितक्षयपूर्वकं श्रीपरमेश्वरप्रीत्यर्थं श्रावणशुक्लैकादशीव्रतमहं करिष्ये
एकादशी की आरती
ॐ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता.
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता. .
तेरे नाम गिनाऊं देवी, भक्ति प्रदान करनी.
गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी. .
मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की उत्पन्ना, विश्वतारनी जन्मी.
शुक्ल पक्ष में हुई मोक्षदा, मुक्तिदाता बन आई..
पौष के कृष्णपक्ष की, सफला नामक है,
शुक्लपक्ष में होय पुत्रदा, आनन्द अधिक रहै. .
नाम षटतिला माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै.
शुक्लपक्ष में जया, कहावै, विजय सदा पावै. ..
विजया फागुन कृष्णपक्ष में शुक्ला आमलकी,
पापमोचनी कृष्ण पक्ष में, चैत्र महाबलि की. .
अजा भाद्रपद कृष्णपक्ष की, परिवर्तिनी शुक्ला.
इन्द्रा आश्चिन कृष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला..
पापांकुशा है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी.
रमा मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी. .
देवोत्थानी शुक्लपक्ष की, दुखनाशक मैया.
पावन मास में करूं विनती पार करो नैया. .
परमा कृष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी..
अथ दुर्गा कवचम् ॥
ॐ पुर्वं रक्षतु वाराही चाग्नेय्यां अम्बिका स्वयम्.
गुरूपदिष्टं वंशाख्यम् कवचं तदिदं सुखे.
गुह्याद्गुह्यतरं चेदं न प्रकाश्यं हि सर्वतः ॥ ५॥
धारणात् पठनादस्य वंशच्छेदो न जायते.
बाला विनश्यंति पतन्ति गर्भास्तत्राबलाः कष्टयुताश्च वन्ध्याः ॥ ६ ॥
बाल ग्रहैर्भूतगणैश्च रोगैर्न यत्र धर्माचरणं गृहे स्यात् ॥
इति श्रीज्ञानभास्करे वंशवृद्धिकरं वंशकवचं
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-अभिमनोजः सीएम शिवराज.... राजकाज के साथ-साथ- धर्मकर्म.... सनातन धर्म और वृक्षारोपण कर्म भी!
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