जन्म कुंडली में अष्टम शनि कष्ट ही नहीं देता

जन्म कुंडली में अष्टम शनि कष्ट ही नहीं देता

प्रेषित समय :22:06:41 PM / Wed, Aug 24th, 2022

 जन्मकुंडली का अष्टम स्थान मृत्यु का भाव कहलाता है. इसलिए अष्टम स्थान को लेकर अक्सर लोग भयभीत रहते हैं ऊपर से यदि इस घर में शनि देव आ जाए यानी आठवें स्थान में शनि आ जाए तो.... लोगों की डर से हालत पतली हो जाती है. कभी सोचा हो यदि शनि देव अष्टमेश हों तो क्या होता हो?? स्वाभाविक ही है लोग कहेंगे मई की गर्मी में लाइट का न होना और शरीर से पसीने की भरमार. दोस्तों आइए आज जानते हैं क्या सचमुच आठवें स्थान में शनि का आना घातक है? और आठवें स्थान का शनि क्या वाकई में व्यक्ति का जीवन तहस-नहस करके उसे मृत्यु तुल्य कष्ट देता है? वैदिक ज्योतिष में जन्मकुंडली के अष्टम भाव को शुभ नहीं माना गया है. यह त्रिक भाव भी है. इस भाव से व्यक्ति की आयु, मृत्यु के कारण और उसके स्वरूप का विचार किया जाता है. आठवें स्थान में शनि आने से लोग भयभीत इसलिए रहते हैं क्योंकि शनि आठवें भाव का तथा मृत्यु का कारक ग्रह है. शनि यदि अष्टम भाव में स्थित हो तो उसकी दृष्टियां दशम, द्वितीय तथा पंचम भावों पर रहती हैं. इस कारण जातक के व्यवसाय और उसके कार्य क्षेत्र, धन, शिक्षा, संतान तथा मृत्यु आदि पर शनि का प्रभाव रहता है. इस स्थान पर शनि अन्य ग्रहों की युति, दृष्टि के अनुसार शुभ-अशुभ फल देता है. लेकिन यह जरूरी नहीं कि आठवें स्थान का शनि हमेशा कष्ट ही देता हो. शनि आयु का कारक ग्रह भी है, इसलिए आठवें स्थान का शनि जातक को दीर्घायु भी बनाता है. 

यदि किसी जातक की जन्मकुंडली में आठवें भाव में शनि है तो जातक साहसी, गुणी, विद्वान और वाचाल होता है. शनि शुभ स्थिति में हो तो जातक को निडर और उदार प्रकृति का बनाता है. हालांकि ऐसे जातक का स्वभाव कुछ रहस्यमयी भी हो सकता है और वह ज्योतिष, तंत्र-मंत्र, जादू-टोना, टोटके, गुप्त विद्याओं का जानकार हो सकता है. शनि यदि खराब अवस्था में हो तो जातक हमेशा दूसरों की बुराई और निंदा में लिप्त रहता है. इस कारण उसे अक्सर अपमान और बदनामी का सामना भी करना पड़ सकता है. ऐसे लोगों का दिल बहुत छोटा होता है और कई बार ओछी हरकतें भी कर बैठते हैं. जिन जातकों के आठवें स्थान में शनि हो वे अपने कार्य धीमी गति से करते हैं. इन्हें आलसी कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. कभी-कभी ऐसे जातक जल्दी आवेश में आ जाते हैं. 

जिस जातक की जन्मकुंडली में आठवें स्थान में शनि हो वह कई बार बुरी संगत में पड़कर गलत कार्य करने लग जाता है. ऐसा जातक चोरी में लिप्त होता है और पकड़ा जाता है. ऐसा जातक शराब या किसी प्रकार के नशे का आदी हो जाता है और उसी में अपना सारा धन और समय नष्ट कर बैठता है. आठवें स्थान में यदि तुला, मकर या कुंभ राशि हो तो आठवां शनि जातक को विवाह के बाद धनवान बनाता है. अष्टम भाव में शनि हो तो व्यक्ति की अपने ही भाई-बहनों से नहीं बनती है. परिवार से इस व्यक्ति को अपनापन और प्यार नहीं मिलता. अष्टम शनि वाले जातक के संबंध अपने से निम्न वर्ण की स्त्री के साथ बनते हैं. अष्टम शनि वाले जातक के परिवार में पुत्रों से ज्यादा पुत्रियां होती हैं. अष्टम शनि जातक को पेट और पाचन तंत्र से जुड़े रोग देता है. जातक को जोड़ों का दर्द, दांत तथा नाखून संबंधी रोग होते हैं. मृत्यु की बात करें तो अष्टम शनि जिसकी कुंडली में हो वो जातक लंबे समय तक रोग अवस्था भोगता है फिर मृत्यु होती है. अष्टम शनि जातक के कार्य व्यवसाय में भी बाधा बनता है. नौकरी में अस्थिरता बनी रहती है. बिजनेस भी बार-बार बदलना पड़ता है. आठवें शनि का बुरा प्रभाव कैसे कम करें यदि जन्मकुंडली में आठवें भाव में शनि हो तो हनुमान, शिव और दुर्गा की उपासना लाभ देती है. ऐसे जातक को व्यसनों, नशा, शराब, मांस आदि से दूर रहना चाहिए. काले कुत्ते को नियमित घी लगी रोटी खिलाएं. प्रत्येक शनिवार किसी भिखारी को भरपेट भोजन करवाएं. गले में चांदी की चेन धारण करके रखें.
Astro nirmal

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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