केतु ग्रहः की महादशा में अन्य ग्रहों की अंतर दशा फल

केतु ग्रहः की महादशा में अन्य ग्रहों की अंतर दशा फल

प्रेषित समय :20:25:50 PM / Thu, Sep 1st, 2022

राहू-केतु वैज्ञानिक दृष्टि से ग्रह नहीं माने जाते. ज्योतिषशास्त्र में भी इन्हें छाया ग्रह माना जाता है. राहू व केतु को अनिष्टकारी परिणाम देने के लिये जाना जाता है
राहू की एक खासियत यह है कि यह जो भी परिणाम देता है चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक वह अचानक से देता है. यानि यह अर्श से फर्श और फर्श से अर्श पर तुरंत प्रभाव से जातक को ले आता है

केतु महादशा में  केतु की अन्तर्दशा का फल 

केतु की महादशा में केतु की ही अंतर्दशा चार महीने एवं सत्ताई दिन की होती है.
यदि  केतु जातक  /जातिका की कुंडली मे उच्च, मित्र व स्वराशि में हो, शुभ ग्रहों द्वारा युत व दृष्ट हो एवं केतु भी शुभ ग्रहों के प्रभाव में हो एवं उच्च, मित्र या स्वराशि में स्थित हो तो केतु की महादशा में केतु की अंतर्दशा हो तो जातक को मध्यम शुभ फल देता है. जातक को कुछ धन, भूमि, प्रगति व यश प्राप्त होता है.
यदि केतु अशुभ प्रभावयुक्त हो एवं केतु नीच राशि या शत्रु राशि में हो एवं पाप ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो तो केतु की महादशा व केतु की अंतर्दशा में जातक अथक परिश्रम करने पर भी जीविकोपार्जन के साधन नहीं जुटा पाता है. जातक को नौकरी मिलती नहीं व व्यवसाय में हानि होती है. जातक को किसी पशु का भय रहता है. जातक अनेक दुखों व कष्टोम के कारण पीड़ित रहता है.

केतु महादशा में शुक्र की अंतर्दशा फल 

केतु की महादशा में शुक्र की अंतर्दशा एक वर्ष दो महीने की होती है.
यदि कुंडली  शुक्र  **उच्च, मित्र व स्वराशि में हो, शुभ ग्रहों द्वारा **युत व दृष्ट हो एवं #केतु भी शुभ ग्रहों के प्रभाव में हो एवं उच्च, मित्र या #स्वराशि में स्थित हो तो केतु की महादशा में शुक्र की अंतर्दशा हो तो जातक की बुद्धि #कामासक्त हो जाती है. वह सदैव भोग# विलासमय जीवन के स्वप्न देखता रहता है. 
यदि केतु अशुभ प्रभावयुक्त हो एवं शुक्र नीच राशि या #शत्रु राशि में हो एवं# पाप ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो तो केतु की महादशा व शुक्र की अंतर्दशा में जातक #अनीति और अधर्म के कार्यो में चित्त खूब लगाता है. धन प्राप्ति के प्रति जातक लोभी हो जाता है. पत्नी एवं पुत्रों से जातक की कलह होती है. मन में ईर्ष्या-द्वेष अपना स्थायी स्थान बना लेते हैं.

केतु महादशा में सूर्य की अन्तर्दशा का फल
केतु की महादशा में सूर्य की अंतर्दशा चार महीने एवं छः दिन की होती है.
  कुंडली  सूर्य यदि उच्च, मित्र व स्वराशि में हो, शुभ ग्रहों द्वारा युत व दृष्ट हो एवं केतु भी शुभ ग्रहों के प्रभाव में हो एवं उच्च, मित्र या स्वराशि में स्थित हो तो केतु की महादशा में सूर्य की अंतर्दशा हो तो जातक को मध्यम प्रकार के फल मिलते हैं.
 जातक को देह में सुख, लाभ एवं वैभव जैसे फल मिलते हैं. जातक के तीर्थ यात्रा के योग बनते हैं.
यदि केतु अशुभ #प्रभावयुक्त हो एवं सूर्य #नीच राशि या शत्रु राशि में हो एवं पाप ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो तो केतु की महादशा व सूर्य की अंतर्दशा में जातक के मन में भ्रम व आवेश आ जाता है. जातक #व्यर्थ में क्रोध करने वाला, अपने #उच्चाधिकारियों से दंड पाने वाला तथा #पदोन्नति में बाधाओं का सामना करने वाला होता है. वाद-विवाद में पराजय, प्रवास में धनहानि और देहकष्ट जातक को मिलता है.

केतु महादशा में चंद्रमा की अन्तर्दशा का फल
केतु की महादशा में चंद्रमा की अंतर्दशा सात महाने की होती है.
 लग्न chart  चन्द्रमा यदि उच्च, मित्र व स्वराशि में हो, शुभ ग्रहों द्वारा युत व दृष्ट हो एवं केतु भी शुभ ग्रहों के प्रभाव में हो एवं उच्च, मित्र या स्वराशि में स्थित हो तो केतु की महादशा में चंद्रमा की अंतर्दशा हो तो जातक को मध्यम फल प्राप्त होते हैं. जातक को कुछ सुख व धन की प्राप्ति होती है. 
यदि केतु अशुभ प्रभावयुक्त हो एवं चंद्रमा नीच राशि या #शत्रु राशि मे हो एवं #पाप ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो तो केतु की महादशा व चंद्रमा की अंतर्दशा में जातक काम के प्रति आसक्त रहता है. जातक को #कुकर्मो से अपयश मिलता है. जातक भावुक हो जाता है एवं भावना में किये कार्यो द्वारा हानि प्राप्त करता है.

केतु महादशा में मंगल की अंतर्दशा का फल़

केतु की महादशा में मंगल की अंतर्दशा चार महीने एवं सत्ताईस दिन की होती है.
 मंगल ग्रह अगर जातक की कुंडली मे यदि उच्च, #मित्र व स्वराशि में हो, शुभ ग्रहों द्वारा युत व दृष्ट हो एवं केतु भी शुभ ग्रहों के प्रभाव में हो एवं उच्च, मित्र या स्वराशि में स्थित हो तो केतु की महादशा में मंगस की अंतर्दशा हो तो #मंगल क्षत्रिय ग्रह है तथा केतु में भी #मंगल के गुणो की प्रधानता है, इसलिए शुभ और बलवान मंगल की अन्तर्दशा में जातक के #उत्साह में वृद्दि हो जाती है. जातक साहसिक और# #पराक्रमायुक्त कार्यों में विशेष रूचि लेता है तथा इनमें सफल होकर मान-सम्मान प्राप्त करता है. जातक में हिंसक प्रवृति बढ़ जाती है.
अगर केतु अशुभ प्रभायुक्त हो एवं मंगल नीच राशि या शत्रु राशि में हो एवं पाप ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो तो केतु की महादशा व मंगल की अंतर्दशा में जातक #हिंसक प्रवृत्ति का एवं अति #उग्र स्वभाव का होता है. जातक अनियंत्रित खाने के कारण पीड़ित हो जाता है.

केतु महादशा में राहु की अन्तर्दशा का फल

केतु की महादशा में राहु की अंतर्दशा एक वर्ष एवं अठारह दिन की होती है.दोनो ही ग्रहः वक्री होते है
  कुण्डलु  राहु यदि अपनी उच्च, मित्र व स्वराशि में हो, शुभ ग्रहों द्वारा युत व दृष्ट हो एंतु भी शुभ ग्रहों के प्रभाव में हो एवं ऊच्च, मित्र या स्वराशि मे स्थित हो तो केतु की महादशा में राहु अंतर्दशा हो तो जातक को #आकस्मिक रूप में तत्काल #धनलाभ एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है. निम्न वर्ग या विदेश में रहने वालों से जातक को लाभ प्राप्त होता है. व सहायता प्राप्त होती है.
यदि जातक की कुंडली मे केतु अशुभ प्रभावयुक्त हो एवं राहु नीच राशि या शत्रु राशि में हो एवं पाप ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो तो केतु की महादशा व राहु की अंतर्दशा में जातक को #अनुचित कर्मो से धन मिलता है. सभी कार्यो में जातक में जातक को असफलता मिलती है.

केतु महादशा में गुरू की अन्तर्दशा का फल 

केतु की महादशा में गुरू की अंतर्दशा ग्यारह महीने एवं छः दिन की होती है
कुंडली मे वरहस्पति यदि अपनी उच्च, मित्र व स्वराशि में हो, शुभ ग्रहों द्वारा युक्त व दृष्ट हो एवं केतु भी शुभ ग्रहों के प्रभाव में हो एवं उच्च, मित्र या स्वराशि में स्थित हो तो केतु की महादशा में गुरू की अंतर्दशा हो तो जातक शांत एवं #धर्म कार्यो में रूचि लेता है. तीर्थयात्रा तथा देशाटन में धन का सद्व्यय होता है. #ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में जातक की उन्नति होती है. जातक के मन में उत्साह बना रहता है. देव-गौ-ब्राह्मण के प्रति निष्ठा और इनकी कृपा से स्थायी सम्पत्ति का लाभ होता है. जातक के सात्विक एवं उच्च विचार बन जाता हैं.
 वरहस्पति कुंडली यदि केतु अशुभ प्रभायुक्त हो एवं गुरू नीच राशि या शत्रु में हो एवं पाप ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो तो केतु की महादशा व गुरू की अंतर्दशा में जातक को #प्रवास अधिक करने पड़ते हैं. यात्रा में चोरों या ठगो द्वारा संपत्ति की हानि होती है.क्रोध में आकर बिना बात के झगड़े करता है.
केतु महादशा में शनि की अंतर्दशा एक वर्ष एक महीने एवं नौ दिन की होती है.
जातक /जातिका की कुंडली मे  शनिदेव यदि उच्च, मित्र व स्वराशि में हो, शुभ ग्रहों द्वारा युत व दृष्ट हो एवं केतु भी शुभ ग्रहों के प्रभाव में हो एवं उच्च, मित्र या स्वराशि में स्थित हो तो केतु की महादशा में शनि की अंतर्दशा हो तो जातक को #मध्यम शुभ फल प्रदान करता है. जातक के कार्य कुछ #विलंब के बाद पूर्ण हो जाता हैं. जातक की  अधर्म व अनैतिक कार्यों में रूचि रहती है.
यदि केतु अशुभ प्रभावयुक्त हो एवं शनि नीच राशि या शत्रु राशि में हो एवं #पाप ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो तो केतु की महादशा व शनि की अंतर्दशा में जातक #अनेक कष्ट भोगता हैं. #जीवकोपार्जन के ए जातक को भटकना पड़ता है. #कठिन श्रम करने पर भी जातक का कार्य सिद्ध नहीं हो पाता है. स्व बन्धुओं से जातक के मतभेद बनते हैं. जायदाद के #मुकदमें में जातक की हार एवं परदेशगमन होता है.

केतु महादशा में बुध की अन्तर्दशा का फल

केतु की महादशा में बुध की अंतर्दशा ग्यारह महीने एवं सत्ताईस दिन की होती है.
 बुध ग्रह कुंडली मे यदि उच्च, मित्र व स्वराशि में हो, शुभ ग्रहो द्वारा युत व दृष्ट हो एवं #केतु भी शुभ ग्रहों के प्रभाव में हो एवं उच्च, #मित्र या स्वराशि में स्थित हो तो केतु की महादशा में बुध की अंतर्दशा हो तो जातक को #शुभ फल मिलते हैं. जातक शनि दशाकाल में प्राप्त दुःखों से छुटकारा पाकर बहुत सुख की सांस लेता हैं  समाज के साथ समागम स्वजनों से मिलन एवं सम्पत्ति लाभ होता है. पुराने मित्र से मिलने की प्रसन्नता, #कार्य-व्यवसाय में प्रगति एवं सुयश मिलता है.
यदि केतु अशुभ प्रभावयुक्त हो एवं बुध नीच राशि या शत्रु राशि में हो एवं पाप ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो तो केतु की महादशा व बुध की अंतर्दशा में जातक को कार्य #व्यवसाय में हानि प्राप्त होती है. #गृह-कलह बढ़ जाती है. मित्र भी शत्रुवत् व्यवहार करते हैं
फतेह चन्द शर्मा
Fatehchand Sharma
 

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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