जन्म कुंडली का चतुर्थ भाव सुख, माता, वाहन, भूमि, मानसिक स्थिति, घर के वातावरण, छाती, प्रारंभिक शिक्षा को दर्शाता है और यहाँ बैठे शनि इन सभी को प्रभावित करते हैं क्योंकि शनि विरक्ति का कारक है. चतुर्थ भाव में बैथे शनि व्यक्ति को बचपन में रोग-पीड़ा देने वालें कहे गये है, ऐसे व्यक्तियों के बचपन में छाती में दर्द की शिकायत रहती है.चतुर्थ भाव में स्थित शनि बचपन में सीमित संसाधन देता है जो कि समय व परिश्रम के साथ-साथ बढ़ते जाते हैं. चतुर्थ भाव में स्थित शनि घर से दूर ले जाकर अच्छी उन्नति दिलवाता है ऐसे व्यक्तियों की कुंडली में यदि विदेश यात्रा के योग हैं तो वह और भी प्रवल हो जाता है.
बहुत से ग्रंथकारों का मत है कि यदि शनि चतुर्थ भाव में हो तो ऐसे व्यक्तियों को भूमि सुख नही मिल पाता किन्तु मेरा ऐसा मत व अनुभव है कि यदि शनि चतुर्थ भाव में अपनी उच्च राशि(तुला), स्वराशि(मिथुन एवं मकर)व मूलत्रिकोण राशि(कुंभ) में स्थित हो तो ऐसे व्यक्तियों को भूमि सुख अवश्य ही प्राप्त होता है.
चतुर्थ भाव में स्थित शनि व्यक्ति का झुकाव आध्यात्म की ओर बढ़ाता है अर्थात ऐसे व्यक्तियों की कुंडली में प्रवज्या योग जिसे सन्यास योग भी कहा जाता है उसकी संभावना अधिक हो जाती है. कहने का आशय यह है कि यदि शनि चतुर्थ भाव में स्थित हो तो ऐसा व्यक्ति धर्म-कर्म में अधिक रुचि रखता है. चतुर्थ भाव से घर के वातावरण का भी विचार किया जाता है जहाँ स्थित शनि अकसर घर के माहौल को गरम रखता है, कहने का आशय यह है कि यदि चतुर्थ भाव में शनि स्थित हो तो ऐसे व्यक्तियों को मानसिक शांति जल्दी या ज्यादा समय तक अनुभव नही होती ऐसे व्यक्तियों के घर में कलह होते रहते हैं या अन्य किसी कारण से मन दुःखी रहता है.
चतुर्थ भाव वाहन सुख को भी दर्शाता है जहाँ स्थित शनि वाहन सुख प्रदान करता है किंतु ऐसे व्यक्तियों के वाहन में कोई न कोई समस्या अकसर बनी ही रहती है चाहे वो स्क्रैच की हो या अन्य कोई खराबी की हो.चतुर्थ भाव में स्थित शनि माता के स्वास्थ्य में भी परेशानी देता रहता है ऐसे व्यक्तियों की माता थोड़ी जिद्दी स्वभाव की होती हैं व उनके पैरों, कमर व जोड़ों में दर्द की शिकायत प्रायः देखी जा सकती है.
चतुर्थ भाव व्यक्ति के प्रारंभिक शिक्षा को भी दर्शाता है अतः चतुर्थ भाव में बैठा शनि ऐसे व्यक्तियों की प्रारंभिक शिक्षा को भी प्रभावित करता है ऐसे व्यक्तियों की या तो शिक्षा कुछ विलंब से शुरू होती है या फिर ऐसे व्यक्ति अपनी योग्यता के अनुसार परीक्षा में अंक नही प्राप्त कर पाते हैं.ऐसे व्यक्तियों को अपने टैलेंट को दिखाने के लिए प्रेरित (मोटीवेट)करना पड़ता है तथा इनका टैलेंट लोगों के सामने आने में समय लगता है. ऐसे व्यक्ति खुद के टैलेंट को ही जल्दी नही पहचान पाते हैं.
यदि चतुर्थ भाव में शनि स्थित हो तो ऐसे व्यक्तियों को वात व पित्त रोग होने की संभावना बढ़ जाती है. इसके अतिरिक्त यदि शनि चतुर्थ भाव में हो तो भृगु सूत्र के अनुसार ऐसे व्यक्तियों की माता को काफी कष्ट रहता है साथ ही ऐसे व्यक्तियों की कुंडली में दो माता के योग बनते हैं किंतु इसके लिए अन्य ग्रहों की स्थिति पर भी ध्यान देना आवश्यक होता है.
चतुर्थ भाव में बैठे शनि की तीसरी दृष्टि छठे भाव पर पड़ती है जो यह दर्शाता है कि ऐसे व्यक्ति शत्रुओं पर विजय प्राप्त करते हैं अर्थात शत्रु इनको कोई हानि नही पहुँचा पाते हैं.इसके अतिरिक्त ऐसे व्यक्ति प्रतियोगी परीक्षाओं में भी सफल होते हैं, चतुर्थ भाव में बैठे शनि की सातवीं दृष्टि दशम भाव अर्थात कर्म स्थान पर पड़ती है जो यह दर्शाता है कि ऐसे व्यक्तियों को जीवन में बड़ी सफलता प्राप्त करने हेतु कड़ा संघर्ष करना पड़ता है. अर्थात ऐसे व्यक्तियों को कड़े परिश्रम से भी बड़ी सफलता व उन्नति प्राप्त होती है, मेरा ऐसा मत व अनुभव है कि यदि चतुर्थ भाव में शनि स्थित हो तो ऐसे व्यक्ति जीवनकाल में एक बार बहुत ऊँचे शिखर पर अवश्य ही पहुँचते हैं.
इसके अतिरिक्त चतुर्थ भाव में स्थित शनि की दसवीं दृष्टि लग्न पर पड़ती है जो कि यह दर्शाता है कि ऐसे व्यक्तियों के चेहरे पर किसी प्रकार का कोई निशान (चाहे वह तिल का हो या मस्से का या किसी चोट का या अन्य किसी प्रकार का) रहता है अब यहाँ ध्यान से देखने वाली बात यह है कि चतुर्थ भाव में स्थित शनि कुंडली के छठे भाव जो कि रोग व पीड़ा का भाव है और लग्न जो कि आपका शरीर है दोनों को देखता है साथ ही चतुर्थ भाव में स्थित होने से मानसिक शांति भंग होने के भी योग बना रहा होता है अतः ऐसे व्यक्तियों को कोई ऐसा रोग रहता है जो कि लंबे समय तक चलता है अर्थात ऐसे व्यक्तियों की कुंडली में लंबे समय तक दवाईयाँ खाने के योग बनते हैं.
यदि उच्च राशि का शनि चतुर्थ भाव में स्थित हो जो कि केवल कर्क लग्न की कुंडली में ही संभव है तो ऐसे व्यक्ति दूसरों को अनुशासित करने में लगे रहते हैं.कहने का आशय यह है कि ऐसे व्यक्तियों की चाह होती है कि उनके इच्छा अनुसार लोग कार्य करें.ऋषि कश्यप का मत है कि ऐसे व्यक्ति पक्षियों को बंधन में रखने से सुखी होते हैं ऐसे व्यक्तियों को भूमि व वाहन सुख प्राप्त होता है साथ ही इनको बहुत मजबूत विचारों वाले जीवनसाथी की प्राप्ति होती है. यदि उच्च नवांश का शनि चतुर्थ भाव में हो तो ऐसे व्यक्ति माँसाहारी होते हैं तथा माँसाहार भोजन करने में इन्हें बहुत आनंद आता है.
यदि शुभ वर्ग का शनि चतुर्थ भाव में स्थित हो तो ऐसे व्यक्ति खेती से जुड़े कार्य से सुख की प्राप्ति करते हैं. कहने का आशय यह है कि ऐसे व्यक्ति जहाँ कच्चे माल को बनाने या खरीदने-बेचने का कार्य होता हो वहाँ अधिक सफल होते हैं. यदि पाप वर्ग का शनि चतुर्थ भाव में हो तो ऐसे व्यक्ति नकारात्मक चीजों की ओर जल्दी आकर्षित होते हैं. ऋषि कश्यप का मत है कि ऐसे व्यक्ति दोषों को अपनाकर सुख का अनुभव करते हैं अतः ऐसे व्यक्तियों को कोई भी निर्णय बहुत सोच समझकर लेना चाहिए.
यदि नीच राशि का शनि चतुर्थ भाव में स्थित हो जो कि मकर लग्न की कुंडली में ही संभव है तो ऐसे व्यक्ति अधिकांश समय अकेले रहना पसंद करते हैं व इन्हें भूमि और वाहन का उत्तम सुख प्राप्त होता है. ऐसे जातकों के जीवनसाथी उच्च पद पर नौकरी करते हैं, यदि नीच नवांश का शनि चतुर्थ भाव में स्थित हो तो ऐसे व्यक्ति बोलते कुछ व करते कुछ हैं.कहने का आशय यह है कि ऐसे व्यक्ति वंचक होते हैं साथ ही ऐसे व्यक्ति लोगों की मदद कर के सुख को अनुभव करते हैं.
यदि चतुर्थ भाव में मित्र राशि का शनि स्थित हो तो ऐसे व्यक्तियों का कार्यस्थल पर अधिक मन लगता है व ऐसे व्यक्ति परिवार से अधिक अपने कार्य को महत्व देते हैं.यदि शत्रु राशि का शनि चतुर्थ भाव में स्थित हो तो ऐसे व्यक्ति दूसरों को ठगने से सुखी होते हैं कहने का आशय यह है कि ऐसे सभी कार्य जिसमें बुद्धि-विवेक द्वारा मुनाफा अधिक कमाया जा सकता है उन सभी कार्यों जैसे मार्केटिंग, बिज़नेस में अधिक सफल होते हैं.
यदि मित्र नवांश का शनि चतुर्थ भाव में स्थित हो तो ऐसे व्यक्तियों के घरेलू सुख में कुछ तनाव की स्थिति बनी रहती है.साथ ही ऐसे व्यक्तियों को भूमि सुख अवश्य प्राप्त होता है. शत्रु नवांश का शनि चतुर्थ भाव हो तो ऐसे व्यक्ति जीवों को बेचकर सुखी होते हैं,कहने का आशय यह है कि ऐसे व्यक्ति जीवों को बेचकर धनार्जन करते हैं.अब आज के समय में डॉग कैंनल खोलना वगैरह इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं.
यदि वर्गोत्तम स्थिति का शनि चतुर्थ भाव में हो तो ऐसे व्यक्ति दूसरों को हानि पहुँचा कर सुख का अनुभव करते हैं. कहने का आशय यह है कि ऐसे व्यक्ति कुछ इस तरह का कार्य करते हैं जिससे दूसरों को हानि या दुःख पहुँचे.उदाहरण के तौर पर जैसे वकालत का कार्य क्योंकि इसमें व्यक्ति अपने पक्ष के व्यक्ति को विजय दिलवाकर उनसे सुख के साधन प्राप्त करता है किंतु उसके इस कृत्य से दूसरे पक्ष को कुछ हानि व दुःख पहुँचता है.
यदि स्वराशि शनि चतुर्थ भाव में हो जो कि तुला व वृश्चिक लग्न की कुंडली में ही संभव है तो व्यक्ति रस पदार्थ बेचकर सुखी होता है कहने का आशय यह है कि ऐसा व्यक्ति कोई ऐसा कार्य करता है जिससे दूसरों को सुख की अनुभूति हो साथ ही ऐसे व्यक्तियों क़ो भूमि सुख निश्चय ही प्राप्त होता है.यदि तुला लग्न की कुंडली में शनि चतुर्थ भाव में हो तो अधिक लाभकारी होता है क्योंकि तुला लग्न की कुंडली में शनि देव राजयोगकारक हो जाता है.और दसवीं दृष्टि से लग्न को अपनी उच्च राशि में देखता है.अतः तुला लग्न की कुंडली में चतुर्थ भाव में स्थित शनि व्यक्ति की मान-प्रतिष्ठा में वृद्धि करता है व बड़ी सफलता दिलवाता है.वहीं वृश्चिक लग्न की कुंडली में चतुर्थ भाव में स्थित शनि दर्शाता है कि ऐसे व्यक्तियों की परिश्रम अधिक करना पड़ेगा क्योंकि शनि तीसरे भाव अर्थात पराक्रम भाव का भी स्वामी होता है साथ ही ऐसे व्यक्ति अत्यधिक परिश्रम कर के जीवन में बड़ी सफलता को प्राप्त करते हैं.
काम्या वैदिक एस्ट्रो
Kamya Vedic Astro
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