चेन्नई. मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा है कि विवाह केवल शारीरिक सुख के लिए नहीं है बल्कि इसका मुख्य उद्देश्य संतान पैदा करना है. न्यायमूर्ति कृष्णन रामासामी ने 16 सितंबर को अपने दो बच्चों की कस्टडी को लेकर अलग रह रहे दंपति के विवाद की सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की. अदालत ने कहा कि वैवाहिक बंधन के महत्व को सभी लोगों को समझना होगा. अगर आप समझते हैं कि शादी सिर्फ शारीरिक सुख के लिए है तो यह न्यायोचित नहीं है. शादी का मुख्य उद्देश्य परिवार को बढ़ाना है और बच्चों को सही माहौल देना है ताकि एक अच्छा समाज का निर्माण हो सके.
मां -बाप के झगड़े की वजह से बच्चे प्रताड़ित होते हैं
न्यायाधीश ने कहा कि इस दुनिया में लाए गए बच्चों को उनकी बिना किसी गलती के सजा दी जाती है. उन्होंने यह भी देखा कि बच्चों का मौलिक अधिकार है और उन्हें अपने पिता और माता के साथ एक प्रेमपूर्ण संबंध की आवश्यकता होती है लेकिन आपस के झगड़े की वजह से वे प्रताड़ित होते हैं. इसे नकारना बाल शोषण की श्रेणी में आएगा.
यह है पूरा मामला
दरअसल, एक पत्नी ने कोर्ट से शिकायत की थी कि उसका पति उसे बच्चे से नहीं मिलने दे रहा है और इस तरह वह कोर्ट के आदेशों की अवमानना कर रहा है. इसलिए पत्नी ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और पेरेंटल एलिएनेशन का आरोप लगाया. पेरेंटल एलिएनेशन का मतलब एक पैरेंट द्वारा बच्चे को दूसरे पैरेंट से दूर रखने के लिए भड़काना या खिलाफ करना होता है. एलिएनेशन को अमानवीय और बच्चे के लिए खतरा बताते हुए जस्टिस रामास्वामी ने कहा कि एक बच्चे को एक पैरेंट के खिलाफ करना बच्चे को अपने खिलाफ करना है. न्यायमूर्ति रामासामी ने कहा कि प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि पिता ने उसकी मां के खिलाफ बच्चों के दिमाग में जहर भर दिया है.
कानून बच्चों की हर आवश्यकता को पूरी नहीं कर सकता
न्यायमूर्ति रामासामी ने कहा कि कानून अहंकार को संतुष्ट कर सकता है, लेकिन यह कभी भी बच्चे की आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर सकता है, क्योंकि कानून के निर्माता केवल बच्चे के कल्याण के प्रति जागरूक थे, न कि उस मानसिक उथल-पुथल के बारे में जो बच्चे को ऐसी विपत्तिपूर्ण स्थिति में सामना करना पड़ेगा.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-शैक्षणिक संस्थाओं में हिंदी को तीसरी भाषा बनाने में क्या दिक्कत है: मद्रास हाईकोर्ट
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