वक्री का सामान्य अर्थ उल्टा होता है व बक्री का अर्थ टेढ़ा साधारण दृष्टि से देखें या कहें तो सूर्य,बुध आदि ग्रह धरती से कोसों दूर हैं.भ्रमणचक्र में अपने परिभ्रमण की प्रक्रिया में भ्रमणचक्र के अंडाकार होने से कभी ये ग्रह धरती से बहुत दूर चले जाते हैं तो कभी नजदीक आ जाते हैं.जब जब ग्रह पृथ्वी के अधिक निकट आ जाता है तो पृथ्वी की गति अधिक होने से वह ग्रह उलटी दिशा की और जाता महसूस होता है.उदाहरण के लिए मान लीजिये की आप एक तेज रफ़्तार कार में बैठे हैं,व आपके बगल में आप ही की जाने की दिशा में कोई साईकल से जा रहा है तो जैसे ही आप उस साईकल सवार से आगे निकलेंगे तो आपको वह यूँ दिखाई देगा मानो वो आपसे विपरीत दिशा में जा रहा है.
जबकि वास्तव में वह भी आपकी दिशा की और ही जा रहा होता है.आपकी गति अधिक होने से एक दूसरे को क्रोस करने के समय आगे आने के बावजूद वह आपको पीछे यानि की उल्टा जाता दिखाई देता है. और जाहिर रूप से आप इस प्रभाव को उसी गाडी सवार ,या साईकिल सवार के साथ महसूस कर पाते है जो आपके नजदीक होता है,दूर के किसी वाहन के साथ आप इस क्रिया को महसूस नहीं कर सकते. ज्योतिष की भाषा में इसे कहा जायेगा की साईकिल सवार आपसे वक्री हो रहा है.यही ग्रहों का पृथ्वी से वक्री होना कहलाता है.सीधे अर्थों में समझें की वक्री ग्रह पृथ्वी से अधिक निकट हो जाता है.
सामान्य परिस्थितियों में ग्रहों की औसत भ्रमण गति (एक राशि को पार करने में लगा समय) इस प्रकार है :-
सूर्य – 30 दिन (एक अंश प्रतिदिन)
चंद्र – 2 दिन 6 घंटे
मंगल – 45 दिन
बुध – 27 दिन
गुरु – 1 वर्ष
शनि – 2 1/2 वर्ष (30 मास)
राहु – 18 मास
केतु – 18 मास
सूर्य की रश्मियों के समीप आ जाने पर ग्रह अपनी स्वाभाविक गति को छोड़कर तीव्र गति से या अपेक्षाकृत धीमी गति से भ्रमण करने लगते हैं. ऐसा बुध के साथ अक्सर होता है. ग्रहों का इस प्रकार तीव्र गति से घूमने लगना उनका अतिचारी हो जाना कहलाता है.
यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि सूर्य और चंद्र सदैव मार्गी गति से भ्रमण करते हैं अर्थात सदैव आगे की ओर अर्थात् मेष, वृष, मिथुन इत्यादि क्रम से चलते हैं. राहु और केतु सदैव वक्री होते हैं अर्थात् सदैव पीछे की ओर अर्थात् मीन, कुम्भ, मकर, इस क्रम से चलते हैं. अन्य ग्रह स्थिति अनुसार कभी आगे कभी पीछे चलते हैं अर्थात् वे मार्गी या वक्री दोनों हो सकते हैं. वास्तव में पीछे चलने जैसी घटना नहीं होती परन्तु पृथ्वी से वे इस प्रकार चलते हुए प्रतीत होते हैं.
ग्रह के वक्री होने से उसके नैसर्गिक गुण में ,उसके व्यवहार में किसी प्रकार का कोई अंतर नहीं आता.
Astro nirmal
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