बड़ी भारी महिमा है भीष्मपंचक व्रत की, नि:संतान को भी होगी संतान प्राप्ति

बड़ी भारी महिमा है भीष्मपंचक व्रत की, नि:संतान को भी होगी संतान प्राप्ति

प्रेषित समय :19:15:51 PM / Thu, Nov 3rd, 2022

इस वर्ष 04 नवम्बर शुक्रवार से 08 नवम्बर मंगलवार तक भीष्मपंचक व्रत है . कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक का व्रत 'भीष्मपंचक व्रत' कहलाता है . नि:संतान दम्पत्तियों के लिए यह व्रत किसी वरदान से कम नहीं . जिन विवाहित दम्पात्तियों की सभी रिपोर्ट्स नॉर्मल आती हैं और फिर भी उन्हें संतान का सुख प्राप्त नहीं हुआ है, उन्हें यह व्रत पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ करना चाहिए . पति अकेले भी इस व्रत को कर सकते हैं .  

कार्तिक एकादशी के दिन बाणों की शय्या पर पड़े हुए भीष्मजी ने जल की याचना की थी . तब अर्जुन ने संकल्प कर भूमि पर बाण मारा तो गंगाजी की धार निकली और भीष्मजी के मुँह में आयी . उनकी प्यास मिटी और तन-मन-प्राण संतुष्ट हुए . इसलिए इस दिन को भगवान श्रीकृष्ण ने पर्व के रूप में घोषित करते हुए कहा कि 'आज से लेकर पूर्णिमा तक जो अर्घ्यदान से भीष्मजी को तृप्त करेगा और इस भीष्मपंचक व्रत का पालन करेगा, उस पर मेरी सहज प्रसन्नता होगी ।'

ऐसा भी प्रचलित है कि महाभारत युद्ध के बाद जब पांण्डवों की जीत हो गयी तब श्रीकृष्ण भगवान पांण्डवों को भीष्म पितामह के पास ले गये और उनसे अनुरोध किया कि आप पांण्डवों को ज्ञान प्रदान करें . भीष्म भी उन दिनों शर-शैय्या पर लेटे हुए सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतिक्षा कर रहे थे . श्रीकृष्ण के अनुरोध पर परम वीर और परम ज्ञानी भीष्म ने श्रीकृष्ण सहित पाण्डवों को राजधर्म, वर्णधर्म एवं मोक्षधर्म का ज्ञान दिया . भीष्म द्वारा ज्ञान देने का क्रम कार्तिक शुक्ल एकादशी से लेकर पूर्णिमा तक पाँच दिनों तक चलता रहा . भीष्म ने जब पूरा ज्ञान दे दिया तब श्रीकृष्ण ने इसकी स्मृति में भीष्म पंचक व्रत की घोषणा करते हुए कहा कि ‘जो लोग इसका पालन करेंगे, उन्हें पुत्र, पौत्र, धन और धान्य की कोई कमी नहीं रहेगी और संसार में सुख भोगकर मोक्ष को प्राप्त होंगे’ . 

इन पाँच दिनों में निम्न मंत्र से भीष्म जी के लिए तर्पण करना चाहिए :
सत्यव्रताय शुचये गांगेयाय महात्मने .
भीष्मायैतद् ददाम्यर्घ्यमाजन्मब्रह्मचारिणे ।।
 'आजन्म ब्रह्मचर्य का पालन करनेवाले परम पवित्र, सत्य-व्रतपरायण गंगानंदन महात्मा भीष्म को मैं यह अर्घ्य देता हूँ ।'
(स्कंद पुराण, वैष्णव खंड, कार्तिक महात्म्य)
अर्घ्य के जल में थोड़ा-सा कुमकुम, केवड़ा, पुष्प और पंचामृत (गाय का दूध, दही, घी, शहद और शक्कर) मिला हो तो अच्छा नहीं तो जैसे भी दे सकें . ‘मेरा ब्रह्मचर्य दृढ़ रहे, संयम दृढ़ रहे, मैं काम विकार से बचूँ...’ ऐसी प्रार्थना करें . संतान प्राप्ति के इच्छुक दंपत्ति संतान के लिए प्रार्थना करें . 

इन पाँच दिनों में अन्न का त्याग करें . कंदमूल, फल, दूध अथवा हविष्य (विदित सात्विक आहार जो यज्ञ के दिनों में किया जाता है) लें . इन दिनों में पंचगव्य (गाय का दूध, दही, घी, गोझरण व गोबर-रस का मिश्रण) का सेवन लाभदायी है . पानी में थोड़ा-सा गोझरण डालकर स्नान करें तो वह रोग-दोषनाशक तथा पापनाशक माना जाता है . व्रत के दिनों में ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए .

इस व्रत का प्रथम दिन देवउठी एकादशी है . इस दिन भगवान् नारायण जागते हैं . इस कारण इस दिन निम्न मंत्र का उच्चारण करके भगवान् को जगाना चाहिए .
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविन्द उत्तिष्ठ गरुडध्वज .
उत्तिष्ठ कमलाकान्त त्रैलोक्यमन्गलं कुरु ।।
'हे गोविन्द ! उठिए, उठिए, हे गरुडध्वज ! उठिए, हे कमलाकांत ! निद्रा का त्याग कर तीनों लोकों का मंगल कीजिये ।'
नि:संतान दंपत्ति इस व्रत का लाभ अवश्य लें .

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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