अहमदाबाद. मोरबी हादसे पर स्वत: संज्ञान लेते गुजरात हाईकोर्ट ने गुजरात सरकार को फटकार लगाई है. हाईकोर्ट ने 150 साल पुराने पुल के रखरखाव के लिए ठेका देने के तरीके पर गंभीर सवाल उठाए हैं और जवाब तलब किया है. हाईकोर्ट ने सवाल करते हुए कहा कि इतने महत्वपूर्ण काम के लिए किया गया एग्रीमेंट सिर्फ डेढ़ पन्ने में कैसे सिमट गया?
हाईकोर्ट ने कहा कि नोटिस जारी किए जाने के बाद भी मोरबी नगरपालिका के अधिकारी कोर्ट नहीं पहुंचे, ये दर्शाता है कि वो चालाकी दिखा रहे हैं. हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि ऐसा लगता है कि राज्य सरकार की तरफ से इस संबंध में कोई टेंडर जारी किए बिना ही अपनी उदारता दिखाई गई है.
मुख्य न्यायाधीश अरविंद कुमार ने सवाल उठाते हुए मंगलवार को सुनवाई के दौरान राज्य के मुख्य सचिव से कहा कि एक सार्वजनिक पुल के मरम्मत कार्य के लिए टेंडर क्यों नहीं जारी किया गया. इसमें बोली क्यों नहीं लगाई गई? सुनवाई के आखिर में हाईकोर्ट ने कहा कि मामले की सुनवाई बुधवार को भी जारी रहेगी.
मोरबी नगरपालिका ने पुल के मरम्मत करने के लिए ओरेवा गु्रप को 15 साल का ठेका दिया था. ये कंपनी मुख्य रूप से घड़ी बनाने का काम करती है. हाईकोर्ट ने शुरुआती टिप्पणी में कहा कि सरकारी विभाग वाली नगर पालिका ने गलती की है, जिसकी वजह से 135 लोगों की मौत हो गई. क्या गुजरात नगर पालिका अधिनियम 1963 का पालन किया गया था.
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि इतने महत्वपूर्ण कार्य के लिए महज डेढ़ पेज में एग्रीमेंट कैसे पूरा हुआ? क्या बिना किसी टेंडर के कंपनी को राज्य की तरफ से हरी झंडी दिखाई गई. हाईकोर्ट ने इस त्रासदी पर खुद संज्ञान लिया था और छह विभागों से जवाब मांगा था. मुख्य न्यायाधीश अरविंद कुमार और न्यायमूर्ति आशुतोष जे शास्त्री मामले की सुनवाई कर रहे हैं. हाईकोर्ट ने अपने आदेश में मोरबी के प्रधान जिला न्यायाधीश को नगर निकाय को नोटिस जारी करने का निर्देश दिया. हालांकि राज्य सरकार की तरफ से एक हलफनामा दायर किया गया है, इसके बावजूद इसमें एग्रीमेंट पर कुछ स्पष्टीकरण की आवश्यकता है.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-इलाहाबाद हाईकोर्ट का निर्देश: परिजनों की देखरेख नहीं करने पर रेलवे वापस ले सकता है अनुकंपा नौकरी
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