पल-पल इंडिया. कुछ समय से राज्य और केंद्र के संबंधों को लेकर जो विकास माॅडल सामने आया है, वह प्रजातंत्र के लिए शुभ नहीं कहा जा सकता है!
जिस तरह से केंद्र सरकार का रवैया है, वह किसी भी राज्य की जनता के लिए अच्छा नहीं है?
यदि केंद्र में जिस दल की सरकार है, उससे अलग राज्य में अन्य दल की सरकार है, तो उसे राज्य की जनता की जरूरतों को नजरअंदाज करके असहयोग किया जाएगा?
खबरें हैं कि बिहार में सरकार बदलने के बाद केंद्र सरकार के सियासी तौर-तरीकों में बड़ा बदलाव आया है और केंद्र पर आधारित योजनाएं लड़खड़ाने लगी हैं!
नीतीश कुमार के एनडीए छोड़कर राजद, कांग्रेस के साथ चले जाने के बाद विकास योजनाओं में फंड की कमी हो रही है और इसके लिए केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है?
खबरों की मानें तो कृषि विभाग की केंद्र प्रायोजित योजनाओं को आठ महीने में भी मंजूरी नहीं मिली है, जबकि दो-तीन महीने में केंद्र सरकार योजना को स्वीकृत कर देती है!
यही नहीं, खाद की आपूर्ति भी केंद्रीय स्तर पर कम होने की खबरें हैं, कृषि मंत्री कुमार सर्वजीत के हवाले से खबरें हैं कि 18 नवंबर 2022 तक तय कोटे की तुलना में केवल 37 प्रतिशत ही मिली है.
खबरों पर भरोसा करें तो बुआई के लिए समय खत्म होने को है, लेकिन अभी तक डीएपी 70 प्रतिशत मिली, एनपीके 66 प्रतिशत आपूर्ति, तो एमओपी केवल 14 प्रतिशत मिली है.
इसके अलावा ग्रामीण कार्य विभाग द्वारा संचालित ग्रामीण सड़क और पुल निर्माण की योजनाएं भी उलझ गई हैं. कहा जा रहा है कि केंद्र सरकार से राशि के लिए राज्य सरकार की ओर से अनेक बार अनुरोध के बावजूद आवश्यक राशि नहीं मिली है.
केंद्र में किसी की भी सरकार हो, सत्ता के लिए राज्य की जनता की जरूरतों को नजरअंदाज करना ठीक नहीं है?
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-बिहार छात्रसंघ चुनाव: पटना यूनिवर्सिटी में जेडीयू का दबदबा, महासचिव पद पर एबीवीपी काबिज
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